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मां का डर या डॉक्टर की कमाई, क्या है सिज़ेरियन ऑपरेशन का मुख्य कारण?

Manali Rastogi
Published on: 29 Dec 2018 12:25 PM GMT
मां का डर या डॉक्टर की कमाई, क्या है सिज़ेरियन ऑपरेशन का मुख्य कारण?
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मां का डर या डॉक्टर की कमाई, क्या है सिज़ेरियन ऑपरेशन का मुख्य कारण?

स्वाति प्रकाश

लखनऊ: देश में लगातार सिज़ेरियन ऑपरेशन बढ़ते जा रहे हैं। एनएफएचएस के सर्वे के मुताबिक पिछले 2 सालों में देश में सिज़ेरियन ऑपरेशन का प्रतिशत 8 से बढ़कर 17 .2 % हो गया। आईआईएम के सर्वे के मुताबिक निजी अस्पतालों के आंकड़े बता रहे हैं कि सिजेरियन डिलिवरी की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। इतने कम समय में सी सेक्शन का बढ़ता प्रतिशत चिंता का विषय है।

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नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस -4) के मुताबिक निजी अस्पतालों में 74.9% सिज़ेरियन ऑपरेशन हुए हैं। इसी सर्वे के मुताबिक तमिल नाडु में 34%, पुडुचेरी में 34%, केरल में 36%, आंध्र प्रदेश में 40%, महाराष्ट्र में 50%, और तेलंगाना में 58% डिलिवरी सिज़ेरियन से होती है।

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इस सर्वे के मुताबिक उत्तर के मुकाबले दक्षिण राज्यों में सिज़ेरियन डिलिवरी के केस ज़्यादा हो रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए खुद गर्भवती महिलाएं और उनके परिजनों का डर और रिस्क न उठाने की प्रवृत्ति जिम्मेदार है।

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डॉक्टर सिर्फ हर परिस्थिति से मरीज और उनके परिजनों को सतर्क करते हैं, निर्णय डॉक्टरों का नहीं होता। हालांकि इसका दूसरा पहलू यह है कि डॉक्टर्स की काउंसलिंग पर ही ये निर्भर करता है कि मरीज़ कौन सा विकल्प चुनते हैं। इस मामले पर जब डॉक्टरों से बात की गई तो कुछ अनसुने तथ्य पता चले।

क्या है वजह?

इंडिया कंट्री कोऑर्डिनेटर फॉर मैटर्नल एन्ड न्यूबॉर्न हेल्थ प्रोग्राम की मीनाक्षी गौतम की एक स्टडी के मुताबिक आंध्र प्रदेश के कुछ ज़िलों में 80 % महिलाएं सिज़ेरियन डिलिवरी करवा चुकी हैं। उनका कहना है कि दक्षिण के राज्यों में सिज़ेरियन के बढ़ते मामलों का एक खास कारण है यहां पर मेडिकल कॉलेजों की अधिकता है।

एक शहर में 8 से 10 मेडिकल कॉलेज होने के कारण नए डॉक्टरों की संख्या बहुत ज़्यादा है। इनकी मेडिकल एजुकेशन कॉस्ट बहुत ज़्यादा होती है। पढ़ाई पर खर्च हुए इन पैसों को डॉक्टर मरीज़ों से वसूलते हैं, बढ़ते सिज़ेरियन ऑपरेशन का भी यही कारण है।

यूपी में तेज़ी से बढ़ रहे सिज़ेरियन के मामले

दक्षिणी राज्यों में सिज़ेरियन ऑपरेशन के आंकड़ें आसमान छू रहे हैं , लेकिन उत्तर प्रदेश में भी हालात कुछ खास अलग नहीं हैं। यहाँ भी सी सेक्शन के केस तेज़ी से बढ़ रहे हैं। क्वीन मैरी की डॉक्टर रेखा वर्मा बताती हैं कि उनके अस्पताल में सिजेरियन के केस 40 प्रतिशत हो चुके हैं।

2 साल पहले तक यह आंकड़ा 5 से 10 प्रतिशत था। उन्होंने बताया कि उनके यहां रेफर केस में सिज़ेरियन के मामले ज़्यादा आते हैं जबकि उनके रेग्युलर मरीज़ों में यह केवल 10 प्रतिशत है। झलकारीबाई अस्पताल की सीएमएस डॉ सुधा वर्मा ने बताया कि उनके अस्पताल में पिछले एक साल के मुकाबले सिज़ेरियन के मामले बढ़ रहे हैं।

पहले 10 प्रतिशत से कम केस में सिज़ेरियन होता था, अब यह बढ़कर 30 प्रतिशत के पार हो चुका है। इनमें से कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी में दिक्कत के कारण सी सेक्शन करवाना पड़ता है तो कुछ लेबर पेन के डर से खुद ऑपरेशन करवाती हैं।

