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पीठ दर्द की न करें अनदेखी,हो सकती है गंभीर समस्या
नई दिल्ली: कई बार लोग हमेशा रहने वाले पीठ दर्द को मामूली दर्द समझकर और जीवनशैली का हिस्सा मानकर इसकी अनदेखी कर देते हैं, लेकिन इसकी अधिक समय तक अनदेखी घातक हो सकती है। पीठ दर्द के बहुत सारे मामले जब जांच के लिए पहुंचते हैं तो पता चलता है कि पीडि़त रीढ़ की टीबी का शिकार है। पीठ दर्द को सामान्य समझकर इलाज नहीं कराने वाले इसके प्रभाव से स्थायी रूप से अपाहिज भी हो जाते हैं। लोग अक्सर ऐसी दशा में इलाज के लिए पहुंचते हैं जब उनकी बीमारी बहुत बढ़ चुकी होती है। पीठ में दर्द को लोग टालते रहते हैं जबकि यह खतरनाक है। इसकी पहचान भी जल्दी नहीं होती। इसलिए दो-तीन हफ्ते के बाद भी पीठ दर्द में आराम न हो तो तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचना चाहिए। अगर आप इस मामले में लापरवाही करेंगे तो समस्या बढ़ भी सकती है।
इसके ज्यादा मरीज यूपी व दिल्ली में
डॉक्टरों के पास पहुंचने वाले 10 फीसदी मरीजों में रीढ़ की टीबी का पता चलता है। यह अधिक गंभीर है। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 20 लाख से ज्यादा टीबी के मरीज सामने आए हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत लोग यानि 4 लाख लोगों को स्पाइनल टीबी की शिकायत है और उनका मृत्यु दर 7 प्रतिशत है। 2016 में 76000 बच्चों में स्पाइनल टूबरक्लोसिस की समस्या सामने आयी है, जिसमें से 20000 मामले दिल्ली और उत्तर प्रदेश के हैं।
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स्पाइन में टीबी के शुरुआती लक्षण
डॉक्टरों की मानें तो रीढ़ की हड्डी में होने वाला टीबी इंटर वर्टिबल डिस्क में शुरू होता है, फिर रीढ़ की हड्डी में फैलता है। समय पर इलाज न किया जाए तो पक्षाघात की आशंका रहती है। यह बीमारी युवाओं में ज्यादा पाई जाती है। इसके लक्षण भी साधारण हैं जिसके कारण अक्सर लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। रीढ़ की हड्डी में टीबी होने के शुरुआती लक्षण कमर में दर्द रहना, बुखार, वजन कम होना, कमजोरी या फिर उल्टी इत्यादि हैं। इन परेशानियों को लोग अन्य बीमारियों से जोड़कर देखते हैं,लेकिन रीढ़ की हड्डी में टीबी जैसी गंभीर बीमारी का संदेह बिल्कुल नहीं होता। पिछले कुछ सालों में कुछ ऐसे मामले सामने आए है जिसमें गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में स्पाइनल टीबी देखा गया है। यदि घर में किसी को पहले से टीबी की शिकायत हो और वे उसके साथ कुछ समय के लिए भी रही हो, उस महिला को अधिक खतरा होने का होता है। बार-बार बीमार होना यानी अपने संक्रमण रोग से लड़ पाने में सक्षम ना होना। इसमें पीठ के निचले हिस्से में भयंकर दर्द होता है।
बीमारी की पहचान और इलाज
स्पाइन टीबी की जांच आम एक्सरे से नहीं हो पाती है। सीबीसी ब्लड काउंट, एलीवेटेड राइथ्रोसाइट सेडिमैटेशन के साथ ही ट्यूबरक्युलिन स्किन टेस्ट के जरिये टीबी के संक्रमण का पता लगाया जाता है। इसके अलावा रीढ़ की हड्डïी का पहले एमआरआई, सीटी स्कैन और फिर बोन बॉंयोप्सी जांच के जरिये भी टीबी के संक्रमण का पता लगाया जाता है।
यदि रीढ़ के बीच वाले हिस्से में दर्द हो रहा हो तो देर नहीं करनी चाहिए। हालांकि आम टीबी का इलाज छह महीने में हो जाता है, लेकिन इस टीबी के दूर होने में 12 से 18 महीने का समय लग सकता है। इसकी दवा किसी भी हाल में नहीं छोडऩी चाहिए। दवा छोडऩे पर दवा के प्रति प्रतिरोधक शक्ति बन जाती है और फिर इलाज लंबा चलता है। गौरतलब है कि टीबी का कीटाणु फेफड़े से खून में पहुंचता है और इसी से रीढ़ तक उसका प्रसार होता है। बाल और नाखून छोड़कर टीबी किसी भी हिस्से में हो सकता है। जो लोग सही समय पर इलाज नहीं कराते या इलाज बीच में छोड़ देते हैं उनकी रीढ़ गल जाती है, जिससे स्थायी अपंगता आ जाती है। यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। फेफड़ों में टीबी होने के अलावा टीबी बैक्टीरिया शरीर के दूसरे हिस्सों जैसे दिमाग, पेट, हड्डियों और रीढ़ की हड्डी को भी प्रभावित कर सकता है।
इन बातों का रखें ध्यान
टीबी की बीमारी की पहचान शुरुआती दौर में कर ली जाए तो दवाइयों द्वारा इसका इलाज किया जा सकता है। यदि संक्रमण ज्यादा फैला हो या पस की समस्या अधिक हो तो ऐसे में ऐसपिरेशन प्रक्रिया के जरिये पस को बाहर निकाल दिया जाता है। कई बार टी.बी के कारण रीढ़ की हड्डी में ज्यादा क्षति पहुंचने लगती है। ऐसी गंभीर स्थिति में सर्जरी ही इसका एकमात्र इलाज है, जिसे स्पाइनल फ्यूजन ऑपरेशन कहा जाता है।
यह काफी जटिल सर्जरी होती है। इसमें मरीज की जरूरत के मुताबिक टाइटेनियम नामक तत्व से स्क्वरॉड या टाइटेनियम केज का इस्तेमाल किया जाता है। ऑपरेशन के बाद व्यक्ति पूर्णत: स्वस्थ हो जाता है, लेकिन इसके बाद भी उसे नियमित चेकअप और खानपान पर विशेष ध्यान देने की जरुरत होती है।