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कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों में बन जाती है ज्यादा मजबूत इम्यूनिटी

Coronavirus: कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों का इम्यून सिस्टम इस बीमारी के खिलाफ मजबूत प्रतिरक्षा तैयार कर लेता है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 26 May 2021 9:27 AM GMT (Updated on: 26 May 2021 9:28 AM GMT)
कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों में बन जाती है ज्यादा मजबूत इम्यूनिटी
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कोरोना जांच कराता बुजुर्ग (फोटो- न्यूजट्रैक)

Coronavirus: कोरोना वायरस इतना रहस्मय है कि इसके बारे में कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। एक चिंता ये बनी हुई है कि कोरोना (Corona Virus) होने के बाद मरीजों की इस वायरस से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और यह वायरस दोबारा भी एक मरीज पर हमला कर सकता है। लेकिन एक अच्छी खबर यह है कि जिन लोगों को कोरोना के हल्के लक्षण (Mild Symptoms) होते हैं, उनका इम्यून सिस्टम (Immune System) इस बीमारी के खिलाफ मजबूत प्रतिरक्षा (Immunity) तैयार कर लेता है।

दरअसल, कोरोना वायरस (Corona Virus) और इससे होने वाली बीमारी पर दुनिया भर में लगातार रिसर्च (Research) चल रही है। नई नई जानकारियां सामने आ रही हैं। प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर में छपे एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया है कि कोरोना बीमारी से उबरने के महीनों बाद जब खून में एंटीबॉडी (Antibodies) का लेवल कम हो जाता है तब भी बोन मैरो में इम्यून सेल (Immune Cell) यानी कोरोना वायरस से लड़ने वाली कोशिकाएं मुस्तैद रहती हैं ताकि आगे फिर वायरस का हमला होने पर वे जवाब दे सकें।

कोशिकाएं शरीर को प्रदान करती हैं प्रतिरक्षा

शोधकर्ताओं ने कहा है कि कोरोना के हलके और सामान्य लक्षणों से उबरने के बाद शरीर की कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। शोध में पता चला कि वायरस संक्रमण होने पर बहुत तेजी से इम्यून सेल यानी वायरस से लड़ने वाली कोशिकाएं पैदा होती हैं जो शरीर को प्रतिरक्षा प्रदान करती हैं।

(फोटो- न्यूजट्रैक)

ये कोशिकाएं ज्यादा समय तक नहीं जीवित रहती लेकिन इनकी इतनी क्षमता होती है कि वे डिफेन्स करने वाली एंटीबॉडीज (Antibodies) की एक लहर पैदा करती हैं। अपना काम करने के बाद इनमें से ज्यादातर कोशिकाएं मर जाती हैं और बीमारी ठीक होने पर एंटीबॉडी की संख्या भी कम होती जाती है। इसके बावजूद इन कोशिकाओं में से कुछ लंबे समय तक जीवित रह जाती हैं जिनको प्लाज्मा सेल्स कहा जाता है। इस प्रकार की ज्यादातर प्लाज्मा कोशिकाएं बोन मैरो (अस्थि मज्जा) में जाकर रहने लगती हैं।

रिसर्च में सामने आए ये नतीजे

इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने ऐसे मरीजों के बोन मैरो से नमूने लिए थे जिन्हें सात महीने पहले कोरोना हुआ था। इन मरीजों में से 90 फीसदी में लम्बे समय तक जीवित रहने वाली प्लाज्मा कोशिकाओं के अंश पाए गए। कुछ मरीज ऐसे भी थे जिनके बोन मैरो में कोरोना होने के 11 महीने बाद भी प्लाज्मा कोशिकाएं मौजूद थीं। इए कोशिकाएं लगातार कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी बना रही थीं।

शोधकर्ताओं के अनुसार, दीर्घजीवी प्लाज्मा कोशिकाएं (Long-Term Pasma Cells) बोन मैरो में मौजूद रहती हैं और एंटीबॉडीज बनाती रहती हैं। कोरोना का संक्रमण खत्म हो जाने के बाद भी इन कोशिकाओं का काम जारी रहता है और ऐसा वे संभवतः अनिश्चित काल तक करती रहेंगी। ये कोशिकाएं तब तक एंटीबॉडी बनाती रहेंगी जब तक मरीज जिंदा रहेगा।

लेकिन कोरोना के गंभीर मरीजों पर क्या असर होता है, ये अभी पता नहीं चल सका है। अभी ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ऐसे मरीजों में भी लंबे समय तक एंटीबॉडी रहती हैं या नहीं। उम्मीद है कि किसी नयी स्टडी में इसका रहस्य भी खुल जाएगा।

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Shreya

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