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Health : सिगरेट नहीं पीते तब भी 'सीओपीडी' रोग का खतरा
नई दिल्ली। दुनिया भर में 'क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज' (सीओपीडी) पांचवां सबसे घातक रोग बन चुका है। विश्व में तीन करोड़ से अधिक जिंदगियों को प्रभावित करने वाले सीओपीडी को हमेशा धूम्रपान करने वालों का रोग माना जाता रहा है लेकिन अब नॉन स्मोकिंग सीओपीडी भी एक बड़ा मामला बन चुका है। सीओपीडी 50 वर्ष से अधिक के भारतीयों में मौत का दूसरा अग्रणी कारण है। हालिया स्टडीज़ से पता चला है कि ऐसे अन्य अनेक जोखिम कारक हैं, जो धूम्रपान नहीं करने वालों में रोग पैदा करते हैं।
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असल में दुनिया भर में करीब आधी जनसंख्या बायोमास ईंधन (लकड़ी, कोयला, कंडा आदि) के धुएं के संपर्क में आती है जिसका उपयोग रसोई और हीटिंग के लिए किया जाता है। इसीलिए ग्रामीण इलाकों में बायोमास के संपर्क में आना सीओपीडी का मुख्य कारण है। बता दें कि विकासशील देशों में सीओपीडी से होने वाली करीब 50 फीसदी मौतें बायोमास के धुएं के कारण होती हैं, जिसमें से 75 फीसदी महिलाएं होती हैं। बायोमास ईंधन जैसे लकड़ी, पशुओं का गोबर, फसल के अवशेष, धूम्रपान करने जितना ही सक्रिय जोखिम पैदा करते हैं।
महिलाओं में सीओपीडी के मामलों में करीब तीन गुना बढ़ोतरी देखी गई है। हमारे देश में रहन सहन का कम स्तर होने के कारण सही समय पर रोग की पहचान और उसका उपचार नहीं हो पाता। खासकर जब मरीज धूम्रपान नहीं करता है, तो बीमारी का पता लगने में लंबा समय लगता है। बायोमास ईंधन के अलावा वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति ने भी शहरी इलाकों में सीओपीडी को चिंता का सबब बना दिया है। वायु प्रदूषण की दृष्टि से दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 10 भारत में हैं। हवा में सूक्ष्म कणों की मौजूदगी के साथ हमारे फेफड़ों की क्षमता पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। शहरी क्षेत्रों में इस रहन सहन की शैली के साथ श्वसन संबंधी रोग चिंता का विषय है। भारत के ग्रामीण इलाकों के श्वसन संबंधी रोगों से ग्रस्त 300 से अधिक मरीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि अपनी स्थिति के लिए उचित इलाज नहीं लेने वाले और लंबी अवधि तक अकेले ब्रोंकोडायलेटर्स पर रहने वाले 75 प्रतिशत दमाग्रस्त मरीजों में सीओपीडी जैसे लक्षण उभरे।