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बचिए! इन खतरनाक बीमारियों से
बरसात का मौसम शुरू होते ही गंदगी और बरसाती पानी के जमाव से मच्छर या कीट जनित बीमारियां फैलनी शुरू हो जाती हैं। मोटे तौर पर डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, कालाजार और फाइलेरिया ये वेक्टर बॉर्न डिजीज हैं।
लखनऊः बरसात का मौसम शुरू होते ही गंदगी और बरसाती पानी के जमाव से मच्छर या कीट जनित बीमारियां फैलनी शुरू हो जाती हैं। खतरा तब होता है जब ये महामारी का रूप लेकर फैलना शुरू कर देती हैं। मोटे तौर पर डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, कालाजार और फाइलेरिया ये वेक्टर बॉर्न डिजीज हैं। एक सर्वे में फाइलेरिया प्रभावित जनपदों के स्कूल जाने वाले 13 प्रतिशत बच्चों में इस रोग का संक्रमण पाया गया जिससे इन बच्चों की शारीरिक कार्य क्षमता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही थी, जिसका नतीजा यह होता कि यह बच्चे खेल कूद एवं अन्य गतिविधियों में पीछे रह जाते लेकिन अब इनका उपचार किया जा चुका है। ऐसे में पिछले कुछ महीनों से कोरोना की दूसरी लहर का अग्रिम मोर्चे पर सामना कर रहे स्वास्थ्य विभाग के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है। इसकी मुख्य वजह यह है कि कोरोना को लेकर दहशत में आए लोगों को जांच के बाद इन बीमारियों का उपचार मिल पाएगा।
इसलिए जागरुकता लाने के अभियान के साथ सूबे स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने वेक्टर बॉर्न डिजीज को फैलने से रोकने में पूरी ताकत झोंक दी है। अगर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो जिस तरह से पोलियो का उन्मूलन हुआ है उसी तरह से यूपी का स्वास्थ्य विभाग कालाजार उन्मूलन के बहुत करीब है। पिछले दो साल में दस हजार की आबादी पर कालाजार का एक से कम मामला रहा है यदि इस बार भी कालाजार का यही हाल रहा तो अगले साल तक यूपी से कालाजार खत्म होने का विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्रमाणपत्र मिल जाएगा। केंद्र सरकार का 2021 में कालाजार और फाइलेरिया खत्म करने का लक्ष्य है।
मलेरिया और डेंगू से पूरा उत्तर प्रदेश प्रभावित है
विशेषज्ञों का कहना है कि मलेरिया और डेंगू से करीब करीब पूरा उत्तर प्रदेश प्रभावित होता है। कभी भी कहीं से भी इसके मामले बढ़ जाते हैं जबकि फाइलेरिया में 51 जनपद की 16 करोड़ आबादी पर फोकस है। इन्हें बचाव के लिए घर घर जाकर निशुल्क दवा दी जाती है। हालांकि कालाजार सिर्फ 13 जनपदों में असर करता है जिस पर विभाग को फोकस करके एड़ी चोटी का जोर लगाए है।
डेंगू के उत्तर प्रदेश के 2015 से आंकड़ों पर गौर करें तो 2015 में डेंगू के 2892 मरीज मिले थे और नौ की मृत्यु हुई थी। इसी तरह 2016 में 15033 रोगियों पर 42 की मृत्यु हुई थी। 2017 में 3092 मरीजों पर 28, 2018 में 3829 मरीजों पर सिर्फ चार और 2019 में 10557 मरीजों पर 26 की मृत्यु हुई तथा 2020 में 3715 मरीजों पर छह इसके अलावा 2021 में मई तक डेंगू के 105 मरीज मिले हैं लेकिन अभी तक किसी की मृत्यु होने की सूचना नहीं है।
कई जिलों में मलेरिया की दस्तक
इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मलेरिया दस्तक दे चुका है। स्वास्थ्य विभाग जुट गया है और एक जुलाई से पूरे प्रदेश में सघन अभियान छेड़ दिया जाएगा। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना का डरावना अनुभव करने के बाद लोग खुद इतना अधिक सतर्क हैं जिससे इन बीमारियों के फैलने की आशंका बहुत कम है। इसी तरह मुजफ्फरनगर में हाल के सालों में मलेरिया के मरीज घट रहे हैं जबकि डेंगू के मरीज बढ़े हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक कालाजार से सूबे के 13 जिले प्रभावित बताए जाते हैं। जिनमें गोरखपुर, बलिया, देवरिया, गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, कुशीनगर, सुलतानपुर, संत रविदासनगर, जौनपुर, गोंडा, बहराइच, महाराजगंज में इनका सबसे अधिक प्रभाव रहता है। इनमें से कई जिलों में कालाजार के इक्का दुक्का मरीज मिलने शुरू हो चुके हैं जिसे लेकर शासन और प्रशासन अलर्ट है। कालाजार बालू मख्खी से फैलने वाली बीमारी है। कुशीनगर, बलिया, देवरिया और गाजीपुर में इसका असर ज्यादा मिला है। और इनकी सीमाएं बिहार से सटी हैं।
