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जानें कैसे और कब तबलू से बन गया पंचम

आर डी बर्मन भारतीय संगीत की दुनिया का वो जाना माना नाम है जिसका कोई दूसरा उदाहरण मिलना नामुमकिन है। वो सिर्फ एक है। राजघराने से ताल्लुक रहने वाला यह तबलू भारतीय सिने जगत में ध्रुव तारे से अटल है। संगीतकार सचिन देव बर्मन के पुत्र राहुल देव बर्मन की जिंदगी भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं रही।

SK Gautam
Published on: 27 Jun 2019 6:49 PM IST
जानें कैसे और कब तबलू से बन गया पंचम
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pancham da

लखनऊ: आर डी बर्मन भारतीय संगीत की दुनिया का वो जाना माना नाम है जिसका कोई दूसरा उदाहरण मिलना नामुमकिन है। वो सिर्फ एक है। राजघराने से ताल्लुक रहने वाला यह तबलू भारतीय सिने जगत में ध्रुव तारे से अटल है। संगीतकार सचिन देव बर्मन के पुत्र राहुल देव बर्मन की जिंदगी भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं रही।

नानी ने दिया ये नाम

कहते हैं कि संगीत के प्रति राहुल की दिलचस्पी और लगाव को देखकर तबलू नाम उन्हें अपनी नानी से मिला था। यह बात तो ठीक से नहीं पता कि राहुल का पंचम नाम पहले पड़ा या तबलू लेकिन पंचम नाम पड़ने के पीछे का किस्सा ये बताया जाता है कि जब बचपन में वह रोते थे तो यह शास्त्रीय संगीत के पांचवें सरगम ‘प’ की तरह प्रतीत होता था।

asha and burman

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ब्रिटिश शासित कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में 27 जून 1939 को पैदा हुए राहुल त्रिपुरा के राजसी खानदान से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता सचिन देवबर्मन हिंदी सिनेमा के अग्रणी संगीतकारों में से थे जबकि इनकी मां मीरा देवबर्मन भी एक गीतकार थीं। इनके दादा नाबद्विपचंद्र देवबर्मन त्रिपुरा के राजकुमार थे और इनकी दादी मणिपुर की राजकुमारी निर्मला देवी थीं।

बचपन से ही जीनियस

बचपन से ही जीनियस राहुल देव बर्मन की प्रारम्भिक शिक्षा बंगाल से ही हुई। राहुल देव बर्मन ने महज नौ साल की उम्र में ही पहला गाना ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ बना लिया। इस गाने को इनके पिता सचिन देव बर्मन ने 1956 में बनी फिल्म ‘फंटूश ‘में प्रयोग किया।

कहा तो यह भी जाता है कि ‘सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए’ गाने की धुन भी राहुल देव ने बचपन में ही तैयार कर ली थी, जिसे इनके पिता ने 1957 में गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में इस्तेमाल किया।

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हारमोनियम वादक से तबलावादक

हिंदी सिनेमा में आने से पहले पंचम दा ऑर्केस्ट्रा में हारमोनियम बजाया करते थे। मुंबई आने के बाद आर डी बर्मन ने प्रसिद्ध सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान और पं. समता प्रसाद से तबला बजाना सीखा। आर डी बर्मन संगीतकार सलिल चौधरी को भी अपना गुरू मानते थे। हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध संगीतिक जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल भी पंचम दा के आर्केस्ट्रा के दिनों के साथी रहे।

burman with tabla

महमूद ने दिया पहला ब्रेक

वैसे तो आर डी बर्मन को संगीतकार के रूप में पहला मौका 1959 में निरंजन नाम के निर्देशक की फिल्म ‘राज’ से मिला, लेकिन किसी कारणवश यह फिल्म पूरी नहीं हो सकी। इस फिल्म के बंद होने से पहले पंचम दा ने गीता दत्त और आशा भोसले की आवाज में दो गानों को संगीत दिया।

मशहूर कॉमेडियन महमूद 1961 में बन रही फिल्म ‘छोटे नवाब’ में एस डी बर्मन को बतौर संगीतकार लेना चाह रहे थे लेकिन उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। फिर महमूद की नजर बगल में ही तबला बजा रहे राहुल पर गई। महमूद को उनका तबला बजाना पसंद आया और उन्होंने इस फिल्म के लिए राहुल देव बर्मन को बतौर संगीतकार साइन कर लिया। 1965 में रिलीज हुई महमूद की फिल्म ‘भूत बंगला’ में पंचम दा ने एक छोटा सा रोल भी किया।

burman with mehmood

माउथ ऑर्गन फिल्मों में लाए

राज खोसला की फिल्म ‘सोलवां साल’ में आर डी बर्मन भी पिता एस डी बर्मन के सहयोगी के तौर पर काम कर रहे थे। इस फिल्म में हेमंत कुमार के गाए गाने ‘है अपना दिल तो आवारा’ में एस डी बर्मन ने अपने पिता के लिए माउथ ऑर्गन भी बजाया। इसके अलावा कई और फिल्मों में एस डी बर्मन और आर डी बर्मन ने एक साथ काम किया। हिंदी सिनेमा में इलेक्ट्रॉनिक ऑर्गन लाने का श्रेय भी पंचम दा को ही जाता है।

burman with mouthargun

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कटने के बाद भी सुपर हिट हुआ गाना

