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Air Pollution Causes: वायु प्रदूषण यानी सांसों में जहर!

Air Pollution in India: वायु प्रदूषण से लोगों की औसत उम्र पांच साल तक कम हो रही है। जबकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वायु प्रदूषण से लोगों की उम्र लगभग 10 साल घट जाने की आशंका है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 8 Nov 2022 10:48 AM IST
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वायु प्रदूषण यानी सांसों में जहर! (photo: Newstrack)

Air Pollution in India: मैं पूर्वांचल के कुशीनगर ज़िले से आता हूँ। एक बार गाँव जा रहा था तो समूचे पूर्वांचल में एक पोस्टर लगा दिखा। जिस पर लिखा था-

ग़र होगी हवा व पानी शुद्ध

तभी पैदा होंगे गौतम बुद्ध।

एक स्वयं सेवी संगठन द्वारा लगाये गये इस स्लोगन से कई संदेश दिये जा रहे थे। जो आज भी स्लोगन लगाने वालों की दूरदर्शिता को हमें याद करने को विवश करता है। क्योंकि आज प्रदूषण हमारी सबसे अहम समस्या है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश बन बैठा है। दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। तक़रीबन 1.3 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वार्षिक औसत वायु प्रदूषण स्तर डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से अधिक है। 63 प्रतिशत से अधिक आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जो देश के अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक है।

दिल्ली, नोएडा, लखनऊ, पंजाब, चंडीगढ़, कानपुर, आगरा समेत इन कई जगहों में जहरीली हवा ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। लखनऊ में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 248 दर्ज है। कानपुर महानगर में धुंध और प्रदूषण की स्थिति खतरे से पार चली गई है। इस महानगर के बीचों बीच स्थित मोहल्ले नेहरूनगर में प्रदूषण की मात्रा 209 एक्यूआई है। नोएडा -ग्रेटर नोएडा में इस साल की सबसे ज्यादा दमघोंटू हवा रही। नोएडा का एक्यूआई 318 दर्ज किया गया। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 327 है। जिसके कारण राजधानी के लोगों को सांस लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा। पंजाब में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 206 दर्ज किया गया है।

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वायु प्रदूषण से लोगों की औसत उम्र कम हो रही

वायु प्रदूषण से लोगों की औसत उम्र पांच साल तक कम हो रही है। जबकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वायु प्रदूषण से लोगों की उम्र लगभग 10 साल घट जाने की आशंका है। यही नहीं, यदि प्रदूषण का यही स्तर बना रहता है तो लखनऊ के निवासियों की जीवन प्रत्याशा 9.5 वर्ष कम हो जाएगी। बच्चे और मातृ कुपोषण औसत जीवन प्रत्याशा को लगभग 1.8 वर्ष कम कर देता है, जबकि धूम्रपान औसत जीवन प्रत्याशा को 1.5 वर्ष कम करता है। वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में प्रायः जन्म के समय कम वज़न, अस्थमा, कैंसर, मोटापा, फेफड़ों की समस्या और ऑटिज़्म की समस्या देखी जाती है। दूसरी ओर हर साल वायु प्रदूषण देश में होने वाली करीब 9 लाख 80 हजार असमय मौतों के लिए जिम्मेवार है। वहीं इसके चलते हर साल 350,000 बच्चे अस्थमा का शिकार हो जाते हैं। वहीं 24 लाख लोगों को हर साल इसके कारण होने वाली सांस की बीमारी के चलते हॉस्पिटल जाना पड़ता है। हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था को 15,000 करोड़ डॉलर यानी 12.28 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। यदि सकल घरेलू उत्पाद के रूप में देखें तो यह नुकसान कुल जीडीपी के 5.4 फीसदी के बराबर है। इसके कारण देश में हर साल 49 करोड़ काम के दिनों का नुकसान हो जाता है।

