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Mental Illness: कोरोना पीड़ित हो रहे मानसिक रोगों के शिकार, ब्रेन फॉग सबसे बड़ी समस्या

Mental Illness: कोरोना वायरस संक्रमण से उबरने वाले मरीज न्यूरोलॉजिकल और मनोवैज्ञानिक समस्याओं की बढ़ी हुई दर से पीड़ित हैं।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 18 Aug 2022 12:34 PM IST
Mental Illness
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कोरोना पीड़ित हो रहे मानसिक रोगों के शिकार (फोटो: सोशल मीडिया )

Mental Illness: कोरोना वायरस सिर्फ फेफड़े ही नहीं बल्कि पूरे शरीर को प्रभावित करने के साथ साथ मानसिक सेहत को भी बिगाड़ देता है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद ठीक हो गए लोगों में यही स्थिति देखी जा रही है।

द लैंसेट में प्रकाशित एक बड़ी स्टडी ने इस समस्या की तस्दीक करते हुये कहा है कि कोरोना वायरस संक्रमण से उबरने वाले मरीज न्यूरोलॉजिकल और मनोवैज्ञानिक समस्याओं की बढ़ी हुई दर से पीड़ित हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दस लाख से अधिक मरीजों की फाइलों का सूक्ष्म विश्लेषण करने के बाद पाया है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हो गए मरीजों में संक्रमण के दो साल बाद मनोविकृति, मनोभ्रंश और "ब्रेन फॉग" का खतरा उन रोगियों की तुलना में अधिक था, जो किसी अन्य सांस रोग से पीड़ित हुए थे।

कोरोना से ठीक हो गए मरीजों में कुछ लक्षण कुछ समय के लिए बढ़े, फिर बंद हो गये। दो महीने के बाद चिंता और अवसाद की दर भी गिर गई। लेकिन, ब्रेन फॉग के मामले में ऐसा नहीं था। इस समस्या से पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई। उदाहरण के लिए, 18 से 64 वर्ष की आयु के वयस्क, जो कोरोना से उबर चुके थे, वे अन्य श्वसन रोगों के रोगियों की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक पीड़ित थे। 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में ये समस्या और भी ज्यादा थी और इन वृद्धों में मनोविकृति और डिमेंशिया (मनोभ्रंश) के लिए भी जोखिम बढ़ गया था।

नाबालिग भी मानसिक रूप से प्रभावित

मुख्य रूप से अमेरिका में रोगियों के डेटा से पता चलता है कि नाबालिग भी मानसिक रूप से प्रभावित होते हैं। कोरोना संक्रमण से ठीक हो गए बच्चों में मिर्गी या दौरे से पीड़ित होने की संभावना दोगुनी पाई गई। सांस की किसी अन्य बीमारी से उबरने वालों की तुलना में कोरोना पीड़ितों में मानसिक विकार विकसित होने की संभावना तीन गुना ज्यादा थी।

लैंसेट साइकियाट्री में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि वर्तमान में कोरोना वायरस के हल्के ओमीक्रोन वेरियंट में भी समान दीर्घकालिक जोखिम हैं।

अध्ययन के लेखकों में से एक, मैक्सिम टैक्वेट ने उल्लेख किया है कि केवल वे रोगी जो कोरोना से पर्याप्त रूप से बीमार थे, उन्हें अध्ययन में शामिल किया गया था। केवल हल्के लक्षणों वाले लोगों को इसमें नहीं रखा गया। अध्ययन के मुख्य लेखक पॉल हैरिसन ने कहा कि, "इस अध्ययन में यह जानने की कोशिश की गई कि शरीर के समान अंगों में कोरोना वायरस तथा अन्य वायरस के संक्रमण का तुलनात्मक असर क्या होता है।

लॉन्ग कोविड या कोरोना का दीर्घकालिक असर

यह अध्ययन, कोरोना वायरस के कारण लंबे समय तक चलने वाले नुकसान के बढ़ते साक्ष्यों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। लॉन्ग कोविड या कोरोना का दीर्घकालिक असर का मुद्दा सरकारों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है। कोरोना संक्रमण से ऐसा क्यों होता है इस बारे में कई अनुसंधान चल रहे हैं, बड़े पैमाने पर पैसा खर्च किया जा रहा है। लॉन्ग कोविड में कई तरह के लक्षण बने रहते हैं जिसमें न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के साथ-साथ थकान और सांस की तकलीफ दोनों शामिल हैं।

इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन का अनुमान है कि कोरोना के 3.7 प्रतिशत रोगियों में पोस्ट-कोविड लक्षण विकसित होते हैं। इनमें औसत गंभीरता गर्दन के गंभीर दर्द, क्रोहन रोग या मस्तिष्क की चोट के रोगियों में दीर्घकालिक परिणामों के अनुभव के बराबर है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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