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Cesarean Delivery: भारत में सिजेरियन डिलीवरी में खतरनाक तेजी, आइए जाने डिटेल में

Cesarean Delivery: भारत में सिजेरियन या सी-सेक्शन डिलीवरी में खतरनाक वृद्धि देखी जा रही है। ये हालात कुछ राज्यों में तो बहुत ही हैरान करने वाली है।

Neel Mani Lal
Published on: 15 Jan 2023 10:31 AM IST (Updated on: 15 Jan 2023 11:36 AM IST)
Cesarean Delivery
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Cesarean Delivery (Pic: Social Media)

Cesarean Delivery: भारत में सिजेरियन या सी-सेक्शन डिलीवरी में खतरनाक वृद्धि देखी जा रही है। ये हालात कुछ राज्यों में तो बहुत ही हैरान करने वाली है। निजी और सरकारी ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों या क्लीनिकों में ही सिजेरियन ज्यादा किये जाते हैं। सरकारी अस्पतालों की भी यही स्थिति है। सर्जिकल डिलीवरी में दोनों का बराबर का योगदान है। हाल ही में जारी स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में सार्वजनिक अस्पतालों में 15 प्रतिशत से अधिक प्रसव सिजेरियन थे, जबकि निजी अस्पतालों में यह संख्या लगभग 38 प्रतिशत तक पहुंच गई।

डब्लूएचओ की गाइडलाइंस का उल्लंघन

भारत में सी-सेक्शन का बढ़ता चलन डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस का उल्लंघन करता है, जो कहती है कि किसी भी देश में इस तरह के प्रसव 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली की रिपोर्ट बताती है कि - "यह देखा गया है कि निजी सुविधाओं में सी-सेक्शन डिलीवरी का उच्च प्रतिशत पाया गया था। सार्वजनिक अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलीवरी की तुलना में निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलीवरी के बहुत अधिक प्रतिशत का चलन है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनावश्यक सीजेरियन सेक्शन एक अतिभारित स्वास्थ्य प्रणाली में संसाधनों को अन्य सेवाओं से दूर खींच लेता है। बता दें कि स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली देश भर में सुविधा स्तर के स्वास्थ्य डेटा के लिए सूचना का एक विशेष स्रोत है।

अंडमान निकोबार सबसे आगे

मार्च 2022 तक एचएमआईएस में रिपोर्ट किए गए निजी संस्थानों में सी-सेक्शन प्रसव का उच्चतम प्रतिशत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में दर्ज किया गया, इसके बाद लगातार दो वर्षों तक त्रिपुरा का स्थान रहा। 2020-21 में, अंडमान ने निजी सुविधाओं में 95.45 प्रतिशत सिजेरियन प्रसव की सूचना दी, अगले वर्ष यह बढ़कर 95.56 प्रतिशत हो गया। इसी तरह, त्रिपुरा ने 2020-21 में ऐसी डिलीवरी का 93.72 प्रतिशत दर्ज किया। 2021-22 में यह आंकड़ा 93.03 फीसदी पर पहुंच गया। पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने निजी सुविधाओं में किए गए सी-सेक्शन मामलों के उच्च प्रतिशत की सूचना दी है। जबकि पश्चिम बंगाल ने 2021-22 में 83.88 प्रतिशत मामले दर्ज किए, उसी वर्ष ओडिशा ने 74.62 प्रतिशत मामले दर्ज किए। कई राज्यों ने निजी सुविधाओं में इन दो वर्षों में सी-सेक्शन में पांच से 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी।

महाराष्ट्र सरकार ने लिखा पत्र

पिछले साल दिसंबर में महाराष्ट्र सरकार के परिवार कल्याण विभाग ने स्त्री रोग विशेषज्ञों के पेशेवर संगठनों से निजी अस्पतालों में सिजेरियन सेक्शन जन्मों की संख्या को कम करने में मदद करने के लिए कहा है। पिछले वर्ष निजी अस्पतालों में लगभग 35 फीसदी डिलीवरी सी-सेक्शन के माध्यम से हुई हैं। विभाग ने जोर देकर कहा है कि सिजेरियन प्रक्रिया का उपयोग केवल संकेत दिए जाने पर ही किया जाना चाहिए। डब्लूएचओ ने दस संकेत बताएं हैं जिनके आधार पर सिजेरियन का निर्णय लिया जाना चाहिए। इन्हें रॉबसन क्राइटेरिया कहा जाता है। डब्ल्यूएचओ की 137 देशों के आंकडे की रिपोर्ट में यह तथ्य पाया गया है कि विश्व में भर में केवल 14 देश ही ऐसे हैं जहां मानक के अनुरूप सिजेरियन किया जाता है।

महामारी और अनियमित बाजार

सी-सेक्शन भारत सहित विकसित और विकासशील दोनों देशों में तेजी से आम हो गया है। विशेषज्ञ इस प्रवृत्ति को महामारी और अनियमित बाजार करार देते हैं। भारत ने 2009 से 2019 में सार्वजनिक अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलीवरी में 300 प्रतिशत और निजी अस्पतालों में 400 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के तहत एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में कुल जन्मों में से 14 प्रतिशत से अधिक सी-सेक्शन के माध्यम से हुए थे यानी लगभग 19 लाख जन्म सी-सेक्शन के माध्यम से हुए थे। ये सार्वजनिक अस्पतालों का आंकड़ा है। 2010 के पहले यह संख्या वर्तमान के आधे से भी कम थी।2008-09 में, सार्वजनिक अस्पतालों ने कुल 73.13 लाख जन्म दर्ज किए, जिनमें से 4.61 लाख सी-सेक्शन थे - केवल 6 प्रतिशत से थोड़ा अधिक।

नुकसान और फायदे

सी-सेक्शन ऑपरेशन को कुछ एक्सपर्ट्स द्वारा "चिकित्सकीय रूप से अनुचित" करार दिया गया है। आईआईएम, अहमदाबाद द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि "नवजात शिशु के लिए, इसका मतलब है देर से स्तनपान कराना, जन्म के समय वजन कम होना, श्वसन रुग्णता, अस्पताल में भर्ती होने की दर में वृद्धि, कम अपगार स्कोर और लंबे समय में इसका प्रभाव।" हालाँकि, इसे एक जीवन रक्षक प्रक्रिया भी माना जाता है जिसे गर्भावस्था की जटिलताओं के दौरान किया जा सकता है जब सामान्य प्रसव चुनौतीपूर्ण लगता है। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि दुरुपयोग न किया जाए तो सी-सेक्शन एक चिकित्सा वरदान है। खासतौर पर जब बच्चे की असामान्य स्थिति जैसे विभिन्न कारणों से प्राकृतिक, योनि प्रसव में जटिलताएं होती हैं।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, चिकित्सकों को "किसी दिए गए लक्ष्य या दर को पूरा करने के लिए विशुद्ध रूप से सीजेरियन सेक्शन नहीं करना चाहिए, बल्कि मरीजों की जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए।" इसमें आगे कहा गया है, "सिजेरियन सेक्शन महत्वपूर्ण जटिलताओं, विकलांगता या मृत्यु का कारण बन सकता है, विशेष रूप से उन सेटिंग्स में जहां सुरक्षित सर्जरी करने या संभावित जटिलताओं का इलाज करने की सुविधाओं की कमी होती है। उनकी बढ़ी हुई लागत के कारण, अनावश्यक सीजेरियन सेक्शन की उच्च दर संसाधनों को अतिभारित और कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियों में अन्य सेवाओं से दूर खींच सकती है।"



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Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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