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सावधान! कहीं Toilet या Animal Soap से तो नहीं नहा रहे आप? त्वचा की सेहत के लिए साबुन खरीदने से पहले जरूर देखें ये डिटेल
Bathing Soap: आमतौर पर हम विज्ञापन देखकर ही अपने नहाने के साबुन को सिलेक्ट करते हैं जबकि देखना चाहिए उसका TFM प्रतिशत। नतीजन, जानकारी नहीं होने पर हम नहाने के लिए बाजार से टॉयलेट सोप या फिर कार्बोलिक सोप खरीद लाते हैं।
Bathing Soap: क्या आप भी विज्ञापन देखकर अपने नहाने के लिए कोई भी साबुन खरीद लाते हैं? अगर हां तो फिर यह खबर आपके लिए जरूरी है। क्योंकि बाजार में बिक रहे सभी साबुन नहाने के लिए नहीं होते हैं। ऐसे साबुनों में रसायनिक तत्वों की मात्रा कहीं अधिक होती है जो आपकी त्वचा और आंखों पर दुष्प्रभाव डाल सकते हैं। गौरतलब है कि भारत में बहुत कम साबुन हैं जिन्हें नहाने के साबुन (Bathing Soap) का दर्जा मिला हुआ है, शेष सभी टॉयलेट सोप (Toilet Soap) की श्रेणी में आते हैं। इतना ही नहीं कई साबुनों में तो जानवरों की चर्बी भी मिली होती है, जिनसे हम अनजान होते हैं।
आमतौर पर हम Ads देखकर ही अपने नहाने के साबुन को सिलेक्ट करते हैं जबकि देखना चाहिए उसका TFM (Total Fatty Material) प्रतिशत। टीएफएम की जानकारी नहीं होने पर हम नहाने के लिए बाजार से टॉयलेट सोप (Toilet Soap) या फिर कार्बोलिक सोप (Toilet Soap) खरीद लाते हैं। शायद आपको नहीं पता कि इनमें से ज्यादातर साबुन शौच के बाद हाथ धोने के लिए काम आते हैं।
2022-21 में दिल्ली सरकार ने यमुना नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए अधोमानक यानी सब स्टैंडर्ड साबुन व डिटर्जेंट की बिक्री पर रोक लगा दी थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भी पर्यावरणविद् अधोमानक साबुनों पर रोक लगाये जाने की मांग उठाते रहे हैं। बाथिंग सोप कौन होते हैं? TFM प्रतिशत क्या होता है? अधोमानक साबुन और बाथिंग सोप में क्या अंतर होता है? कहीं हम भी नहाने के लिए Toilet Soap का तो इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। इस चर्चा के बीच ऐसे तमाम सवाल लोगों के जेहन में हैं, इस खबर में एक-एक कर सबका जवाब दिया जाएगा।
साबुन खरीदने से पहले ध्यान दें
साबुन दो तरह के होते हैं। एक रासायनिक और दूसरा आयुर्वेदिक/हर्बल। एक नहाने के काम आता है और दूसरा हाथ धोने के। इसलिए नहाने का साबुन खरीदते समय बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। यकीनन विज्ञापन देखकर आप भी कई ऐसे साबुन जरूर खरीद लाते होंगे जिन पर Toilet Soap लिखा होता है, लेकिन आप पढ़ने की जहमत नहीं उठाते। तो अब से जब नहाने के लिए साबुन खरीदने जाएं, उसका टीएफएम प्रतिशत जरूर देखें जो हर साबुन के पैकेट पर लिखा होता है। जिस साबुन का TFM प्रतिशत जितना अधिक होगा, उसकी गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होगी। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि नहाने वाले साबुनों पर कभी भी टॉयलेट सोप नहीं लिखा होता है।
TFM प्रतिशत देखकर ही खरीदें साबुन
TFM यानी Total Fatty Material किसी भी साबुन की गुणवत्ता जानने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वह टीएफएम ही है जो साबुन की गुणवत्ता और उसका वर्गीकरण करता है। आमतौर पर हर साबुन के पैकेट पर उसका TFM प्रतिशत जरूर लिखा होता है। साबुन निर्माता कंपनियों के लिए गाइडलाइन भी है कि सभी को अनिवार्य रूप से पैकेट पर टीएफएम प्रतिशत अंकित करना होता है। त्वचा रोग विशेषज्ञों का मानना है कि नहाने के लिए हमें ऐसे साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए जिसका TFM प्रतिशत 76 फीसदी या उससे अधिक हो। ऐसे ही साबुन बाथिंग सोप की श्रेणी में आते हैं। इनके स्किन प्रॉबलम नहीं होती है या फिर बहुत कम होती है।
नहाने के लिए टॉयलेट सोप तो नहीं ला रहे?
