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Dementia Risk: नज़रें बता देंगी 12 साल बाद ब्रेन में क्या होने वाला है

Dementia Risk: नजरों के कई अन्य पहलू हैं जो अल्जाइमर रोग में प्रभावित होते हैं, जैसे कि वस्तुओं की आउटलाइन देखने की क्षमता और कुछ रंगों के बीच अंतर करने की क्षमता (नीले-हरे स्पेक्ट्रम को देखने की क्षमता डिमेंशिया में सबसे जल्दी प्रभावित होती है)

Neel Mani Lal
Published on: 2 Aug 2024 7:05 PM IST
Dementia Risk
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Dementia Risk

Dementia Risk: आंखें हमारे ब्रेन के स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ बता सकती हैं। आँखों की समस्याएँ मानसिक गिरावट के शुरुआती लक्षणों में से एक हो सकती हैं। एक नए अध्ययन से पता चलता है कि नजरों में कमी से किसी व्यक्ति में डिमेंशिया का 12 साल पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। नॉरफ़ॉक, इंग्लैंड में 8,623 लोगों पर कई वर्षों तक किये गए अध्ययन के मुताबिक यह निष्कर्ष निकल कर आया है। नजरों संबंधी समस्याएं संज्ञानात्मक यानी ब्रेन के कामकाज में गिरावट का एक प्रारंभिक संकेत हो सकती हैं क्योंकि अल्जाइमर रोग से जुड़ी विषाक्त एमिलॉयड परतें सबसे पहले दृष्टि से जुड़े ब्रेन के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती हैं, साथ ही बीमारी बढ़ने पर याददाश्त से जुड़े मस्तिष्क के हिस्से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इसलिए नजरों के परीक्षण से मेमोरी परीक्षणों से पहले ब्रेन की कमियों का पता लगा सकते हैं।


क्या क्या हो सकता है

- शोधकर्ताओं के अनुसार, नजरों के कई अन्य पहलू हैं जो अल्जाइमर रोग में प्रभावित होते हैं, जैसे कि वस्तुओं की आउटलाइन देखने की क्षमता और कुछ रंगों के बीच अंतर करने की क्षमता (नीले-हरे स्पेक्ट्रम को देखने की क्षमता डिमेंशिया में सबसे जल्दी प्रभावित होती है), और ये चीजें लोगों के जीवन को ऐसे प्रभावित कर सकती हैं कि उन्हें तुरंत पता भी नहीं चलता।

- अल्जाइमर का एक और शुरुआती संकेत आंखों की हरकतों के कंट्रोल में कमी है, जिसमें ध्यान भटकाने वाली चीजें ज्यादा आसानी से ध्यान आकर्षित करती हैं। अल्जाइमर से पीड़ित लोगों को ध्यान भटकाने वाली हरकतों को अनदेखा करने में समस्या होती है। आंखों के मूवमेंट पर नियंत्रण कम हो जाता है। ऐसे में सबसे ज्यादा समस्या ड्राइविंग में आती है।


- डिमेंशिया से पीड़ित लोग नए लोगों के चेहरे याददाश्त में स्टोर नहीं कर पातेहैं। ऐसा इसलिये कि वे जिस व्यक्ति से बात कर रहे होते हैं उसके चेहरे को स्कैन करने के सामान्य पैटर्न का पालन नहीं करते हैं। स्वस्थ लोगों में यह स्कैनिंग आंखों से नाक और मुंह तक चलती है। हम चेहरे को "याददाश्त में छापने" के लिए ऐसा करते हैं और इसे बाद में याद रखने के लिए करते हैं। लेकिन डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के साथ ये समस्या होती है।

- डिमेंशिया से पीड़ित लोग कभी-कभी भ्रमित लग सकते हैं, क्योंकि वे इर्दगिर्द के माहौल को स्कैन करने के लिएअपनी आँखें नहीं घुमा पाते हैं। उन लोगों का चेहरा भी नहीं स्कैन कर पाते जिनसे वे अभी-अभी मिले होते हैं। इसका मतलब यह होता है कि वे बाद में उन लोगों को पहचानने में कम सक्षम होंगे क्योंकि उन्होंने उनकी विशेषताओं को नहीं पहचाना है।





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Shalini singh

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