ग़ौरतलब है कि 51 फीसदी प्रदूषण औद्योगिक उत्सर्जन से, 27 फीसदी वाहनों से, 17 फीसदी फसल जलाने से और 5 फीसदी अन्य स्रोतों से होता है। प्रदूषण का एक बड़ा कारण खाना पकाने के लिए बायोमास जलाना है। सर्दियों और वसंत के महीनों में, कृषि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फसल अवशेष जलाना धुएं, धुंध और कण प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। भारत में ग्रीनहाउस गैसों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम है। लेकिन चीन और अमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्पादक देश है। धूम्रपान न करने वालों पर 2013 के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारतीयों में यूरोपीय लोगों की तुलना में 30 फीसदी कमजोर फेफड़े हैं।

1998 के बाद से औसत वार्षिक कण प्रदूषण में 61.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, 2013 के बाद से, दुनिया में प्रदूषण में लगभग 44 प्रतिशत वृद्धि भारत से हुई है। यदि वर्तमान प्रदूषण का स्तर बना रहता है, तो उत्तरी भारत के गंगा के मैदानों में मौजूद देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी औसतन 7.6 वर्ष की जीवन प्रत्याशा खोने की राह पर हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देश के अनुसार हवा में 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर सूक्ष्म कण प्रदूषण (पीएम 2.5) से अधिक नहीं होना चाहिए। शिकागो विश्वविद्यालय के मिल्टन फ्रीडमैन के अर्थशास्त्र में विशिष्ट सेवा प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन और शिकागो विश्वविद्यालय (ईपीआईसी) में ऊर्जा नीति संस्थान में उनकी टीम द्वारा विकसित, एक्यूएलआई हाल के शोध में निहित है, जो दीर्घकालिक मानव जोखिम के बीच संबंध को मापता है।

एक्यूएलआई के अनुसार, नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के लक्ष्य का अगर 25 प्रतिशत हासिल कर लिया जाए तो भारत की औसत राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा 1.4 वर्ष और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के निवासियों के लिए 2.6 वर्ष बढ़ जाएगी।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के हालिया आंकड़ों के अनुसार, एनसीएपी के तहत शामिल 132 शहरों में से 95 शहरों में 2017 की तुलना में 2021 में पीएम10 के स्तर में समग्र सुधार देखा है।

Air Pollution (photo: social media )

शरीर के सभी अंगों पर व्यापक प्रभाव

वायु प्रदूषण का शरीर के सभी अंगों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। अध्ययनों के अनुसार, जहरीले प्रदूषक नाक या मुंह से फेफड़ों तक अपना रास्ता बनाते हैं। लंबे समय तक प्रदूषकों के संपर्क में रहने से किडनी में रक्त वाहिकाओं को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, नाइट्रोजन ऑक्साइड रक्त वाहिकाओं को प्रभावित कर सकते हैं जिससे कोरोनरी धमनी में कैल्शियम का अधिक तेजी से निर्माण होता है। नतीजतन हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।

2019 के एक अध्ययन में पाया गया था कि वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप मनोरोग की स्थिति हो सकती है। जो लोग उच्च स्तर के प्रदूषण के संपर्क में हैं, वे अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया, बाइपोलर विकार और यहां तक कि पर्सनालिटी विकार जैसी मानसिक स्थितियों से पीड़ित होने की संभावना रखते हैं।

इसके अलावा, इस बात के प्रमाण हैं कि विषाक्त पदार्थ और वायु प्रदूषक भी सेंट्रल नर्वस सिस्टम से जुड़े हुए हैं। वे मस्तिष्क के कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं अंततः मस्तिष्क कोशिकाओं के न्यूरॉन्स के विघटन और मृत्यु का कारण बन सकते हैं।

स्वास्थ्य प्रभाव संस्थान (HEI) द्वारा जारी 'स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 (SoGA 2020) रिपोर्ट के अनुसार PM2.5 और PM10 के उच्च स्तर के कारण 1,16,000 से अधिक भारतीय शिशुओं की मृत्यु हुई। इनमें से आधे से अधिक मौतें PM2.5 से जुड़ी थीं, जबकि अन्य 'इंडोर प्रदूषण' जैसे- खाना पकाने के लिये कोयला, लकड़ी और गोबर आदि के उपयोग से होने वाले प्रदूषण से जुड़ी हुई थीं।

