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Cancer: नई खोज - ऐसा ब्लड टेस्ट जो लक्षण प्रकट होने से पहले ही कैंसर का पता लगा लेगा
Cancer: वैज्ञानिक इंसानी शरीर में विशिष्ट डीएनए, कोशिकाओं और अणुओं की तलाश कर रहे हैं जो कैंसरग्रस्त हो सकते हैं। उन्होंने रक्त में इनमें से कुछ मार्करों को खोजने में प्रगति की है, लेकिन नियमित जांच के लिए उन्हें सटीक और किफायती तरीके से ढूंढना अभी भी मुश्किल है।
Cancer: बायोप्सी जैसे सर्जिकल प्रोसीजर के बिना कैंसर का पता लगाने और उस पर नज़र रखने के तरीकों का पता लगाने के लिए कोशिशें बरसों-दशकों से जारी हैं। क्योंकि अक्सर और दुर्भाग्य से कैंसर का पता बहुत देर से चलता है जब वे पहले ही मेटास्टेसिस यानी फ़ैल चुके होते हैं और इलाज करना कठिन हो जाता है। कैंसर पर दुनिया भर में अनुसंधान चल रहा है, जिसमें कोई लक्षण आने से पहले ही कैंसर को पकड़ने के संभावित तरीके की तलाश की जा रही है।
वैज्ञानिक इंसानी शरीर में विशिष्ट डीएनए, कोशिकाओं और अणुओं की तलाश कर रहे हैं जो कैंसरग्रस्त हो सकते हैं। उन्होंने रक्त में इनमें से कुछ मार्करों को खोजने में प्रगति की है, लेकिन नियमित जांच के लिए उन्हें सटीक और किफायती तरीके से ढूंढना अभी भी मुश्किल है। अब इस दिशा में कुछ अच्छी प्रगति की खबर है।
अब अमेरिका के प्रसिद्द रॉकफेलर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के साथ मिलकर एक प्रकार का ब्लड टेस्ट डेवलप किया है जो कैंसर कोशिकाओं द्वारा पैदा किये गए एक प्रमुख प्रोटीन पर फोकस करता है। फिलवक्त इंसानी शरीर में अधिकांश प्रोटीन परीक्षणों के जरिये आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन ये विश्वसनीय रूप से यह बताने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि किसी को कैंसर है या नहीं क्योंकि ये प्रोटीन स्वस्थ टिश्यू में भी पाए जा सकते हैं।
तो फिर क्या है नया
शोधकर्ताओं ने ओआरएफ1पी नामक प्रोटीन का अध्ययन किया, जो हमारे डीएनए में एल1 नामक एक विशिष्ट जेनेटिक तत्व द्वारा बनता है। ओआरएफ 1पी अक्सर कई प्रकार के कैंसर में पाया जाता है, ख़ास तौर पर उनमें जिनमें पी53 नामक एक महत्वपूर्ण जीन ठीक से काम नहीं कर रहा है। इस प्रकार के कैंसर काफी आम हैं और बहुत खतरनाक हो सकते हैं। नवीनतम शोध पेपर के सह-लेखक, रॉकफेलर रिसर्च एसोसिएट प्रोफेसर जॉन लाकावा ने कहा है कि - आपको एक स्वस्थ व्यक्ति के ब्लड सर्कुलेशन में ‘ओआरएफ1पी’ नहीं मिलना चाहिए।
लक्षणों से पहले कैंसर का पता लगाना
दिलचस्प बात यह है कि माइक्रोस्कोप के तहत कैंसर का पता चलने से पहले ही ‘ओआरएफ1पी’ का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है और इसका पता लगाने के लिए रेगुलर प्रयोगशाला परीक्षणों का उपयोग करना संभव नहीं है। इस बाधा को दूर करने के लिए, शोधकर्ताओं ने सिंगल मॉलिक्यूल एरेज़ (सिमोआ) नामक एक अति-संवेदनशील तकनीक का उपयोग किया, जो खून में बेहद कम स्तर पर ‘ओआरएफ1पी’ का पता लगा सकता है।
रॉकफेलर लैब के प्रमुख माइकल पी. राउट कहते हैं - घातक कैंसर के शुरुआती निदान परीक्षण के रूप में इस टेस्ट में अभूतपूर्व क्षमता है। इस प्रकार के अति संवेदनशील जांच उपकरण नए तरीकों से रोगी के परिणामों में सुधार करने के लिए तैयार हैं। अपने प्रारंभिक परीक्षणों में रिसर्च टीम को एडवांस्ड स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर वाले रोगियों में ‘ओआरएफ1पी’ प्रोटीन मिला। भले ही यह बहुत कम मात्रा में मौजूद था लेकिन ‘सिमोआ’ ने इसे उठा लिया।
प्लाज्मा का विश्लेषण
शोधकर्ताओं ने 20 से 90 वर्ष की आयु के 400 स्वस्थ लोगों के प्लाज्मा का भी विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि उनमें से 97 से 99 फीसदी में ‘ओआरएफ1पी’ का पता नहीं चल सका। जिन पांच व्यक्तियों के परीक्षणों में ‘ओआरएफ1पी’ की ध्यान देने योग्य मात्रा पाई गई, उनमें से जिस व्यक्ति में इस प्रोटीन का स्तर सबसे अधिक था, उसे प्रारंभिक परीक्षण के छह महीने बाद एडवांस्ड प्रोस्टेट कैंसर का पता चला। उम्मीद की जाती है कि इस नई खोज से मानव जाति को कैंसर ले लड़ने में काफी मदद मिल सकेगी।