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Broken Heart Syndrome Research: दिल टूटने से वाकई में हो सकती है मौत, नई Study में हुआ खुलासा

Broken Heart Syndrome Research: ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम तब होता है जब हृदय की मांसपेशियां अचानक कमजोर पड़ जाती हैं और हृदय के बाएं चेम्बर का आकार बदल जाता है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shivani
Published on: 22 Jun 2021 11:50 AM IST (Updated on: 22 Jun 2021 1:34 PM IST)
Broken Heart Syndrome Research: दिल टूटने से वाकई में हो सकती है मौत, नई Study में हुआ खुलासा
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Heart Broken Syndrome Photo Social media

Broken Heart Syndrome Research: दिल टूट जाना, बहुत प्रचलित मुहावरा है। अक्सर सुनने में आता है कि दिल टूटने से किसी ने खटिया पकड़ ली या दिल टूटने से किसी की मौत हो गई। ये जान लीजिए कि ये कोई मुहावरा मात्र नहीं बल्कि सच्चाई है। ये सच्चाई है कि अचानक किसी इमोशनल शॉक, किसी गम या किसी घटना के चलते दिल टूटने से इंसान की मौत हो सकती है। अब ये पता लगा लिया गया है कि ऐसा आखिर क्यों होता है। लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज के वैज्ञानिकों ने पाया है कि जीवन में तनावपूर्ण घटनाओं के चलते हृदय के सेल्स में दो मॉलिक्यूल के लेवल बढ़ जाते हैं जिनके चलते 'टेकोटसुबो कार्डियोम्योपैथी' या ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम डेवलप हो जाता है। ये बेहद खतरनाक अवस्था होती है जिसका कोई इलाज भी नहीं है।

क्या है ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम (what is broken heart syndrome)

ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम तब होता है जब हृदय की मांसपेशियां अचानक कमजोर पड़ जाती हैं और हृदय के बाएं चेम्बर का आकार बदल जाता है।

लेकिन ऐसा क्यों होता है और इसकी बायोलॉजिकल वजह क्या है, इस रहस्य लेकर वैज्ञानिक हैरान थे। लेकिन अब कई स्टडी (Broken Heart Syndrome Study) और (Broken Heart Syndrome Research) रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने इस अवस्था को माइक्रो आरएनए 16 व 26 ए से जुड़ा पाया है। जीन की डिकोडिंग को रेगुलेट करने वाले ये माइक्रो आरएनए स्ट्रेस के दौरान सक्रिय होते हैं। इन मॉलिक्यूल का संबंध डिप्रेशन, एंग्जायटी और स्ट्रेस से है। इससे पता चलता है कि लम्बे समय तक परेशान रहने और अचानक कोई भावनात्मक धक्का लगने से ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम शुरू हो जाता है। इसके लक्षण हार्ट अटैक जैसे होते हैं जिसमें सीने में दर्द, सांस लेने में दिक्कत और हार्ट फेल तक हो सकता है।



ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की पहचान सबसे पहले 1990 में जापान में की गई थी। जिस वैज्ञानिक ने इसका पता लगाया उन्हीं के नाम 'तकोटसुबो' पर इसका नामकरण किया गया है।

एक अनुमान के अनुसार यूनाइटेड किंगडम में हर साल इससे 2500 लोग प्रभावित होते हैं जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है।

इस स्टडी के मुख्य लेखक प्रोफेसर शॉन हार्डिंग का कहना है कि तकोटसुबो सिंड्रोम एक गंभीर अवस्था है लेकिन ये क्यों होता है ये अभी तक रहस्य बना हुआ था। हम अभी ये नहीं समझ पाए हैं कि अचानक किसी भावनात्मक शॉक पर कुछ ही लोगों में ऐसा रिएक्शन क्यों होता है।

इस स्टडी से ये पुष्टि होती है कि पहले से चले आ रहे स्ट्रेस और उससे जुड़े माइक्रो आरएनए के चलते कुछ व्यक्तियों में आगे चल कर किसी विशेष तनावपूर्ण हालात में तकोटसुबो सिंड्रोम हो सकता है।


ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन के एसोसिएट मेडिकल डायरेक्टर प्रोफेसर मेटिन एवकिरन ने कहा है कि तकोटसुबो सिंड्रोम अचानक होने वाली घातक अवस्था है जिसके कारणों के बारे में बहुत सीमित जानकारी है। बहुत जरूरी है कि हम इसके बारे में अधिक से अधिक जानें और इसे रोकने व इसके इलाज के नए रास्ते तलाश करें। इस नई रिसर्च से हमें इस रहस्यमयी बीमारी को समझने में काफी मदद मिलेगी। अभी इस सिंड्रोम का दुबारा अटैक रोकने का कोई इलाज नहीं है।

इस महत्वपूर्ण खोज से अब इलाज की नई दिशा का रास्ता खुल सकेगा और भविष्य में मौतों को रोका जा सकेगा।



Shivani

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