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Esophageal cancer: एसोफैगल कैंसर होने का कारण बन सकती है अत्यधिक एसिडिटी, जानें लक्षण और उपचार
Esophageal Cancer: एसोफैगल कैंसर होने का खतरा 50 से ऊपर के लोगों को रहता है।
Esophageal Cancer and Acidity: एसोफैगल कैंसर (Esophageal cancer) यानी खाने की नली में कैंसर को कई लोग ग्रसिका कैंसर, आहार नली कैंसर के नाम से भी जानते हैं। यह एक सामान्य कैंसर है, जो महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होता है। लेकिन अगर समय रहते इसका इलाज नहीं कराया गया तो पीड़ित मरीज की जान तक जा सकती है। बता दें कि एसोफैगल कैंसर हमारी खानी की नली में होने वाला वह कैंसर है, जिसके शुरुआती स्टेज में व्यक्ति को सॉलिड चीजें खाने में परेशानी होती है और धीरे-धीरे यह परेशानी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। परेशानी का आलम यह हो जाता है कि मरीज को दलिया जैसी लिक्विड चीजें भी निगलने में बहुत दिक्कत होने लगती है। जिसके कारण मरीज सिर्फ पानी पर ही निर्भर होने को मज़बूर हो जाता है।
इसलिए ऐसे में अगर आपको खाने- पीने में किसी तरह की परेशानी हो, तो तुरंत डॉक्टर्स से संपर्क कर उनसे सलाह लेनी चाहिए। बता दें कि अधिकतर मामले डॉक्टर के पास उस समय सामने आते है जब जब व्यक्ति के गले में कुछ फंस जाता है और इस स्थिति में बीमारी का डायग्नोस करने पर पता चलता है कि उन्हे एसोफैगल कैंसर (Esophageal cancer) है। ऐसी स्थित मरीज के लिए काफी गंभीर होती है।
गौरतलब है कि एसोफैगल कैंसर होने का सर्वाधिक खतरा 50 की उम्र से ऊपर के लोगों को ज्यादा रहता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि अन्य उम्र वाले लोगों को ये कैंसर नहीं हो सकता है। गौरतलब है कि यह कैंसर कम उम्र के लोगों को नहीं हो सकता है। बता दें कि आधुनिक लाइफस्टाइल और धूम्रपान का सेवन अत्यधिकसेवन करने के कारण कम उम्र के लोगों को भी खाने की नली का कैंसर तानी एसोफैगल कैंसर (Esophageal cancer) हो रहा है। इसके अलावा कुछ लोगों को एसिडिटी की शिकायत काफी ज्यादा होने के कारण भी एसोफैगल कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए जरुरी है कि एसिडिटी की परेशानी को भी इग्नोर ना करें। इसके लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर्स के पास जाकर सलाह लेनी चाहिए।
खाने की नली में कैंसर का प्रकार (Esophageal Cancer Types)
एसोफेगल कैंसर,(Esophageal cancer) को मुख्यतः दो रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (Squamous cell carcinoma)
स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा समस्या में ग्रास नली का ऊपरी और मध्य हिस्सा सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। इस कैंसर की शुरुआत ग्रासनली के अस्तर को बनाने वाली फ्लैट, पतली कोशिकाओं (Squamous cell) में शुरू होता है। बता दें कि पहले के समय में भारत के व्यक्ति स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा कैंसर से अधिक ग्रसित होते थे।
- एडेनोकार्सिनोमा (Adenocarcinoma)
बदलती लाइफस्टाइल का दुष्परिणाम एडेनोकार्सिनोमा (Adenocarcinoma) समस्या के रूप में उभरा है। इसमें ग्रासनली का निचला हिस्सा अधिक प्रभावित होता है। स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा की तुलना में एडेनोकार्सिनोमा कैंसर भारत के व्यक्तियों को अधिक होने लगा है।
एसोफेगल कैंसर,(Esophageal cancer) के स्टेज (Stages of Esophageal Cancer)
एक्सपर्ट्स खाने की नली के कैंसर को चार भागों में बांटते है, जिसमें से स्टेज 3 तक इस कैंसर का इलाज करना संभव है। लेकिन स्टेज-4 तक आते-आते मरीज की हालत काफी गंभीर होकर बात उनकी लाइफ तक आ जाती है।
स्टेज 1 में कैंसर सिर्फ आहार नली की परतों पर पाई जाने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।
स्टेज 2 में कैंसर की कोशिकाएं आहार नली की बाहरी दीवार तक फ़ैलने के साथ ही कैंसर आसपास के 1 से 2 लिम्फ नोड्स तक भी फैल सकता है।