कालाजार पश्चिम बंगाल से होते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया
1940 से पहले तक कालाजार को भारत में पहचाना नहीं जाता था। 1940 में सबसे पहले असम व बिहार में कालाजार के मामले सामने आए और धीरे -धीरे यह पश्चिम बंगाल से होते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश तक आ गया। 1977 में बिहार में कालाजार का प्रकोप चरम पर रहा और इसके करीब 70 हजार रोगी पाए गए। बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में जुलाई से अक्टूबर के बीच इसका प्रकोप अधिक रहता है।
एक जानकारी के अनुसार कालाजार की रोकथाम के लिए त्रैमासिक अन्तराल पर एक्टिव केस की पहचान (संभावित कालाजार मरीजों की खोज) हेतु फ्रंटलाइन वर्कर को लगाया गया है। संभावित मरीजों की 48 घण्टे के अन्दर जांच तथा धनात्मक पाए जाने पर तत्काल एवं समुचित निशुल्क इलाज कराया जा रहा है। और ये सुविधा समस्त जनपदों में उपलब्ध है। इसकी दवाइयां डब्लूएचओ द्वारा भारत सरकार के माध्यम से उप्र सरकार को उपलब्ध कराई जाती हैं। और एक मरीज के इलाज पर अनुमानतः एक लाख रुपये की दवा खर्च होती है जिसे सरकार निशुल्क उपलब्ध करा रही है।
घरों में पानी इकठ्ठा न होने दें, कीटनाशक का प्रयोग करें
इसके अलावा स्वास्थ्य विशेषज्ञ डेंगू के लिए सावधानी बरतने की जरूरत बताते हैं। इसका मच्छर बरसात के पानी, घरों में कूलर, गमले आदि में एकत्र पानी में पनपता है। इसलिए घरों में एकत्र पानी को बदलते रहें और कीटनाशक का प्रयोग करते रहें। इसके लिए नागरिकों को जागरूक होना पड़ेगा ताकि डेंगू का मच्छर पनपने न पाए। इसी लिए सरकार कार्यक्रम चला रही है हर रविवार मच्छर पर वार।
मलेरिया की रोकथाम के लिए में 2018 में अत्यधिक संवेदनशील 11जिलों, 2019 में 36 जिलों और 2020 में 25 जिलों में सघन अभियान चलाया गया। इस वर्ष मलेरिया की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील जिलों में सोनभद्र (213), रामपुर (47), बरेली (117), बिजनौर (45), बदायूं (81), प्रयागराज (42), मिर्जापुर (67), अलीगढ़ (21), एटा (65), शामली (21), वाराणसी (53), फतेहपुर (19) मरीजों को ध्यान में रखकर अभियान छेड़ा जा रहा है।
फाइलेरिया का कोई इलाज नहीं
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि फाइलेरिया का कोई इलाज नहीं है। इसका एक मात्र उपाय बचाव है। हालांकि मच्छर के काटने से फैलने वाली इस बीमारी को जानना बहुत जरूरी है। मच्छर के अन्दर फाइलेरिया रोग के परजीवी पनपते है। यह बीमारी प्रायः बचपन में ही प्रारम्भ हो जाती है और इसके दुष्परिणाम कई साल बाद देखने को मिलते हैं। शुरुआत में फाइलेरिया बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखते इसलिए एक संक्रमित व्यक्ति दूसरे स्वस्थ्य व्यक्ति को बिना कोई बाहरी लक्षण दिखे संक्रमित करता रहता है।
इन अंगों को प्रभावित करता है फाइलेरिया
फाइलेरिया बीमारी से हाथ, पैर, स्तन योनी और अण्डकोश में सूजन पैदा हो जाती है। सूजन के कारण फाइलेरिया प्रभावित अंग भारी हो जाता है और विकलांगता जैसी स्थिति बन जाती है और प्रभावित व्यक्ति का जीवन अत्यन्त कश्टदायक और कठिन हो जाता है। फाइलेरिया चूंकि एक लाइलाज बीमारी है इस बीमारी से बचाव हेतु साल में एक बार दवा खाना जरूरी है। यह दवा प्रत्येक साल "सामूहिक दवा सेवन कार्यक्रम" के अन्तर्गत स्वास्थ्य कर्मी द्वारा घर घर जाकर मुफ्त में खिलाई जाती है। ध्यान रहे, यह दवा खाना खाने के बाद और स्वास्थ्यकर्मी के सामने खानी है।
यह दवा 2 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अत्यन्त गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को नहीं खानी है। जो लोग उच्च रक्त चाप, मधुमेह, अर्थराइटिस की दवा का सेवन कर रहे है, वह भी दवा का सेवन अवश्य करें। सामान्य लोगों में, जिनके षरीर में फाइलेरिया रोग के कीटाणु नहीं है, दवा सेवन से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। इसकी दवा खाने से जब शरीर में फाइलेरिया कृमि मरते हैं तो बुखार, खुजली, उल्टी जैसे लक्षण हो सकते हैं। जो स्वतः 3-4 घण्टे में समाप्त हो जाते है। इस लक्षण के होने पर इसका सामान्य इलाज किया जा सकता है अतः घबराने की जरूरत नहीं है। बेहतर यही है कि घर के आस-पास पानी जमा न होने दे और सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करे।