2017 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़

लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल द्वारा प्रकाशित '2017 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़' रिपोर्ट की मानें तो भारत, जहाँ वैश्विक आबादी का तकरीबन 18 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है, वहां वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली कुल असामयिक मौतों में से 26 प्रतिशत मौतों के मामले दर्ज किये जाते हैं। एक अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा यह जाँचने के लिये एक मॉडल बनाया गया कि PM2.5 का जोखिम गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को किस प्रकार बढ़ाता है। इस मॉडल के तहत मातृ आयु, तापमान तथा आर्द्रता, मौसमी भिन्नता और गर्भावस्था के नुकसान में दीर्घकालिक रुझानों के समायोजन के बाद PM2.5 में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी के कारण गर्भावस्था पर पड़ने वाले जोखिम की गणना की गई।

अध्ययन के अनुसार, PM2.5 में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी के कारण गर्भावस्था के नुकसान की संभावना 3 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। शहरी क्षेत्रों की माताओं की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की माताओं या वे जिनकी गर्भावस्था के दौरान आयु अधिक हो, में जोखिम की संभावना अधिक पाई गई।गर्भावस्था के नुकसान के कुल मामलों में से 77 प्रतिशत भारत में, 12 प्रतिशत पाकिस्तान में और 11 प्रतिशत बांग्लादेश में दर्ज किये गए थे।

2019 में दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 भारत में थे। 2016 के आंकड़ों पर आधारित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में कम से कम 140 मिलियन लोग ऐसी हवा में सांस लेते हैं जो डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा से 10 गुना या उससे भी ज्यादा खराब है। दुनिया में वायु प्रदूषण के उच्चतम लेवल वाले दुनिया के 20 शहरों में से 13 भारत में है।

ऐसा नहीं है कि अकेले भारत को ही वायु प्रदूषण का दंश झेलना पड़ रहा है। दुनिया के अनेक देशों पर भी इसका गंभीर असर पड़ रहा है। जहां इसके चलते चीन की अर्थव्यवस्था को 90,000 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं अमेरिका को होने वाला नुकसान करीब 60,000 करोड़ डॉलर का था। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो जीवाश्म ईंधन से होने वाले इस वायु प्रदूषण से दुनिया भर में हर साल 40 लाख लोग काल के गाल में समां जाते हैं। वहीं वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका असर देखें तो यह करीब 2 लाख 92 हजार करोड़ डॉलर के बराबर होता है।

मूलतः इन सबके लिए दिन प्रतिदिन फॉसिल फ्यूल का बढ़ता उपयोग जिम्मेदार है। वायु प्रदूषण के 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे कण जिन्हें पीएम 2.5 के नाम से जाना जाता है। उसके कारण होने वाली बीमारी के चलते हर साल कामगार अपने कामों पर नहीं जा पाते। जिससे लगभग 180 करोड़ दिनों के बराबर काम का नुकसान हो जाता है।

आंकड़े दिखाते हैं कि वैश्विक स्तर पर फॉसिल फ्यूल के चलते सड़क दुर्घटनाओं की तुलना में तीन गुना अधिक मौतें होती हैं। साथ ही यह मुख्य रूप से निम्न आय वाले देशों में हर साल 5 वर्ष या उससे कम आयु वाले 40,000 बच्चों की मौतों के लिए जिम्मेवार है। जीवाश्म ईंधन से होने वाले प्रदूषण के चलते लगभग 1 करोड़ 60 लाख बच्चे बिगड़ते स्वास्थ्य का सामना कर रहे हैं। हाल ही में छपी रिपोर्ट स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2019 ने भी इस बात की पुष्टि की है। इस रिपोर्ट के अनुसार अकेले भारत में 12.4 लाख लोग हर वर्ष वायु प्रदूषण शिकार बन जाते हैं। हमें इससे बचने की ज़रूरत है। यह भी मानना चाहिए कि इस के लिए अब तक किये गये सारे के सारे प्रयास नाकाफ़ी है।

( लेखक पत्रकार हैं ।)



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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