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जब तक वायरस और असुरक्षित व्यवहार रहेगा, कोरोना की लहरें आती रहेंगी
अमरीकी जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की जूली फिशर का कहना है कि हमने इतनी कम महामारियां देखीं हैं कि हमारे पास डेटा ही नहीं है
लखनऊ: कोरोना की कितनी लहरें आएंगी, अभी कौन सी लहर है और ये कब खत्म होगी, अगली लहर में क्या होगा.. ये सब सवाल सबके जेहन में घूम रहे हैं। एक्सपर्ट्स अलग अलग तरह की भविष्यवाणी कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि वैज्ञानिक इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते। सच्चाई ये है कि 21वीं सदी की पहली महामारी को 1918 के औजारों से लड़ा जा रहा था, अब चंद महीनों से वैक्सीन रूपी नया हथियार मिला है लेकिन पूरी आबादी इससे लैस नहीं है। यही सबसे बड़ा जोखिम है। जहां तक महामारियों की बात है तो वैज्ञानिकों को 1918 के स्पैनिश फ्लू के बारे में ही कुछ पुख्ता तौर पर पता है। स्पैनिश फ्लू के बारे में कहा जाता है कि वह महामारी कई लहरों में आई थी।
अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की जूली फिशर का कहना है कि हमने इतनी कम महामारियां देखीं हैं कि हमारे पास ज्यादा डेटा ही नहीं है। यहां तक कि वैज्ञानिकों के पास सामान्य फ्लू के बारे में बहुत जानकारी नहीं है। हमें ये पता है कि सर्दियों में फ्लू आएगा लेकिन वो क्यों आएगा, ये हम नहीं जानते।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता स्टीफेन मोर्स का कहना है कि लहर का मतलब है कि वायरस फैलता है, लोगों को संक्रमित करता है फिर कुछ समय के लिए शान्त पड़ जाता है, लेकिन फिर वापस आ जाता है। थ्योरी के हिसाब से संक्रमित लोगों में उस समय फैल रहे वायरस के प्रति एक तरह की हर्ड इम्युनिटी बन जाती है। ऐसे में वायरस अपने में कुछ जिनेटिक बदलाव कर लेता है और इससे वह लोगों को फिर से संक्रमित करने लगता है।
महामारी की लहर थ्योरी में एक चीज है संक्रमण का रुक जाना जिसमें वायरस खत्म हो जाता है। लेकिन वो स्थिति अभी तक नहीं आई है। यानी संक्रमण में ठहराव कभी आया ही नहीं। मोर्स का कहना है कि अभी बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको संक्रमण होने की संभावना है। महामारी में जो भी कमी आई थी वो प्राकृतिक कारणों से नहीं थी बल्कि कृत्रिम उपायों से हुई थी। जब तक वायरस प्राकृतिक कारणों से खत्म नहीं हो जाता तब तक लोग संक्रमित होते रहेंगे और ग्राफ ऊपर नीचे होता रहेगा।
स्टीफेन मोर्स 1918 में स्पैनिश फ्लू के दौरान अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को में सब वही उपाय किये थे जो कोरोना महामारी में किये गए। जब पहली लहर खत्म हुई और नए केस आना बंद हो गए तो माना गया कि अब सब ठीक हो गया है। लोगों ने मास्क फेंक दिए। जश्न मनाया जाने लगा। लेकिन कुछ महीने बाद बीमारी फिर लौट आया।
शोधकर्ता जूली फिशर के अनुसार, संक्रमण के मामलों का बढ़ना घटना लोगों के व्यवहार से जुड़ा होता है। लोग और सरकार ढीले पड़ जाते हैं। मामले घटने पर आगे की तैयारी नहीं की जाती जिससे अगली लहर और भी भयानक बन जाती है। जब तक लोग सभी तरह के एहतियात जारी नहीं रखेंगे और सरकारें अगले युद्ध की पूरी तैयारी नहीं करती रहेंगी, तब तक लहरें आती रहेंगी और हर लहर ज्यादा गहरी चोट करने वाली होगी।