टीएफएम प्रतिशत और गुणवत्ता के आधार पर टॉयटेल सोप को ग्रेड-2 की श्रेणी में रखा गया है। ज्यादातर भारतीय नहाने के लिए इस श्रेणी के साबुनों का इस्तेमाल करते हैं। इस श्रेणी के साबुनों में 65 से 75 फीसदी तक TFM प्रतिशत होता है। आमतौर पर इस तरह के साबुनों का उपयोग शौच इत्यादि के बाद हाथ धोने के लिए किया जाता है। ऐसे साबुन स्किन के लिए हानिकारक होते हैं। तो अब से जब भी नहाने के लिए साबुन खरीदें उसकी टीएफएम वैल्यू जरूर देखें। इनसे भी खतरनाक होते हैं कार्बोलिक सोप जो गुणवत्ता के आधार पर ग्रेड-3 में रखे जाते हैं।
कौन होते हैं कार्बोलिक सोप?
क्वॉलिटी के आधार पर Carbolic Soap को ग्रेड-3 की श्रेणी में रखा जाता है। इस तरह के साबुनों में 50 से 60 फीसदी तक टीएफएम होता है। इस तरह के साबुनों में फिनाइल की भी मात्रा शामिल होती, जिसका उपयोग फर्श साफ करने में या फिर जानवरों के शरीर के कीड़े मारने में किया जाता है। यूरोपीय देशों में इस श्रेणी के साबुनों को एनिमल सोप या जानवरों के नहलाने का साबुन भी कहा जाता है। स्किन स्पेशलिस्ट के मुताबिक, ऐसे साबुन आपकी त्वचा के लिए बेहद हानिकारक होते हैं।
स्किन और आखों को नुकसान पहुंचाता है रासायनिक साबुन
रासायनिक साबुन यानी Chemical Soap त्वचा ही नहीं आपकी आंखों के लिए भी बेहद हानिकारक होते हैं। ऐसे साबुनों में झाग बनाने के लिए सोडियम लारेल सल्फेट रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। सोडियम लारेल सल्फेट की वजह से Skin Cells शुष्क हो जाती हैं और उनके मृत होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ऐसे साबुनों के इस्तेमाल से स्किन पर खुजली और दाद की परेशानी बढ़ सकती है। आंखों के लिए भी ये साबुन काफी नुकसानदायक होते हैं। नहाते समय कई बार आपकी आंखों में साबुन चला जाता है, जिसकी वजह से आपकी आंखों में तीव्र जलन शुरू हो सकती है। केजीएमयू लखनऊ के त्वचा रोग विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी रासायनिक साबुन त्वचा के लिए लाभदायक नहीं है।
टैलो का मतलब चर्बीयुक्त है आपका साबुन
बहुत से वेज लोग नॉनवेज को छूना भी पसंद नहीं करते लेकिन, जानकारी के अभाव में कई बार वह चर्बी वाला साबुन खरीद लाते हैं। इतनी ही नहीं व्रत-उपवास व पूजा-पाठ के दौरान वह उसी से नहाते हैं। गौरतलब है कि कई साबुनों को बनाने में जानवरों की चर्बी का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में अगर आप शाकाहारी हैं तो साबुन खरीदते समय उसके पैकेट को सावधानीपूर्वक पढ़ें। अगर साबुन के पैकेट पर टैलो (Tallow) लिखा है तो इसका मतलब साबुन में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है।
TFM के आधार पर साबुन की ग्रेडिंग
ग्रेड-1 : 75 फीसदी से 80 तक तक
ग्रेड-2 : 65 फीसदी से 75 फीसदी तक
ग्रेड-3 : 50 फीसदी से 60 फीसदी तक