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अभिनय में गरीबी को बेहतरी से जीते थे राजकपूर, जानिए उनकी दिलचस्प बातें
राजकपूर का आज के दिन ही 14 दिसम्बर 1924 को पेशावर (पाकिस्तान) में जन्म हुआ था। पिता पृथ्वीराज कपूर थियेटर के थिएटर से जुडे होने के कारण घर पर अभिनय का माहौल था। इसी कारण उन्होंने मात्र 11 वर्ष की उम्र में फिल्म ‘इंकलाब’ में अभिनय किया था।
मुंबई: हिन्दी फिल्मों के इतिहास में राजकपूर एक ऐसा नाम है जिसने एक रईस परिवार में जन्म लेने के बावजूद फिल्मो में गरीबी को जिया और अपने किरदारों में जीवंतता दिखाई। उनकी फिल्मों में समाजवाद और साम्यवाद की झलक साफ दिखाई पडती थी। उन्हे एक व्यक्ति नहीं, चलता फिरता संस्थान कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्हे ‘ग्रेट-शोमैन ’ कहा जाता था। आज निर्माता निर्देशक और अभिनेता स्व. राजकपूर का जन्म दिन है।
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पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था जन्म
राजकपूर का आज के दिन ही 14 दिसम्बर 1924 को पेशावर (पाकिस्तान) में जन्म हुआ था। पिता पृथ्वीराज कपूर के थिएटर से जुडे होने के कारण घर पर अभिनय का माहौल था। इसी कारण उन्होंने मात्र 11 वर्ष की उम्र में फिल्म ‘इंकलाब’ में अभिनय किया था। बाद में वे केदार शर्मा के साथ क्लैपर ब्वाॅय का कार्य करने लगे। कुछ लोगों का मानना है कि उनके पिता पृथ्वीराज कपूर को विश्वास नहीं था कि राज कपूर कुछ विशेष कर पायेगा, लेकिन उस समय के प्रसिद्ध निर्देशक केदार शर्मा ने राज कपूर के भीतर के अभिनय क्षमता और लगन को पहचाना और उन्होंने राज को सन् 1947 में अपनी फिल्म नीलकमल में नायक की भूमिका दी।
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एक ही फिल्म के बाद लगा निर्देशन का शौक
अभी 24 वर्षीय नवयुवक राजकपूर ने एक ही फिल्म की थी कि उन्हे निर्देशन का शौक लग गया और फिल्म ‘आग’ का निर्माण कर दिया। ‘आग’ के साथ ही 1949 में राज कपूर ‘बरसात’ फिल्म में अभिनेता के साथ-साथ निर्माता-निर्देशक के रूप में खुद को परदे पर उतारा। इस फिल्म की लगभग पूरी टीम ही नयी थी। संगीतकार नये थे शंकर-जयकिशन। गीतकार हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र। 1948 से 1988 के बीच बतौर हीरो राजकपूर ने आर. के. फिल्म्स के बैनर तले कई फिल्में बनाईं जिसमें नर्गिस के साथ उनकी जोड़ी पर्दे की सफलतम जोड़ियों में से एक थी। बस यहीं से राजकपूर के फिल्मी सफर ने गति पकड़ ली। कभी अभिनेता के तौर पर तो कभी निर्माता निर्देशन के तौर पर वह लगतार फिल्मोें में अपना रोल निभाते रहे।
अपनी हर फिल्म में नायिका से करवाए बोल्ड सीन
राजकपूर ने अपनी हर फिल्म में नायिका से बोल्ड सीन करवाए। उन्हे पता था कि भारतीय दर्शक इसे देखना चाहते हैं पर फिल्म की कहानी में वो ऐसा ट्विस्ट देते थें कि वो सीन बाद में कहानी की मांग हो जाया करता था। राज कपूर की बोल्ड हीरोइन की लिस्ट से नरगिस भी अछूती नहीं रहीं। नरगिस ने राज कपूर की फिल्म आवारा में कई रोमांटिक सीन दिए थे। बरसात’ और ‘आवारा’ में नरगिस को काफी चुलबुला, रोमांटिक और हॉट अंदाज में पेश किया था। वैसे भी दोनों के बीच निजी जिंदगी में भी कुछ चल रहा था, सो उनके सींस में जान आ जाती थी। लेकिन ‘आवारा’ का एक सीन काफी चर्चा में आ गया था। जिसमें राज कपूर और नरगिस आपको बिलकुल आज के युवाओं की तरह समुद्र तट पर अठखेलियां करते दिखाई दी ।
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इस फिल्म की असफलता से बेहद निराश हुए राजकपूर
अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ (1970) में प्रदर्शित के फ्लाप होने से राजकपूर बेहद निराश हुए। कहते है कि यह फिल्म उनके वास्तविक जीवन पर आधारित थी। उसी साल गुलशन राय की फिल्म मेरा नाम जोकर आई। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के चलते गुलशन राय ने फिल्म के टिकट फ्री में बांटे जिससे मेरा नाम जोकर औधे मुंह गिरी। इसके बावजूद उनका फिल्मों के प्रति जुनून खत्म नहीं हुआ।
माना जाता है दर्शक इस फिल्म को समझ नहीं सके। यह फिल्म हिन्दी सिनेमा की सबसे गंभीर फिल्मों में से एक मानी जाती है। राजकपूर की खासियत थी कि उनकी हर फिल्म में वही टीम रहती थी। जो पहले की फिल्मों में काम कर चुकी होती थी। ये बात अलग है कि उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर के लिए बनाई गयी फिल्म ‘बाबी’ में उन्होंने षंकर जयकिषन को न लेकर संगीतकार लक्ष्मीकांत -प्यारेलाल को लिया। अपनी फिल्मों में बतौर हीरो वह गायक मुकेश की आवाज का ही इस्तेमाल किया करते थे।
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‘सत्यम् शिवम् सुंन्दरम’ के बाद राज कपूर ने ‘प्रेम रोग’ का निर्माण किया। इसका निर्देशन भी उन्होंने स्वयं किया। इसमें नायक रूप में ऋषि कपूर एवं नायिका के रुप में पद्मिनी कोल्हापुरे को लिया गया। सन् 1985 में राज कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ प्रदर्शित हुई। उनके बेटे राजीव कपूर की इससे पहले की सारी फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं। लेकिन जब यह फिल्म रिलीज हुई तो इसने सफलता का नया कीर्तिमान रच दिया।
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फिल्म ‘हिना’ के निर्माण के दौरान राज कपूर की मृत्यु हो गयी
‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म के निर्माण के समय उन्हे कई बार पहाडो के क्षेत्र उत्तराखण्ड जाना पड़ा जहां उन्हे सांस लेने में तकलीफ हुई। इस दौरान उनका स्वास्थ काफी बिगड गया। ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनाने के बाद वे ‘हिना’ के निर्माण में लगे थे जिसकी कहानी भारतीय युवक और पाकिस्तानी युवती के प्रेम-सम्बन्ध पर आधारित थी। ‘हिना’ के निर्माण के दौरान राज कपूर की मृत्यु हो गयी। स्व राजकपूर ने अपने जीवन में न जाने कितने अवार्ड पाए। उन्हे पद्मभूषण और फिल्म के क्षेत्र में सबसे बडे़ पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया।
श्रीधर अग्निहोत्री