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Obesity In Humans: इंसान का बढ़ता वज़न, चिंता में विमानन कंपनियां
Obesity In Humans: दुनिया भर की तमाम विमानन कंपनियां और एयरलाइंस चाहती हैं कि इंसानों में मोटापा खत्म हो जाए । लोगों में बढ़ता मोटापा पूरी दुनियां के हवाई उद्योग के लिए भारी चिंता का सबब बनता जा रहा है ।
Obesity In Humans: दुनिया भर की तमाम विमानन कंपनियां और एयरलाइंस चाहती हैं कि इंसानों में मोटापा खत्म हो जाए । लोगों में बढ़ता मोटापा पूरी दुनियां के हवाई उद्योग के लिए भारी चिंता का सबब बनता जा रहा है । एयरलाइंस और विमान बनाने वाली कंपनियां यह मानती है कि अगर लोग पतले हो जाएं तो इन कंपनियों का मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है , हाल ही में फाइनैंस कंपनी जेफरीज ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया कि अगर यात्रियों का औसत वजन 4.5 किलो घट जाए तो अमेरिका की युनाइटेड एयरलाइंस को सालाना आठ करोड़ डॉलर की बचत होगी।
यात्रियों का वजन विमान कंपनियों के लिए एक बड़ी चिंता है क्योंकि विमान में जितना ज्यादा वजन होता है, वह उतना ही ज्यादा ईंधन प्रयोग करता है। ईंधन और मजदूरी विमान कंपनियों के लिए दो सबसे बड़े खर्चे हैं। इसमें सिर्फ ईंधन पर खर्च कुल लागत का 25 फीसदी है।खर्च को कम करने के लिए दुनियां भर की एयरलाइंस ने कई तरह के नुस्खे आजमाए हैं। मसलन, यात्रियों के सामान की वजन सीमा कम की गयी है , यात्रा के दौरान पत्रिकाएं हटायी गयी हैं . बर्तनों और विमान में खाना बांटने के दौरान इस्तेमाल होने वाली कार्ट का वजन कम किया गया है।
रिपोर्ट कहती है कि अगर यात्रियों का औसत वजन 4.5 किलो कम हो जाए तो हर युनाइटेड फ्लाइट 800 किलोग्राम से ज्यादा हल्की हो जाएगी। इससे सालाना 276 गैलन तेल की बचत होगी । 2023 में ईंधन का औसत दाम 2.89 अमेरिकी डॉलर प्रति गैलन रहा है। इस हिसाब से युनाइटेड को हर साल आठ करोड़ डॉलर बचेंगे। सभी एयरलाइंस को इसी तरह का लाभ पहुंचेगा.” मसलन, ऑस्ट्रेलियाई एयरलाइंस ने पिछले महीने कहा कि उसकी ईंधन लागत 20 करोड़ डॉलर से ज्यादा बढ़ सकती है और अगर ईंधन की कीमतें इसी तरह ऊंची रहती हैं तो किराये बढ़ाने पड़ सकते हैं।ईंधन के दाम में प्रति गैलन 10 अमेरिकी सेंट यानी करीब आठ रुपये की वृद्धि होने पर विमानन कंपनियों का खर्च सालाना 2 अरब डॉलर बढ़ जाता है।
मोटापा बनता महामारी
मोटापा अपने आप में तो एक बीमारी है ही, यह कैंसर, डायबीटीज और हृदय रोगों की भी सबसे बड़ी वजहों में से एक है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को आधार बनाया गया है।बॉडी मास इंडेक्स के तहत किसी व्यक्ति की लंबाई और उसके वजन का अनुपात निकाला जाता है ।विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइंस में बीएमआई के 25 से ज्यादा स्कोर को ओवरवेट और 30 से ज्यादा स्कोर को मोटापे की श्रेणी में रखा गया।
वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन की नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मौजूदा हालात जारी रहे तो 2035 तक दुनिया भर में चार अरब से ज्यादा लोग मोटापे से जूझेंगे ।फेडरेशन का 2023 का एटलस दिखा रहा है कि अगले 12 वर्षों में दुनिया की 51 फीसदी आबादी मोटापे का शिकार होगी। मोटापे की चपेट में आने वाले लोगों में बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा होगी।
2020 के मुकाबले 2035 तक मोटापे का शिकार बच्चों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। यानी 20.8 करोड़ लड़के और 17.5 करोड़ लड़कियों को भारी भरकम शरीर से जूझने पर मजबूर होना पड़ेगा। 2020 में दुनिया की 38 फीसदी आबादी ओवरवेट और मोटापे की जद में थी। रिपोर्ट के मुताबिक अगले 12 साल में एशिया और अफ्रीका के कम और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में मोटापा सबसे ज्यादा बढ़ेगा।
पांच शीर्ष देशों में भारत भी
कभी मोटापा पश्चिमी देशों की समस्या माना जाता था । लेकिन हाल के सालों में यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों में फैल रहा है। खासकर भारत में यह तेज़ी से बढ़ रहा है।लंबे समय से कुपोषित और कम वजन वाले लोगों के देश के रूप में देखे जाने वाला भारत पिछले कुछ सालों में मोटापे के मामले में शीर्ष पांच देशों में पहुंच गया है।
लांसेट पत्रिका में प्रकाशित अनुमान के मुताबिक 2016 में 13.5 करोड़ रूपये भारतीय अधिक वज़न या मोटापे की समस्या से जूझ रहे है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। देश की कुपोषित आबादी की जगह अधिक वज़न वाले लोग ले रहे हैं। एक शोध में बताया गया कि भारत में 40 प्रतिशत महिलाएं और 12 फीसदी पुरुष मोटापे का शिकार हैं, हालांकि यह मोटापा सिर्फ पेट के बढ़े आकार के कारण है।
अगर बीएमआई के आधार पर आंका जाए तो 23 फीसदी महिलाएं ही मोटापे की श्रेणी में आएंगी, आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि भारत में साल 2015-16 में पांच साल से कम उम्र के 2.1 प्रतिशत बच्चों का वज़न ज़्यादा था। यह संख्या हाल ही में किए गए सर्वेक्षण में बढ़कर 3.4 प्रतिशत हो गई।भारत में 135 मिलियन लोग मोटापे का शिकार है। इसी रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में लगभग 11 प्रतिशत लोग 2035 तक मोटे होंगे, 2020 और 2035 के बीच वयस्क मोटापे में वार्षिक वृद्धि 5.2 प्रतिशत होगी।
इंसानों में बढ़ते मोटापे के पीछे सुस्त जीवनशैली और सस्ते वसायुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन, अनियमित जीवन शैली मुख्य वजह हैं।इसके चलते ही ज़्यादातर लोग, खासकर शहरी भारत के लोग अपने आकार से बाहर हो गए है। मेडिकल साइंस कहती है कि हर 10 किलो अतिरिक्त वज़न तीन साल तक के मानव जीवन को कम कर सकता है ।इसलिए अगर किसी व्यक्ति का वज़न मानक से 50 किलो अधिक है तो वह अपनी ज़िंदगी के 15 साल कम कर रहा है। ये भी देखा है कि अधिक वज़न और मोटे रोगियों की कोविड के दौरान मृत्यु दर तीन गुना अधिक थी।