कुछ माओं में होता है डिलिवरी का डर

डफरिन हॉस्पिटल की सीएमएस डॉ नीरा जैन के मुताबिक उनके अस्पताल में सिज़ेरियन के मामले पहले के मुताबिक काफी बढ़े हैं। पहले ये 5 प्रतिशत से भी कम था, लेकिन आज यह आंकड़ा 30 प्रतिशत के ऊपर पहुंच चुका है। सरकारी अस्पताल होने के बाद भी उनके अस्पताल में कुछ महिलाएं यह कहकर भर्ती होती हैं कि उन्हें ऑपरेशन करवाना है क्योंकि वह लेबर पेन नहीं झेल सकतीं।

इसके पीछे उनके पास अजीब कारण होते हैं, जैसे उनका शरीर कमज़ोर है या फिर उनकी वैजाइना का आकार बिगड़ जाएगा। कुछ को लगता है कि नॉर्मल डिलिवरी के दौरान उन्हें जान का जोखिम हो सकता है, थोड़ी सी कॉम्प्लिकेशन में भी महिलाएं और परिवारवाले रिस्क लेने से डरते हैं।

ऐसे में उनकी काउंसलिंग करके उन्हें समझाना पड़ता है कि नॉर्मल डिलिवरी मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए बेहतर है जबतक कोई बड़ा रिस्क न हो हम ऑपरेशन नहीं करते। इन सबके बावजूद आज भी उनके अस्पताल में 70 प्रतिशत डिलिवरी नॉर्मल होती हैं।

सिज़ेरियन के बढ़ते मामलों पर क्या है डॉक्टरों की राय

क्वीन मेरी की डॉ रेखा के मुताबिक ऐसादेखा गया है कि प्रेग्नेंसी के लगभग 10 प्रतिशत मामलों में जटिलता को देखते हुए सिजेरियन की जरूरत सच में पड़ती है। लेकिन ज्यादातर मामलों में नॉर्मल डिलीवरी सुरक्षित होती है क्योंकि गर्भावस्था और प्रसव दोनों सामान्य और नैचुरल प्रक्रिया हैं। लेकिन जिस तरह प्रदेश में बिना जरूरत के सी-सेक्शन डिलीवरी के मामले बढ़ रहे हैं, वो चिंताजनक है।केवल लखनऊ ही नहीं,आसपास के जिलों से आने वाली कुछ महिलाएं भी नॉर्मल डिलिवरी से डरती हैं।

कुछ महिलाओं में मेडिकल जटिलता होती है तो कुछ को अपनी सहनशक्ति से ज़्यादा औज़ारों पर भरोसा होता है। उनके मुताबिक सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों में सिज़ेरियन ज़्यादा होते हैं। उन्होंने बताया कि उनके यहाँ निजी अस्पतालों से इलाज करवा रही महिलाएं ऑपरेशन करने के लिए कहती हैं क्योंकि उनके डॉक्टर के मुताबिक नॉर्मल डिलिवरी में उन्हें खतरा हो सकता है।

ऐसे में वह गर्भवती की जांच करके देखती हैं कि बच्चे को कोई खतरा तो नहीं है। अगर स्थिति सम्भालने योग्य होती है तो वह मां को नॉर्मल डिलीवरी करवाने की सलाह देती हैं। नॉर्मल डिलिवरी में दर्द कम हो इसके लिए अब प्रसूता को एपीड्यूरल एनलजीशिया दिया जाता है जिससे प्रसूता को कम तकलीफ हो।

उन्होंने बताया कि जबतक मां और बच्चे को किसी तरह का खतरा न हों, तबतक वह ऑपरेशन नहीं करती। अगर तब भी महिला और परिवारीजन सिज़ेरियन करवाने की ज़िद करते हैं तो मजबूरी में उन्हें ऑपरेशन करना पड़ता है। उनका कहना है कि सिज़ेरियन डिलिवरी मां और शिशु दोनों के लिए हानिकारक होती है।इसलिए महिलाओं को इससे बचना चाहिए।

सिज़ेरियन डिलिवरी के नुकसान

डफरिन हॉस्पिटल की डॉ लिली के मुताबिक नैचुरल तरीके से बच्चे को जन्म देना और सिज़ेरियन द्वारा प्रसव कराना दोनों ही बिल्कुल विपरीत स्थितियां हैं। नॉर्मल तरीके से जन्म देने में असहनीय कष्ट होता है फिर भी इसे अच्छा माना जाता है। वहीं ऑपरेशन द्वारा जन्म भले ही बिना तकलीफ के हो रहा हो, लेकिन इसके कई नुकसान होते हैं।

