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Black Fungus And Dung: ब्लैक फंगस का गोबर से सम्बन्ध

Black Fungus And Dung: ब्लैक फंगस बीमारी का काफी प्रकोप रहा था जिससे बहुत लोग मारे गए थे या अपांग हो गए थे। वहीं, शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बीमारी के पीछे गोबर की भूमिका हो सकती है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Deepak Kumar
Published on: 7 April 2022 9:05 PM IST
Black Fungus
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Black Fungus And Dung: पिछले साल कोरोना की लहर (Corona Wave) के बाद ब्लैक फंगस (black fungus) बीमारी का काफी प्रकोप रहा था जिससे बहुत लोग मारे गए थे या अपांग हो गए थे। ब्लैक फंगस (black fungus) बीमारी क्यों फ़ैली, इसके कई कारण गिनाये गए थे लेकिन अब शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बीमारी के पीछे गोबर की भूमिका हो सकती है।

म्यूकोर्मिकोसिस फंगस के कारण मृत्यु दर 54 प्रतिशत

यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (US Centers for Disease Control and Prevention) के अनुसार, म्यूकोर्मिकोसिस फंगस (Mucormycosis Fungus) के कारण होने वाला एक खतरनाक संक्रमण है, जिसकी कुल मृत्यु दर 54 प्रतिशत है। मई 2021 में, म्यूकोर्मिकोसिस (Mucormycosis Fungus) को भारत में एक महामारी घोषित किया गया था। कोरोना की विनाशकारी दूसरी लहर (corona second wave) के दौरान देश में पिछले साल नवंबर तक म्यूकोर्मिकोसिस के 51,775 मामले दर्ज किए गए थे। म्यूकोरालेस, फंगस का एक सहप्रोफिलस समूह, शाकाहारी जीवों के मलमूत्र पर पनपता है। भारत में गोजातीय मवेशियों की दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है। इसकी संख्या 30 करोड़ बताई जाती है।

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गाय के गोबर की आग ने 2021 के भारत के म्यूकोर्मिकोसिस महामारी के लिए एक वाहन के रूप में काम किया हो सकता है। अमेरिका में ह्यूस्टन स्थित एक स्वतंत्र शोधकर्ता जेसी स्कारिया द्वारा लिखित और 31 मार्च को 'एमबीओ' जर्नल में प्रकाशित इस शोध पत्र में इस सिद्धांत को सामने रखा गया है कि "म्यूकोरालेस-समृद्ध गाय का मलमूत्र, कई भारतीय अनुष्ठानों और प्रथाओं में इसका उपयोग किया जाता है। महामारी के दौरान इसका व्यापक उपयोग किया गया था। शायद भारत में कोरोना से जुड़े म्यूकोर्मिकोसिस महामारी में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।"

कोरोना संक्रमितों में हुआ था संक्रमण

अप्रैल 2021 में, जब भारत कोरोना की विनाशकारी दूसरी लहर से जूझ रहा था। तभी ब्लैक फंगस संक्रमण फैलना शुरू हुआ। इस तरह के संक्रमणों में मृत्यु दर 50 फीसदी तक थी, और कोरोना से ठीक होने वाले रोगियों में ये बीमारी देखी जा रही थी। मई 2021 में सरकार ने इसे महामारी घोषित कर दिया था। उस समय फैलने वाले फंगल प्रकोप के लिए कई संभावित कारण बताये गए थे - मधुमेह रोगियों को फंगल संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाना, डेल्टा वेरियंट से मुकाबला करने के लिए स्टेरॉयड का अनुचित उपयोग, और घर पर असंक्रमित ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग।

अब 'साइंस डेव' पत्रिका ने एक रिपोर्ट में कहा है कि इनमें से कोई भी कारण सीधे म्यूकोर्मिकोसिस से नहीं जुड़ा हो सकता है। गोबर के बारे में नई परिकल्पना एक तार्किक व्याख्या मानी जा सकती है। शोधकर्ता स्कारिया ने भारत के लिए विशिष्ट पर्यावरणीय कारकों पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने ये समझने की कोशिश की है कि विकसित दुनिया की तुलना में 80 गुना अधिक फंगल मामले भारत में ही क्यों पाए गए।

फंगस का प्रसार पैटर्न

शोधकर्ता ने लिखा है कि म्यूकोर्मिकोसिस पर्यावरण के माध्यम से फैलता है। इसके प्रसार पैटर्न का अध्ययन करने से शोधकर्ताओं ने पशु-पालन परंपराओं और फंगल संक्रमणों के बीच संबंध स्थापित किए हैं। स्कारिया के शोध से पता चलता है कि केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में, जहां गाय के गोबर का उपयोग घरों में ईंधन के रूप में शायद ही कभी किया जाता है और मवेशियों के वध पर प्रतिबंध नहीं है, वहां म्यूकोर्मिकोसिस के मामलों की संख्या बहुत कम थी। जबकि केरल में सबसे अधिक कोरोना मामले रिपोर्ट किये गए थे और देश में सबसे अधिक मधुमेह का प्रसार इसी राज्य में है।

शोधकर्ताओं ने कहा, कि सीएएम (कोरोना संबंधित म्यूकोर्मिकोसिस) महामारी प्रमुख हिंदू धार्मिक त्योहारों के तुरंत बाद हुई, यह भी एक संयोग होने की संभावना नहीं है। मेला और होली जैसे त्योहारों में अशुद्ध पानी के उपयोग के माध्यम से म्यूकोर्मिकोसिस के प्रसार में योगदान दिया हो सकता है। शोधकर्ता के अनुसार यह कोरोना के लिए अप्रयुक्त उपचारों के उपयोग के साथ, म्यूकोर्मिकोसिस को पनपने के लिए एक आदर्श कॉकटेल साबित हुआ होगा।

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Deepak Kumar

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