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खतरनाक स्थिति: कोरोना में भारतीयों के फेफड़े ज्यादा ही खराब हुए, प्रदूषण और पुरानी बीमारी हैं वजहें
Corona damaged Lungs: अध्ययन के मुताबिक ठीक हुए व्यक्तियों के फेफड़ों की कार्यप्रणाली, व्यायाम क्षमता और जीवन की गुणवत्ता में काफी कमी देखी गई।
Corona damaged Lungs: कोरोना का तीव्र संक्रमण होने के बाद भारतीयों के फेफड़े कुछ ज्यादा ही खराब हुए हैं। कोरोना संक्रमित हुए लगभग आधे लोगों ने सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की है। इस स्थिति के लिए दो चीजें प्रमुख रूप से जिम्मेदार पाई गई हैं - कोई पुरानी बीमारी और प्रदूषण।
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर द्वारा किया गया ये अध्ययन फेफड़ों की कार्यप्रणाली पर कोरोना के प्रभाव की जांच करने वाला भारत का सबसे बड़ा अध्ययन है। अध्ययन के मुताबिक ठीक हुए व्यक्तियों के फेफड़ों की कार्यप्रणाली, व्यायाम क्षमता और जीवन की गुणवत्ता में काफी कमी देखी गई।
क्या क्या पता चला
- अध्ययन से पता चला कि गंभीर बीमारी के बाद औसतन दो महीने से अधिक समय के बाद ठीक होने वाले भारतीयों में सांस संबंधी लक्षणों की व्यापकता देखी गई, जिसमें 49.3 प्रतिशत में सांस की तकलीफ और 27.1 प्रतिशत में खांसी की शिकायत दर्ज की गई।
- सीएमसी वेल्लोर में पल्मोनरी मेडिसिन के प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डी जे क्रिस्टोफर के अनुसार, अध्ययन से यह स्पष्ट है कि बीमारी की गंभीरता की हर श्रेणी में अन्य देशों के आंकड़ों की तुलना में भारतीय आबादी में फेफड़ों की कार्यप्रणाली अधिक प्रभावित हुई है।"
- भारतीयों में बदतर क्षति का सटीक कारण जानना असंभव है, लेकिन कोई पुरानी बीमारी फेफड़ों की क्षति में योगदान देने वाला एक कारक हो सकती हैं, क्योंकि हमारी आबादी में अन्य की तुलना में पुरानी बीमारियां बहुत अधिक थीं।
- सीएमएस वेल्लोर के शोधकर्ताओं ने पाया कि 72.5 प्रतिशत व्यक्ति कोई पुरानी बीमारी, जैसे कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप और पुरानी फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित थे।
- शोधकर्ताओं ने कहा कि लगभग आधे (44.4 प्रतिशत) प्रतिभागियों ने फेफड़ों की बाधित प्रसार क्षमता दिखाई, अधिक गंभीर संक्रमण वाले लोगों में हानि की दर अधिक थी। प्रसार क्षमता से मतलब है कि फेफड़े कितनी ऑक्सीजन खून में ट्रांसफर करते हैं।
- जिन लोगों को कोरोना में वेंटिलेशन की आवश्यकता थी और वे ठीक हो गए थे, उनके फेफड़ों की कार्यप्रणाली में सबसे खराब गिरावट पाई गई थी।
टीबी की व्यापकता
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सबसे अनोखी विशेषता जो भारतीयों को कोरोना या बीमारी से प्रेरित फेफड़ों की चोट से अधिक नुकसान पहुंचाती है, वह देश में टीबी का उच्च प्रसार हो सकती है, जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर रही है और साथ ही फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रही है। पिछले साल जर्नल ऑफ इंफेक्शन एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक टीबी बोझ का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा भारत में है, और 2022 में 2.77 मिलियन लोगों में टीबी की अनुमानित घटनाएँ होंगी।
प्रदूषण भी जिम्मेदार
दूसरा कारक जो फेफड़ों के खराब नुकसान की वजह हो सकता है, वह वायु प्रदूषण है, जो निश्चित रूप से हमारी प्रतिरक्षा को कम कर रहा है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है।
विशेषज्ञों ने कहा है इसके अलावा आनुवंशिकी, जीवनशैली और स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे जैसे अन्य कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
खतरनाक स्थिति
एक्सपर्ट्स के अनुसार, भविष्य में हम श्वसन संबंधी बीमारियों के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखने जा रहे हैं। यह बारबार की फेफड़ों की बीमारी के मामले में हो सकता है, फेफड़ों के कैंसर के मामले में हो सकता है, या श्वसन संक्रमण के मामले में हो सकता है।
अब मामूली वायरल संक्रमण बहुत गंभीर प्रकार की बीमारियों में बदल रहा है, जिसके लिए अस्पताल में भर्ती होने, आईसीयू देखभाल की आवश्यकता होती है और यहां तक कि मृत्यु भी हो रही है। लोगों के फेफड़ों की कार्यप्रणाली पर पड़ने वाले प्रभाव में एक वर्ष तक सुधार हो सकता है, लेकिन कुछ रोगियों को जीवन भर कमजोर हुए फेफड़ों के साथ रहना पड़ सकता है।