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Health : हाथ पांव के जोड़ों में होने वाले दर्द को न करें नजरअंदाज

seema
Published on: 1 Dec 2018 7:36 AM GMT
Health : हाथ पांव के जोड़ों में होने वाले दर्द को न करें नजरअंदाज
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Health : हाथ पांव के जोड़ों में होने वाले दर्द को न करें नजरअंदाज

नई दिल्ली। जीवन के कई सालों तक हमारे शरीर के ज्वांइट्स बिना किसी दिक्कत के काम करते रहते हैं। लेकिन उम्र बढऩे के साथ-साथ हाथ पांव के जोड़ों में दर्द होने लगता है और हड्डियों में कमजोरी आने लगती है। सबसे ज्यादा ये परेशानी घुटनों में महसूस होती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि गर्भ में रहने के दौरान भ्रूण में एक परिवर्तन होता है। उस अवस्था में हमारे शरीर का अस्थिपंजर पूरी तरह से कार्टिलेज से बना होता है। धीरे धीरे इसमें बदलाव होता है और फिर कार्टिलेज से हड्डियां बनती हैं। कार्टिलेज शरीर के सिर्फ उसी हिस्से में रह जाता है, जहां इसकी जरूरत होती है, यानी जोड़ों में।

कार्टिलेज से हड्डियों में बदलने की यह प्रक्रिया रुक जाती है। मजबूत हड्डियों और कार्टीलेज की पतली परत के संयोग से हमारा शरीर इस लायक बनता है कि हम अलग अलग जरूरतों और परिस्थितियों के मुताबिक उसका इस्तेमाल कर पाते हैं। कार्टिलेज बेहद मजबूत होती है और सैकड़ों किलो का भार उठा सकती हैं। साथ ही ये शरीर को लचीला बनाने में भी मदद करती हैं। ये सब इसके खास ढांचे की वजह से मुमकिन हो पाता है। कार्टिलेज में एक इलास्टिक घोल मौजूद होता है जो पानी, प्रोटीन और कोलेजन की कई परतों से मिल कर बनता है। ये परत आपस में बहुत बारीकी से जुड़ी होती हैं।

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कार्टिलेज के इस ढांचे को इसी तरह का बनाए रखना जरूरी होता है और यह काम कार्टिलेज की कोशिकाएं करती हैं। कोशिकाएं लगातार कार्टिलेज के फाइबर को बदलती रहती हैं। पुरानी प्रोटीन चेन की जगह नई ले आती हैं और कई सालों तक यह प्रक्रिया इसी तरह से ठीक ठाक चलती रहती है। लेकिन उम्र बीतने के साथ इन जोड़ों में एक अजीब सी प्रक्रिया शुरू होती है। जोड़ों में कुछ ऐसा होता है कि कोशिकाएं ही कार्टिलेज को तबाह करने लगती हैं। कोशिकाएं दोबारा उसी प्रक्रिया को शुरू कर देती हैं जो भ्रूण अवस्था में हुई थी। ये प्रक्रिया कुछ लोगों में जल्दी शुरू हो जाती है और कुछ में थोड़ी देर से। इस प्रक्रिया में कुछ कार्टिलेज कोशिकाएं मर जाती हैं, तो कुछ हड्डियों की कोशिकाओं में बदल जाती हैं। कार्टिलेज अब फिर हड्डी का रूप लेने लगती है जिसकी वजह से हड्डियों का आकार बदलने लगता है और जोड़ों का मूवमेंट मुश्किल हो जाता है। वही प्रक्रिया जिसने भ्रूण अवस्था में हमें जीवन के लिए तैयार किया था, अब हमारे जोड़ों को कठोर और स्थिर बनाने लगती है। नतीजा इनमें दर्द के साथ साथ चलने फिरने और काम करने की मुश्किलों के रूप में सामने आता है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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