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Health News: भारत में हर साल आ रहे पांच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर निमोनिया के लगभग 26 लाख मामले
Health News: भारत सरकार ने वर्ष 2013 में (IAPPD) बच्चों में निमोनिया और डायरिया के नियंत्रण के लिए भारतीय कार्य योजना लागू की। WHO & Unicef वर्ष 2013 में निमोनिया से बचाव हेतु (GAPP) बच्चों में निमोनिया की रोकथाम और नियंत्रण के लिए वैश्विक कार्य योजना।
Every Breath Counts: Stop Pneumonia in Its Track। विश्व निमोनिया दिवस के अवसर पर, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग ने निमोनिया की रोकथाम, उपचार और शीघ्र निदान की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक प्रेस बातचीत का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग समेत कई चिकित्सक उपस्थित रहे। विश्व निमोनिया दिवस पर वर्तमान समय में गंभीर हो रही स्थिति और इसके रोकथाम पर चर्चा की गई। इस बार का थीम निमोनिया के प्रारम्भिक पहचान उपचार और उपयुक्त उपचार से निमोनिया को रोकनें की तात्कालिकता पर जोर देती है।
निमोनिया के बारे में मुख्य आकड़े और तथ्य
भारत सरकार ने वर्ष 2013 में (IAPPD) बच्चों में निमोनिया और डायरिया के नियंत्रण के लिए भारतीय कार्य योजना लागू की। WHO & Unicef वर्ष 2013 में निमोनिया से बचाव हेतु (GAPP) बच्चों में निमोनिया की रोकथाम और नियंत्रण के लिए वैश्विक कार्य योजना।वर्ष 2017 से भारत सरकार ने (PSV) नियमोकोकल वैक्सीन को यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया।
भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक बच्चों में निमोनिया से रोकी जा सकने वाली मृत्यु को समाप्त करना। वैश्विक स्तर पर 70 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में लगभग 6 में से 1 मौत का कारण निमोनिया है। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, 65 वर्ष अधिक उम्र के लोगों में लगभग 50,000 व्यक्तियों की प्रतिवर्ष निमोनिया से मृत्यु होती हैं। अमेरिका में, निमोनिया और इन्फ्लूएंजा के कारण हर साल 15 लाख से अधिक लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं, जिससे प्रत्यक्ष स्वास्थ्य देखभाल व्यय अनुमानित ़10.5 बिलियन (₹ 87,150 करोड़) होता है।
भारत में निमोनिया का आर्थिक बोझ काफी है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के इलाज से जुड़ी स्वास्थ्य देखभाल लागत सालाना लगभग ₹3,000 करोड़ होने का अनुमान है।
निमोनिया की बढ़ती गति को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि यदि ध्यान न दिया गया तो एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध के कारण 2050 तक सालाना 1 करोड़ मृत्यु हो सकती हैं, जिसमें निमोनिया एक प्रमुख कारण रहेगा है।वैश्विक स्तर पर, स्वास्थ्य देखभाल लागत, उत्पादकता हानि और दीर्घकालिक परिणामों के कारण हर साल निमोनिया से लगभग 17 बिलियन (₹1,41,100 करोड) से 30 बिलियन (₹2,49,000 करोड़) के व्यय होने का अनुमान है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2019 में, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से लगभग 14 प्रतिषत मृत्यु के लिए निमोनिया जिम्मेदार था।
एक अध्ययन के अनुसार अनुमानतः वर्ष 2019 में निमोनिया से 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 6 लाख 10 हजार बच्चों की मृत्यु हुई अर्थात् लगभग प्रतिदिन 2000 बच्चों की मृत्यु निमोनिया के कारण हुई थी। भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर निमोनिया के लगभग 26 लाख मामले सामने आते हैं, जिनमें से लगभग 8,00,000 मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है।अनुमान है कि पांच साल से कम उम्र के लगभग 43 लाख बच्चे, ठोस ईंधन के साथ खाना पकाने के कारण होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण के हानिकारक स्तर के संपर्क में हैं, जो निमोनिया के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है। यह जोखिम कारक, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के लगभग 40 प्रतिषत मामलों में योगदान देता है। एक अध्ययन के अनुसार पूरे विष्व में प्रतिवर्ष निमोनिया से होने वाली 16 लाख मृत्यु के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार होता है।
विश्व निमोनिया दिवस का इतिहास
विश्व निमोनिया दिवस की स्थापना पहली बार 2009 में ग्लोबल एलायन्स अगेंस्ट चाइल्ड निमोनिया द्वारा की गई थी, जो कि अंतरराष्ट्रीय, सरकारी, गैर-सरकारी और समुदाय-आधारित संगठनों का एक नेटवर्क है। इस संगठन का उद्देश्य बाल मृत्यु दर पर निमोनिया के प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना और रोकथाम एवं उपचार रणनीतियों को लागू करना है। विगत वर्षाें में, विश्व निमोनिया दिवस का दायरा सभी आयु समूहों को शामिल करने के लिए विस्तारित हुआ क्योंकि यह निमोनिया वयस्कों और बुजुर्गों को भी बड़ी संख्या में प्रभावित करता है। यह दिन निमोनिया से होने वाली मौतों को कम करने, स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में सुधार और टीकों, उपचारों और निदान में नवाचार को प्रोत्साहित करने की वैश्विक प्रतिबद्धता की याद दिलाता है।
