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विषाक्तता का 75 फीसदी कारण वातावरण में व्याप्त प्रदूषण, कहां तक बचेंगे 'लेड' से

इंस्टेंट नूडल्स के बड़े ब्रांड 'मैगी' में लेड यानी सीसा होता है। मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले ने सुप्रीम कोर्ट ने ये बात स्वीकार की है। अब बात उठती है कि क्या बाजार में मिलने वाले अन्य खाद्य पदार्थों में लेड सुरक्षित मात्र के भीतर है? शायद नहीं।

Dharmendra kumar
Published on: 4 Jan 2019 4:12 PM IST
विषाक्तता का 75 फीसदी कारण वातावरण में व्याप्त प्रदूषण, कहां तक बचेंगे लेड से
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लखनऊ: इंस्टेंट नूडल्स के बड़े ब्रांड 'मैगी' में लेड यानी सीसा होता है। मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले ने सुप्रीम कोर्ट ने ये बात स्वीकार की है। अब बात उठती है कि क्या बाजार में मिलने वाले अन्य खाद्य पदार्थों में लेड सुरक्षित मात्र के भीतर है? शायद नहीं।

लेड तो प्राकृतिक रूप से मिट्टी में पाया जाता है। लेड का इस्तेमाल पेंट, प्लंबिंग पेट्रोल, डीजल, कॉस्मेटिक्स, पॉटरी, जेव्लेरी, खिलौने, कीटनाशकों आदि तमाम चीजों के निर्माण में किया जाता है।

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जहां तक खाद्य पदार्थों की बात है तो उनमें लेड इसलिए पाया जाता है, क्योंकि यह पर्यावरण में मौजूद रहता है। मिट्टी में मौजूद लेड सब्जियों या फलों के पौधों में अवशोषित हो जाता है। पौधों में जो लेड पहुंच जाता है वह खाद्य पदार्थों को लाख धोने या पकाने के बावजूद ख़त्म नहीं होता है। चूंकि लेड जमीन के भीतर और पर्यावरण में होता है सो यह पानी में भी आ जाता है।

किसी भी हेवी मेटल की भांति लेड भी बायो डीग्रेड नहीं होता और न ही पर्यावरण से लुप्त होता है। चूंकि फ़ूड सप्लाई से लेड को पूरी तरह हटाना संभव नहीं है सो अमेरिका जैसे उन्नत देशों में खाद्य पदार्थ या इंसानों के संपर्क में आने वाली वस्तुओं में लेड की सुरक्षित मात्रा सुनिश्चित की जाती है।

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2017 में जियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने कोलकाता में खाने पीने की चीजों पर एक स्टडी की थी। सब्जी, मछली, चिकन, अनाज आदि चीजों में लेड के स्तर की जाँच की गयी थी। स्टडी में पता चला कि कच्चे खाद्य पदार्थों में लेड की मात्रा लिमिट से बीस गुनी तक ज्यादा थी। रिपोर्ट में कहा गया कि लेड विषाक्तता का 75 फीसदी कारण वातावरण में व्याप्त डीजल प्रदूषण है।

ये स्थिति पूरे भारत की है। बाजार में मिलने वाली सब्जियों, मीट, चिकन, पेय पदार्थ आदि में कौन से हेवी मेटल हैं इसकी जानकारी लोगों को मिल ही नहीं पाती। एफडीए जांच पड़ताल करता रहता है लेकिन रोजमर्रा की वस्तुओं की कितनी जांच होती है ये सभी जानते हैं।

भारत के नेशनल हेल्थ पोर्टल में लेड विषाक्तता के बारे में बताया गया है। पोर्टल के अनुसार लेड विषाक्तता विश्व भर में 0.6 फीसदी बीमारियों का कारण है।

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विवादों में मैगी

मैगी काफी समय से विवादों में है। 2018 में हेल्थ सेफ्टी के मानक पूरा न कर पाने पर 550 टन मैगी नष्ट कर दी गयी थी और सरकार ने मुआवजे के तौर पर 640 करोड़ रुपये की भी मांग की थी। इसके पहले 2015 में उत्तर प्रदेश के फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने मैगी के सैंपल की जांच की थी तो उनमें लेड की मात्रा 17.2 पीपीएम पाई गई जबकि यह 0.01 से 2.5 पीपीएम तक ही होनी चाहिए। यह मामला उछालने पर कई राज्यों ने मैगी की ब्रिकी बंद कर दी थी। एफएसएसएआई ने भी मैगी को असुरक्षित मानते हुए नेस्ले को इसके उत्पादन और बिक्री पर रोक लगा दी थी।



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Dharmendra kumar

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