सिज़ेरियन डिलिवरी के बाद दूसरे बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। शोध इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि सी-सेक्‍शन के जरिये 39 हफ्तों से पैदा हुए बच्‍चों को साँस संबंधी तकलीफ होने की आशंका सामान्‍य रूप से जन्‍म लेने वाले बच्‍चों की तुलना में ज़्यादा होती है। नॉर्मल डिलिवरी से बच्चे को एम्निओटिक फ्लूइड की सुरक्षा मिलती है , जिससे उसे पीलिया और हाइपोथर्मिया का खतरा कम होता है।

वहीं सी सेक्शन से पैदा हुए बच्चे को बीमारियों का खतरा ज़्यादा होता है। सी-सेक्‍शन करवाने वाली महिलाओं को सामान्‍य डिलिवरी करवाने वाली महिलाओं के मुकाबले इंफेक्‍शन होने का खतरा ज़्यादा होता है। उन्‍हें अधिक रक्‍त बहने, रक्‍त के थक्‍के जमने, पोस्‍टपार्टम दर्द, अधिक समय तक अस्‍पताल में रहना और डिलिवरी के बाद उबरने में अधिक समय लगना, जैसी परेशानियां हो सकती है। इसके अलावा ब्‍लैडर में चोट जैसी दुर्लभ दिक्‍कत भी हो सकती है।

कब पड़ती है सिजेरियन की जरूरत

डफरिन अस्पताल की डॉ लिली बताती हैं कि कई बार प्रसव में जाने से पहले ही यह तय होता है कि महिला को सिजेरियन करवाने की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां और कारण ज़िम्मेदार होते हैं-

  • अगर आपका पिछला सिजेरियन 'क्‍लासिकल' वर्टिकल यूट्ररिन इनसिजन हो। हालांकि यह बहुत दुर्लभ होता है। इसके अलावा आप इससे पहले भी सी-सेक्‍शन करवा चुकी हों।
  • अगर आपका केवल एक बार सिजेरियन हो चुका हो और वो भी हारिजोंटल यूट्ररिन इनसिजन हो।
  • अगर आपको पहले भी यूट्ररिन संबंधी किसी सर्जरी से गुजरना पड़ा हो ।
  • अगर आपके गर्भ में जुड़वां बच्‍चे हों ।आमतौर पर इसके लिए सिजेरियन करवाने की ज़रूरत पड़ती है।
  • इसके अलावा दूसरी जो भी जटिलताएं होती हैं, उनमें सही मॉनिटरिंग करके नॉर्मल डिलिवरी कराई जा सकती है।

कितना आता है खर्च

लखनऊ के सरकारी अस्पताल में नॉर्मल डिलिवरी 500 से 600 रूपए में हो जाती है , सिज़ेरियन में 2000 से 3000 तक का खर्च आता है । वो भी तब जब प्रसूता को प्राइवेट वार्ड में रखा जाए। इसमें दवा और खाना दोनों मुफ्त में उपलब्ध होता है। वहीँ प्राइवेट अस्पताल में सिज़ेरियन का खर्च करीब 30000 से 40000 तक आता है।इसमें दवाइयां और खाना शामिल नहीं होता।

क्या है प्राइवेट अस्पतालों की राय?

जावित्री हॉस्पिटल की डायरेक्टर डॉ मंजुल के मुताबिक यह आरोप पूरी तरह गलत है कि प्राइवेट अस्पताल पैसे कमाने के लिए सिज़ेरियन करते हैं। सही काउंसलिंग से नॉर्मल प्रसव संभव है। लेकिन अक्सर महिलाओं में मेडिकल जटिलता होती है जिसके चलते नॉर्मल डिलिवरी सम्भव नहीं हो पाती।

ऐसे में प्रसूता को सी सेक्शन की ज़रूरत पड़ती है। वहीं किरण हॉस्पिटल के डॉ पीयूष अवस्थी के मुताबिक मेडिको लीगल केसेज के चलते डॉक्टर्स एक खौफ में रहते हैं। वे जोखिम नहीं लेना चाहते। वे हर चीज के बारे में मरीज को आगाह करते हैं और मरीज डरकर सिज़ेरियन का फैसला ले लेते हैं।

कभी कभी परिवार के लोग किसी खास तारीख पर बच्चे का जन्म चाहते हैं, ऐसे में वह लेबर पेन से पहले ही ऑपरेशन करने को कहते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें सिज़ेरियन करना पड़ता है। डॉ पीयूष ने बताया कि उनके यहां 70 प्रतिशत डिलिवरी सी सेक्शन से होती है।

इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि अक्सर पहले से बिगड़े हुए मामले आते हैं। उनके यहाँ आने वाले 80 से 90 प्रतिशत केस में माँ और बच्चे को किसी तरह का खतरा होता है। अधिकतर महिलाओं में यूट्रस सम्बन्धी दिक्कतों के चलते ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प होता है।

कारण जो भी हो , महिलाओं में बढ़ते सिज़ेरियन के मामले चिंता का विषय है। अगर वक़्त रहते इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो महिलाओं के स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ सकता है।

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