निमोनिया के जोखिम कारक
निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस और कवक के कारण हो सकता है।
बैक्टीरिया:-
स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया बैक्टीरिया, निमोनिया का सबसे प्रमुख कारण है।
वायरस:-रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (आरएसवी), इन्फ्लूएंजा और कोरोना वायरस सामान्य वायरल कारक हैं।
कवकः-न्यूमोसिस्टिस जिरोवेसी म्यूकर, एसपरजिलम जैसे फगल संक्रमण, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों में अधिक पाये जाते हैं।
उम्रः-पांच साल से कम उम्र के बच्चे और 65 साल से अधिक उम्र के वयस्क अधिक जोखिम में होते हैं।
कुपोषणः-खराब पोषण के कारण कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से संक्रमण की संभावना बढ़ सकती है।
पुरानी बीमारियाँः- अस्थमा, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों में निमोनिया के खतरे को बढ़ा देती हैं।
पर्यावरणीय कारकः- वायु प्रदूषण, धूम्रपान और निष्क्रिय धुएं के संपर्क में आना, निमोनिया के लिये महत्वपूर्ण कारण हैं।
शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र को कम करने वाली बीमारियाँ जैसे एचआईवी (एड्स) और कैंसर के उपचार, के लिए इस्तेमाल होने वाली कीमोंथेरेपी एवं स्टेरॉइड के दीर्घकालिक इस्तेमाल से भी प्रतिरक्षा तंत्र के कमजोर होने की वजह से निमोनिया जैसे बीमारियां हो सकती है।
निमोनिया के लक्षण
लगातार खांसी रहना
बुखार और ठंड लगना
साँस लेने में तकलीफ
सीने में दर्द
थकान और कमजोरी
भ्रम
भूख न लगना
निम्न रक्त चाप वं ऑक्सीजन स्तर कम होना।
रोकथाम एवं उपचार
06 माह तक के बच्चो को केवल माॅ का दूध ही पिलाये।
रोकथाम रणनीतियों में टीकाकरण, पर्याप्त पोषण और वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय जोखिमों का समाधान शामिल है।
यन्यूमोकोकस और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा जैसे सामान्य रोगजनकों से बचाने में टीके महत्वपूर्ण हैं।
बचपन के टीकाकरण के अलावा, न्यूमोकोकल वैक्सीन और इन्फ्लूएंजा वैक्सीन जैसे टीके वृद्ध वयस्कों और पुरानी बीमारी से ग्रासित व्यक्तियों के लिए आवश्यक हैं।
निमोनिया की रोकथाम में टीकाकरण की भूमिका
निमोनिया को रोकने में टीके महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चों में निमोनिया के मामलों को कम करने के लिए न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) और हेमोफिलस इन्फ्लुएंजी, टाइप बी वैक्सीन एवं खसरा (Measles) का टीका सबसे प्रभावी प्रयासों में से एक हैं। इन्फ्लूएंजा का टीका, फ्लू से संबंधित निमोनिया को रोकने में भी मदद करता है, विशेष रूप से बुजुर्गों और पुरानी बीमारियों वाले व्यक्तियों मे जो कि निमोनिया के लिये बहुत प्रवत्त होते हैं।
निमोनिया सहित गंभीर श्वसन संक्रमण मेंमहत्वपूर्ण देखभाल सेवाएं प्रदान कर रहा ये विभाग
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग निमोनिया प्रबंधन में सबसे आगे रहा है, खासकर उत्तर प्रदेश और उसके बाहर की कमजोर आबादी के लिए। बहु-विषयक दृष्टिकोण के माध्यम से यह विभाग निमोनिया सहित गंभीर श्वसन संक्रमण वाले रोगियों को व्यापक नैदानिक, चिकित्सीय और महत्वपूर्ण देखभाल सेवाएं प्रदान करता है। अत्याधुनिक श्वसन गहन चिकित्सा इकाई (आरआईसीयू), उन्नत नैदानिक सुविधाओं और एक समर्पित टीम के द्वारा निमोनिया के मामलों के लिए त्वरित निदान और इष्टतम उपचार सुनिश्चित करता है। विभाग विश्व निमोनिया दिवस जैसे जागरूकता अभियानों में भी सक्रिय रूप से संलग्न है, जिसमें जनता को रोकथाम और समय पर देखभाल के बारे में शिक्षित किया जाता है। इस विभाग द्वारा निमोनिया की बीमारी और मृत्यु दर को कम करने के लिए टीकाकरण अभियान को बढ़ावा दिया जाता है।
विश्व निमोनिया दिवस के अवसर पर, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग ने निमोनिया की रोकथाम, उपचार और शीघ्र निदान की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने विषय पर पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश, रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग से प्रोफेसर (डॉ.) आर.ए.एस.कुशवाह, मेडिसिन विभाग से प्रो. (डॉ.) के.के.सावलानी, और बाल रोग विभाग से प्रोफेसर (डॉ.) राजेश यादव सहित प्रतिष्ठित संकाय सदस्यों ने भाग लिया। पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग से डॉ. सचिन कुमार, डॉ. मोहम्मद आरिफ और डॉ. अतुल तिवारी भी उपस्थित थे। चर्चा में निमोनिया प्रबंधन में केजीएमयू की पहल, टीकाकरण के महत्व और विशेष रूप से बच्चों और उच्च जोखिम वाले समूहों में बीमारी के प्रभाव को कम करने की रणनीतियों पर जोर दिया गया। इस आयोजन ने नैदानिक उत्कृष्टता, सामुदायिक आउटरीच और सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से निमोनिया से निपटने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।