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अब आपके लिए हाजिर है पौने दो करोड़ किताबों की लाइब्रेरी, बिना किसी खर्च के
लखनऊ: किताब पढ़ना है तो किसी पुस्तकालय जाने की जरुरत नहीं। किताब खरीदने की भी जरूरत नहीं। आप अपने घर में बैठकर ही देश दुनिया के लेखकों की पौने दो करोड़ पुस्तकें पढ़ सकते हैं। इनको पढ़ने के लिए कोई कीमत भी नहीं चुकानी है। सब मुफ्त है। यह सब जान कर आपको आश्चर्य लग रहा होगा लेकिन यह हकीकत है।
पढ़े भारत-बढे भारत
इस हकीकत को हासिल कराया है केंद्र सरकार की पढ़े भारत ,बढे भारत नामक योजना ने। लोगो को घर बैठे ही पुस्तकों से जोड़ने की यह बहुत बड़ी पहल है। इन किताबों में साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा, आयुर्वेद, दर्शन, संस्कृति, इतिहास सहित लगभग सभी क्षेत्रों से जुड़ी हुई पुस्तकें हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसी भी किताबें हैं, जो काफी पुरानी हैं और देश-दुनिया के चुनिंदा पुस्तकालयों में ही मौजूद हैं। इन सभी किताबों को स्कैन करके डिजिटल बुक का स्वरूप दिया गया है।
किताबें खरीद कर पढ़ना बहुत ही महंगा
सही है कि आज के समय में किताबें खरीद कर पढ़ना बहुत ही महंगा शौक हो गया है। किताबो की कीमतों के कारण लोग चाह कर भी अपने पसंदीदा लेखको को भी नहीं पढ़ पाते। ऐसे में लोगो की पढ़ने की आदत भी छोट जाती है। कहा तो यह जाता है कि पुस्तकें ही इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं लेकिन महंगाई के चलते इस दोस्ती पर जैसे विराम लगने लगा है। लोग छह कर भी न तो किताबें खरीद रहे हैं और न ही पढ़ने की आदत ही रह गयी है। ऊपर से डिजिटल मीडिया और टीवी ने इस आदत को और भी ख़त्म करने में अपनी भूमिका अदा कर दी है।
पढ़ने की आदत जन्मजात नहीं
नया विचार नई ऊर्जा फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के गंभीर सिंह कहते हैं कि दरअसल पढ़ने की आदत जन्मजात नहीं होती है। उसे विकसित करने की आवश्यकता होती है। पहले घर फिर स्कूल को इस दिशा में पहल करनी होती है। बाल्यावस्था ही इसकी सबसे आदर्श अवस्था है। जिस परिवार में पढ़ने-लिखने का परिवेश होता है बच्चों में भी वह आदत स्वयं विकसित होने लगती है। फिर पास-पड़ोस का प्रभाव होता है। बच्चे अपने बड़ों का अनुकरण करते हैं। बच्चे उन सारे कार्यों को अपना खेल बना लेते हैं जिन्हें अपने अभिभावकों को करते देखते हैं। यही खेल बाद में धीरे-धीरे आदतों में बदल जाते हैं। लेकिन हमारे परिवेश में इसका नितांत अभाव है।
खिलौनों पर खर्च पर किताबो पर नहीं
कैसी विडंबना है कि अभिभावक बच्चों के लिए महंगे से महंगे खिलौने या खेल सामग्री खरीदकर ले आएंगे लेकिन कभी कोर्स से बाहर की एक किताब खरीदकर उन्हें नहीं देते हैं। किताबों में किया जाने वाला खर्च उन्हें अनावश्यक लगता है। जन्मदिन का उपहार अन्य सबकुछ हो सकता है लेकिन किताब तो अपवादस्वरूप ही होती है। बहुत पढ़े-लिखे माता-पिता भी ऐसा कम ही करते हैं। बच्चे पर हर वक्त स्कूली किताब पढ़ने का दबाब ही देते रहते हैं। वे यह भी ध्यान नहीं रखते कि एक ही किताब को पढ़ते रहने से बच्चा ऊब भी सकता है। ताजगी के लिए कभी उसका मन कुछ अन्य पढ़ने का भी कर सकता है।वे अपने बचपन को भी याद नहीं करते हैं। पढ़ने का संबंध केवल स्कूली पुस्तकों तक मानते हैं। वे पढ़ने और आनंद के बीच कोई संबंध नहीं देख पाते हैं। वे यह नहीं मानते हैं कि साहित्य पढ़ने से स्कूली पढ़ाई या जीवन निर्माण में कोई सहायता मिलती है। पढ़ने का उद्देश्य उनके लिए स्कूली परीक्षा और प्रतियोगिता परीक्षा पास करने तक सीमित होता है।
नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना
देश में नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना के बाद अभिभावक अपने बच्चो में पढ़ने की आदत भी विक्सित कर सकते हैं। यदि बच्चो में बचपन से ही पढ़ने के प्रति रूचि पैदा की जा सके तो इससे राष्ट्र को बहुत फायदा भी होगा। बच्चे की सोचने,अमझने और अपने वातावरण,समाज को विश्लेषित करने की क्षमता बढ़ेगी। इससे बच्चो को अधिक समझदार और परिपक्व नागरिक बनाया जा सकता है।
डेढ़ साल में पूरा हो सका डिजिटल पुस्तकालय का सपना
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक किताबों को डिजिटल करने का यह काम पिछले डेढ़ साल से चल रहा था, जिसका परिणाम अब सामने आया है। हालांकि यह काम अभी भी जारी है। वहीं किताबों के साथ शोध-पत्रों को भी बड़े पैमाने पर इनमें शामिल करने की तैयारी चल रही है। मंत्रालय का मानना है कि शोध-पत्रों के ऑनलाइन होने से सबसे बड़ी राहत शोध के क्षेत्र में काम कर रहे छात्रों को मिलेगी, जिन्हें अभी इसकी मोटी रकम और खोजबीन में लंबा समय देना पड़ता है।
डिजिटल लाइब्रेरी पोर्टल पर सभी के लिए उपलब्ध
ऑनलाइन की गई यह सभी किताबें नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी पोर्टल पर सभी के लिए उपलब्ध हैं। इसके लिए सिर्फ ndl.iitkgp.ac.in पर एक लॉगिन तैयार करना होगा। इसके बाद किताबों को आसानी से खोजा जा सकेगा। इन्हें सिर्फ लेखक और किताबों के नाम से आसानी से खोजा जा सकेगा। अभी तक यह सुविधा सिर्फ छात्रों के लिए ही थी। अब यह सभी के लिए उपलब्ध हैं।