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Junior Mehmood: फिर जन्मा तो जूनियर महमूद ही बनना चाहूंगा

Junior Mehmood: लम्बे समय से पेट के कैंसर से जूझने के बाद जब मुंबई में उनका निधन हुआ, तो यह हिंदी सिनेमा की कहानी के एक अध्याय के अंत का प्रतीक था। जूनियर महमूद 68 वर्ष के थे।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 9 Dec 2023 1:54 PM IST
Junior Mehmood
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Junior Mehmood   (photo: social media )

Junior Mehmood: सत्तर के दशक में जब मुंबई में गिनी चुनी इम्पाला कारें थीं, तब एक इम्पाला का मालिक 12 साल का बच्चा था। उसी जमाने में, जब स्थापित सितारे चंद हज़ार की फीस लेते थे, तब वही 12 साल का बच्चा एक लाख की फीस चार्ज करता था - और उसे ये दी भी जाती थी।जाता था। और तो और किसी फिल्म के हिट होने की संभावना बढ़ाने के लिए उसी बालक का नृत्य गीत डाला जाता था।

ये बालक था हिंदी फिल्म उद्योग का एकमात्र एक ही बाल सुपरस्टार - नईम सैय्यद, जिसे जूनियर महमूद के नाम से ज्यादा जाना जाता है। लम्बे समय से पेट के कैंसर से जूझने के बाद जब मुंबई में उनका निधन हुआ, तो यह हिंदी सिनेमा की कहानी के एक अध्याय के अंत का प्रतीक था। जूनियर महमूद 68 वर्ष के थे।

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शुरुआती दिन

जूनियर महमूद ने एक इंटरव्यू में अपनी कहानी बताते हुए कहा था - जब मैं नौ साल का था तब मैं फिल्म इंडस्ट्री में शामिल हुआ। मैं मुंबई में एंटॉप हिल, वडाला में रहता था। मेरे पिता एक इंजन ड्राइवर थे इसलिए हम रेलवे क्वार्टर में रहते थे। हम छह बच्चे थे - दो बहनें और चार भाई। मैं तीसरा था।


एक्टर्स की कल

उनके ही शब्दों में : स्कूल में मैं पढ़ाई के बजाय अभिनेताओं की नकल करता था। मैं स्कूल समारोहों के लिए विशेष शो भी करता था। मेरा बड़ा भाई फ़िल्म सेट पर फ़ोटोग्राफ़ी करता था और वह हमें इसके बारे में किस्से सुनाता था। मैं शूटिंग देखने के लिए उत्सुक था इसलिए मैं कभी-कभार उनके साथ जाता था। एक दिन, वे "कितना नाज़ुक है दिल" नामक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे जिसमें जॉनी वॉकर ने एक टीचर की भूमिका निभाई थी। एक बाल कलाकार को एक संवाद बोलना था लेकिन वह गलतियाँ करता जा रहा था। मैं डायरेक्टर की कुर्सी के पीछे खड़ा था, हालांकि मुझे तब पता नहीं था कि यह डायरेक्टर की कुर्सी थी। मैंने कमेंट किया - इतनी सी लाइन नहीं बोल सकता, चला है एक्टिंग करने। डायरेक्टर ने पलट कर मुझसे पूछा, 'बेटा, तुम ये लाइन बोल सकते हो क्या?' मैंने तुरंत डायलॉग दोहरा दिया। उन्होंने मुझसे यह सीन करवाया लेकिन दुर्भाग्य से फिल्म ही बंद हो गई। लेकिन मैं अभिनय की ओर आकर्षित हुआ और अपने भाई का अनुसरण करने लगा और छोटी मोटी भूमिकाएँ करने लगा।

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कैसे पड़ा नाम

जब मैं आठ साल का था तब मुझे बड़ा ब्रेक "सुहागरात" फ़िल्म से मिला। मैंने राजश्री, जीतेंद्र और महमूद साहब के साथ काम किया। मेरे ज्यादातर सीन महमूद साहब के साथ थे।एक दिन शूटिंग के दौरान, महमूद की बेटी जिनी का जन्मदिन था। सेट पर सभी को पार्टी के लिए बुलाया गया था। मुझे नहीं बुलाया गया और बुरा लगा. मैंने उनसे कहा, 'मेरा बाप कोई निर्माता, निर्देशक नहीं इसलिए मैं आप की बेटी के जन्मदिन पर नहीं आ सकता क्या?' मैंने उनसे कहा कि अगर मैं पार्टी के लिए आऊंगा तो यह सुनिश्चित करूंगा कि पार्टी धूम मचाए। मैंने उनसे कहा कि मैं "गुमनाम" फ़िल्म में आपके गाने पर डांस करूंगा - हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं। मैं पार्टी में गया और गाने पर डांस किया और सभी को यह पसंद आया। पार्टी के बाद महमूद साहब ने मेरे पिता से कहा कि इसे रंजीत स्टूडियो ले आओ और उन्होंने मेरी बांह पर गंडा बांधकर मुझे अपना शिष्य बना लिया और अपना नाम दिया। तभी से मुझे जूनियर महमूद कहा जाने लगा।





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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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