1970 में रिलीज देव आनंद की फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के संगीतकार पंचम दा थे। इस फिल्म में आशा भोसले की आवाज में गाया एक गाना ‘दम मारो दम’ को पंचम दा ने अपने संगीत से सजाया। यह गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि फिल्म के निर्माता और निर्देशक देव आनंद को लगा कि यह गाना पूरी फिल्म पर हावी हो जाएगा। इसलिए देव आनंद ने इस फिल्म में से गाने के कुछ हिस्से कटवा दिए।

बावजूद इसके दम मारो दम आज भी एक लोकप्रिय गाना है इस गाने के कई रीमिक्स बन चुके है। उस दौर में बने इस गाने का संगीत भारतीय रॉक संगीत में एक मील का पत्थर साबित हुआ।

burman da -dam maro dam

गजब इत्तेफाक

दार्जिलिंग में पंचम दा की मुलाकात रीता पटेल से हुई। रीता ने अपनी सहेलियों से शर्त लगाई कि वह आर डी बर्मन के साथ डेट पर जाएगी। रीता यह शर्त जीत गई और पंचम दा का दिल भी।

दोनों ने 1966 में शादी कर ली मगर यह शादी ज्यादा दिनों तक नही चल सकी और दोनो के बीच आपसी झगड़े इतना बढ़ गए कि बर्मन अलग रहने लगे और 1971 में तलाक भी हो गया।

इस हादसे के बाद पंचम दा काफी गम में रहने लगे और इसी दौरान होटल के कमरे में बैठकर पंचम दा ने फिल्म ‘परिचय’ का गाना ‘मुसाफिर हूं यारों’ कंपोज किया।

फिर पंचम दा ने 1980 गायिका आशा भोसले से शादी की। दोनो की यह शादी काफी हद तक सफल रही लेकिन इस बीच आरडी बर्मन को मां की देखभाल में जुटना पड़ा। उधर काम मिलना भी बंद हो गया था। आशा भोसले और पंचम दोनों अलग अलग रहने लगे लेकिन दोनो के बीच कोई मतभेद नहीं हुए।

burman da with rita patel

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आर डी बर्मन ने हिंदी सिने जगत के लगभग हर बड़े निर्देशक, निर्माता और अभिनेता के साथ काम किया और हिंदी सिनेमा को कई बड़ी हिट फिल्में दीं। लेकिन राजेश खन्ना की अदाकारी, किशोर कुमार की आवाज और पंचम दा के संगीत ने तहलका मचाया। इस तिकड़ी ने करीब 32 फिल्मों में एक साथ काम किया।

दिलों पर राज करते हैं

बॉक्स ऑफिस पर न सिर्फ ये फिल्में हिट रही बल्कि इन फिल्मों के गाने अब तक लोगो के दिलों पर राज करते हैं। कटी पतंग, मेरे जीवन साथी, अमर प्रेम, आपकी कसम और हाथी मेरे साथी जैसी फिल्में, रूप तेरा मस्ताना, मेरे सपनों का रानी जैसे गाने आज भी दर्शकों के दिलों पर राज करते हैं।

80 के दशक का अंत आते आते हिंदी सिनेमा में बप्पी लाहिरी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे संगीतकार छा चुके थे। इसी दौरान 1988 में आर डी बर्मन को हार्ट अटैक आया और उनको बाईपास सर्जरी के लिए लंदन के द प्रिसेस ग्रेस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।

हॉस्पिटल में होने के बावजूद पंचम दा ने बेड पर ही कई धुनें बना डाली। 1989 में विधू विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘परिंदा’ का संगीत उन्होंने हॉस्पिटल से ही बनाया।

4 जनवरी 1994 को हिंदी सिनेमा की शोले, यादों की बारात, मिली, सनम तेरी कसम, मासूम, कारवां, खेल खेल में और बुड्ढा मिल गया जैसी सुपरहिट फिल्मों मे संगीत देने वाले पंचम दा इस दुनिया को छोड़ गए। उनका निधन मुंबई में हुआ।



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