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गरीबी-भुखमरी जैसी फिल्मों से मिला नाम, बिमल रॉय ने ऐसे बनाई अंतर्राष्ट्रीय पहचान
हिन्दी सिनेमा के इतिहास में गरीबी भुखमरी और अन्य अभावों को दर्शाती फिल्मों ने बिमल रॉय को पहचान दी। उनकी फिल्में समाज का सच दिखाने का काम करती थी।बिमल रॉय की फिल्मों ने देष को अन्र्तराष्ट्रीय पहचान दिलाने का काम किया।
मुम्बई। हिन्दी सिनेमा के इतिहास में गरीबी भुखमरी और अन्य अभावों को दर्शाती फिल्मों ने बिमल रॉय को पहचान दी। उनकी फिल्में समाज का सच दिखाने का काम करती थी। बिमल रॉय की फिल्मों ने देष को अन्र्तराष्ट्रीय पहचान दिलाने का काम किया। भारतीय फिल्मों के इस सफल निर्देशक को लोग आज भी याद करते हैं। आज ही के दिन 56 साल की उम्र में बिमल रॉय का निधन हो गया था।
इस फिल्म से की करियर की शुरुआत
अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने विशेष रूप से दो बीघा जमीन, परिणीता, मधुमती, सुजाता, बंदिनी और की तरह अपने यथार्थवादी और समाजवादी फिल्मों के लिए उन्हे आज भी याद किया जाता है।“मधुमति” के लिए संगीतकार सलिल चौधरी ने ऐसी धुनें रची जिसे लोग आज भी सुन रहे हैं। इस तरह बिमल दा एक के बाद एक बेमिसाल सिनमाई तस्वीर फिल्म जगत को देते जा रहे थे। बिमल रॉय की “सुजाता” मील का पत्थर साबित हुई।
फिल्म में सुजाता नाम की दलित कन्या चुप रहने वाली, गुणी ,सुशील और त्यागी सेविका बनी है जबकि उसी परिवार-परिवेश की असली बेटी एक प्रतिभावान मंचीय नर्तकी ,आधुनिका ,वाचाल और अपनी मर्जी की इज्जत करने वाली शख्सियत बनती है। मशहूर गीतकार गुलजार जब फिल्मों में आने से पहले एक कार गैराज में काम किया करते थे। लेकिन गुलजार को लिखने पढ़ने का शौक बचपन से ही था। रवींद्र नाथ टैगोर के लेखन से वे बहुत प्रभावित थे। इसके चलते उन्होंने बांग्ला भाषा भी सीख ली थी।
मुंबई का किया रुख
गुलजार ने जब मुंबई का रुख किया तो उनकी मुलाकात अपने समय के मशहूर गीतकार शैलेंद्र से हुई। शैलेंद्र गुलजार की प्रतिभा को पहचान लिया और सचिन देव बर्मन से उनकी मुलाकात करा दी। पहले इस फिल्म के गीत शैलेंद्र ही लिख रहे थे, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद विमल राय ने गुलजार से फिल्म बंदिनी का गीत ‘मेरा गोरा अंग ले लई ले’ लिखवाया। बिमल राय को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए सात बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। इनमें दो बार तो उन्होंने हैट्रिक बनाई।
उन्हें 1954 में दो बीघा जमीन के लिए पहली बार यह पुरस्कार मिला। इसके बाद 1955 में परिणीता, 1956 में बिराज बहू के लिए यह सम्मान मिला। तीन साल के अंतराल के बाद 1959 में मधुमती, 1960 में सुजाता और 1961 में परख के लिए उन्हें यह पुरस्कार मिला। इसके अलावा 1964 में बंदिनी के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का फिल्मफेयर का पुरस्कार मिला।
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अवार्ड का रिकॉर्ड
बिमल रॉय ने अपने फिल्मी कैरियर में ग्यारह फिल्मफेयर पुरस्कार, दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, और कान फिल्म महोत्सव के अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते। उनकी फिल्म मधुमती कों 9 फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। मधुमती को मिले 9 फिल्मफेयर पुरस्कार 37 साल तक किसी भी फिल्म को मिले इतने सारे अवार्ड का रिकॉर्ड थे।