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Voda-Idea कस्टमर्स को तगड़ा झटका, बंद होने जा रही ये सर्विस
कस्टमर्स को टेलीकॉम कंपनियां बढ़ा झटका देने वाली है। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद ही Vodafone और Idea बड़े संकट में फंस गई हैं।
नई दिल्ली: कस्टमर्स को टेलीकॉम कंपनियां बढ़ा झटका देने वाली है। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद ही Vodafone और Idea बड़े संकट में फंस गई हैं। Idea और Vodafone कंपनी लगातार घाटे में जा रही है। इसीलिए कंपनी की बोर्ड बैठक में आज भारत में कंपनी के फ्यूचर पर फैसला हो सकता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, डीओटी की रकम को चुकाने के लिए कंपनी के पास और क्या ऑपशंस हैं इस पर भी बैठक में फैसला होगा। आपको बता दें कि दिसंबर 2019 में वोडा-आइडिया के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने कहा था कि अगर सरकार द्वारा आर्थिक मदद मुहैया नहीं कराई जाती है तो कंपनी बंद हो जाएगी।
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बड़ी मुश्किल में फंसी Idea-:
Idea-Vodafone पर 53,000 करोड़ रुपये का AGR (Adjusted Gross Revenues) बकाया है। वहीं, कंपनी को तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर के दौरान कुल 6,439 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। ये लगातार छठी तिमाही है, जब कंपनी को नुकसान हुआ है। इस खबर के बाद कंपनी के शेयर में 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखने को मिली है।
अब क्या होगा-
VM पोर्टफोलियो के रिसर्च हेड विवेक मित्तल का कहना है कि 'वोडाफोन आइडिया के पास पैसे नहीं हैं। ऐसे वो NCLT में जा सकती है, क्योंकि उसे 17 मार्च को मामले की होने वाली अगली सुनवाई से पहले बकाये का भुगतान करना है। अगर इस मामले को स्वीकार कर लेता है तो बैंकरप्टसी लॉ के तहत बकाया चुकाने पर रोक लग जाएगी और इस तरह कंपनी को भुगतान नहीं करना पड़ सकता है।
क्या है मामला-
AGR मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को राहत देने से इनकार किया है। अदालत ने इन कंपनियों के खिलाफ कठिन रवैया अपनाया है। 16 जनवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने दूरसंचार कंपनियों को सरकार को AGR चुकाने के आदेश दिए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकार को 1।47 लाख करोड़ रुपये का बकाया नहीं देने को लेकर दूरसंचार कंपनियों को फटकार लगाई है और इन सभी कंपनियों के टॉप अधिकारियों को तलब कर यह बताने के लिए कहा कि बकाये को चुकाने को लेकर शीर्ष अदालत के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया है।
विवेक कहते हैं कि ये टेलीकॉम कंपनियों के लिए बुरी खबर है। इससे Idea-Vodafone की स्थिति विशेष तौर पर कमजोर हुई है। उन्होंने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र में दो ही कंपनियों के बचे रह जाने का जोखिम पहले की तुलना में सबसे अधिक हो गया है।
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कंपनियों के पास किसी उपाय की कम ही गुंजाइश बची है, लेकिन अगर सरकार इसे लॉन्ग टर्म समस्या माने तो वह नीति में बदलाव पर विचार कर सकती है। MTNL और BSNL की हालत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 93000 से ज्यादा कर्मचारियों ने VRC के लिए आवेदन किया है।