स्टेज 3 : इस स्टेज में कैंसर की कोशिकाएं आंतरिक मांसपेशियों की परत या संयोजी ऊतक (connective tissue) की दीवारों पर गहराई से फैल चुकी होती हैं। इस स्टेज तक आते-आते कैंसर के सेल्स अधिकांश लिम्फ नोड्स तक फैल चुके होते हैं।
स्टेज 4 : इस स्टेज तक आते-आते कैंसर के सेल्स पेट के लगभग सभी अंगों को प्रभावित करते हैं। इतना ही नहीं यह आहार नली के साथ-साथ लिम्फ नोड्स तक पूरी तरह से फैल चुका होता है।
एसोफेगल कैंसर होने के लक्षण (Esophageal Cancer Symptoms)
खाने में परेशानी (सोलिड खाने में परेशानी, लेकिन लिक्विड चीजें खाने में परेशानी नहीं है।), अनियमित रूप से वजन में कमी आना, एसिडिटी की शिकायत होना, ख़ट्टी डकार आना, उल्टी होना, खाने को निगलने में परेशानी होना, सीने में जलन (heartburn), सीने में दर्द होना, निगलने में परेशानी, गले के आसपास दर्द होना।, पेट में अचानक तेज दर्द होना, पुरानी खांसी दोबारा उठना, थकान महसूस होना और अत्यधिक हिचकी आना इसके कुछ प्रमुख लक्षण हैं।
खाने की नली के कैंसर का कारण (Esophageal Cancer Causes)
कुछ आदतों और स्थितियों के कारण व्यक्ति को खाने की नली में कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है। जिनमें कुछ प्रमुख है।शराब का सेवन, धूम्रपान, बैरेट एसोफैगस (Barrett's esophagus) (इस स्थिति में खाने की नली का अस्तर नष्ट होने लगता है, जिसमें एसिडिटी की समस्या ज्यादा होती है।), अधिक वजन होना, गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (gastroesophageal reflux disease), पर्याप्त रूप से संपूर्ण आहार ना लेना। (फल और सब्जियां कम खाना), एकैल्शिया (achalasia) की समस्या होना (इस स्थिति में ग्रासनली और पेट के मध्य का हिस्सा पेशी वाल्व सही से कार्य करना बंद कर देता है।)आदि शामिल है।
एसोफेगल कैंसर की जांच ( Esophageal Cancer Diagnosis)
एंडोस्कोपी (endoscopy) : फ्लेक्सिवक ट्यूब की सहायता से एंडोस्कोपी की जाती है। बता दें कि यह एक लचीली ट्यूब होती है, जिसके एक सिरे में कैमरा होता है और पहला सिरा मरीज के मुंह में डाला जाता है। सिर्फ 2 से 3 मिनट के अंदर एंडोस्कोपी की जाती है। एंडोस्कोपी के बाद मरीज नॉर्मल दिनों की तरह ही कार्य कर सकता है।
बायोप्सी (biopsy) : यह परीक्षण शरीर में कैंसर का प्रकार जानने के लिए किया जाता है। इसमें डॉक्टर ट्यूमर का साइज पता लगाने के लिए मरीज को यह जांच लिखते हैं, जिसमें एंडोस्कोपी की मदद से कैंसर के सेल्स का छोटा टुकड़ा लिया जाता है और इसका इग्जामिन किया जाता है।
सीटी (CT) : बता दें कि स्कैनिंग परीक्षण की मदद से कैंसर का स्टेज और इसकी गंभीरता का पता लगाने की कोशिश की जाती है। इस टेस्ट से मरीज का कौन-कौन सा एरिया प्रभावित हुआ है, इसका पता लगाने को कोशिश की जाती है।
PET CT (Positron Emission Tomography) - इसमें मरीज को इंजेक्शन देकर कैंसर का स्टेज पता लगाने का प्रयास किया जाता है ताकि उसी रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर ट्रीटमेंट शुरू करते हैं।
एसोफेगल कैंसर का इलाज (Treatment of Esophageal Cancer)
एक्सपर्ट्स के अनुआर शुरुआत के स्टेज 3 तक भोजन नली के कैंसर का इलाज संभव है। शुरुआती स्टेज में डॉक्टर सर्जरी की सिफारिश करते हैं। सर्जरी के साथ-साथ पिछले 5 सालों में कीमोथेरेपी और रेडियएशन थेरेपी काफी विकसित हो चुकी है। इससे मरीज का इलाज पुरी तरह से किया जा सकता है, जिसके बाद मरीज को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है। डॉक्टर बताते हैं कि सर्जरी दो तरीकों से की जाती है एक रोबोट और लेप्टस्कोपी द्वारा।
बचाव (Prevention )
इस समस्या से बचने के लिए अपनी लाइफस्टाइल में चेंज लाना बेहद जरूरी है। इसके लि धूम्रपान नही करना, तम्बाकू के सेवन से दूर रहना , नियमित रूप से एक्सरसाइज करना , डाइट में फल और सब्जियों का सेवन करें। और अपने वजन को कंट्रोल करना इत्यादि शामिल हैं।