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Technology Disadvantage: खुद को खुद ही बचाना

Modern Technology Disadvantage: ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए तकनीकी का हम इस्तेमाल कितना करते हैं। यह भी देखना ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि जितना भी एडवांसमेंट हो रहा है । उसकी कीमत भी हमें और आपको ही चुकानी होती है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 3 Jan 2023 3:52 AM GMT
Modern Technology Disadvantage
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Modern Technology Disadvantage (photo: social media )

Modern Technology Disadvantage: वर्ष नव। हर्ष नव। जीवन उत्कर्ष नव। इस नये साल में जीवन में कुछ भी पाना है। सकारात्मक कुछ भी जुड़ना है, जोड़ना है। तो यह ज़रूरी हो जाता है कि आप कल के लिए , इन उपलब्धियों के लिए खुद को कितना बचा कर रखते हैं। बचा कर रख पाते हैं। नया साल सामने है। ढेरों नई चीजें आयेंगी। कई नए संकल्प होंगे। ढेरों बदलाव होंगे । लेकिन तमाम चुनौतियाँ और दुश्वारियां भी होंगी। सच है कि कई सहूलियतें मिलेंगी । जिन्दगी आसान बनाने के लिए जीवन व समाज के मोर्चे पर तकनीकी एडंवासेमेंट भी होंगे। ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए तकनीकी का हम इस्तेमाल कितना करते हैं। यह भी देखना ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि जितना भी एडवांसमेंट हो रहा है । उसकी कीमत भी हमें और आपको ही चुकानी होती है। आपको या हमें बचाने कोई दूसरा नहीं आने वाला, न सरकार न कोई और, हर तरह से अपनी रक्षा खुद ही करनी होती है।

नौ में से एक भारतीय को जीवन भर कैंसर होने की संभावना

नए साल में कदम रखने से पहले कुछ सच्चाइयां जानना जरूरी है । जिनसे आपको वर्ष 2023 के बारे में अपनी सुरक्षात्मक रणनीति बनाने में सहूलियत होगी। ये रणनीति सेहत और सम्पूर्ण सुरक्षा के बारे में होनी चाहिए। कैंसर एक डरावना शब्द है । लेकिन इसके बारे में जानना भी जरूरी है । सो ये जान लीजिये कि हमारे देश में यह बीमारी बहुत तेजी से बढ़ रही है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार, हर नौ में से एक भारतीय को जीवन भर कैंसर होने की संभावना होती है। यह बीमारी 2020 से 2025 तक 12.8 प्रतिशत बढ़ सकती है। सबसे खतरे में 40 से 64 आयु वर्ग वाले लोग हैं । सरकार ने संसद में कहा है कि सिर्फ बीते दो वर्षों में फेफड़े के कैंसर के मामले 5 फीसदी बढ़ गए हैं। राज्यों की बात करें तो 2022 में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार में सबसे ज्यादा मामले सामने आए। यूपी में पुरुषों और महिलाओं दोनों में 2,10,958 मामले पाए गए, इनमें अधिकतम कैंसर केस है। ये आंकड़े तो वे हैं जो सरकार के पास दर्ज हैं । लेकिन कितने ऐसे मामले होंगे जो दर्ज ही नहीं हुए होंगे। सो स्थिति डराने वाली है। कैंसर बढ़ने की वजह के बारे में सरकार ने कहा है कि तंबाकू और शराब का इस्तेमाल, शारीरिक गतिविधियां न किया जाना, अस्वास्थ्यकर आहार और वायु प्रदूषण प्रमुख रूप से इसमें शामिल हैं। आपका नए साल का संकल्प होना चाहिए कि कैंसर को जो ज्ञात वजहें हैं उनसे दूर ही रहें, खुद अपने को ही नहीं बल्कि अपनों को और पूरे समाज को बचाएं।

खान पान में मिलावट (फोटो: सोशल मीडिया )

खान पान में मिलावट

सेहत से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मसला खानपान का है। शरीर का पूरा सिस्टम खान-पान की गड़बड़ी से डिरेल हो सकता है। हमारे खान-पान में एक बहुत बड़ी समस्या मिलावट की है। अगर आप सोच रहे हैं कि खाने की मिलावट में केवल सब्जियों और फलों में रंग मिलाना शामिल है, तो फिर से सोचें। नमक में चाक पाउडर, हल्दी पाउडर में केमिकल, धनिया पाउडर में बुरादा, मिर्च पाउडर में ईंट पाउडर और केमिकल डाई आदि मिलाने से पता चलता है कि खाने में क्या मिलावट है। अनजाने में हम रोजाना इनका सेवन करते हैं। 2018-2019 की भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक संघ की रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि 28 फीसदी खाद्य नमूने मिलावटी थे। 2012 के बाद से मिलावट दोगुनी हो गई है। 2021 में भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 13 देसी ब्रांडों के शहद के नमूनों का परीक्षण किया गया। परेशान करने वाली बात यह है कि शहद के 75 फीसदी नमूनों में चीनी सिरप की मिलावट पाई गई थी, जिससे यह आम मिलावट परीक्षणों से पता नहीं चल पाया।

2022 में भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआई ने खानपान का बिजनेस करने वालों पर 28,906 दीवानी और 4,946 आपराधिक मुकदमे दर्ज किए। खाद्य नियामक ने 144,345 नमूनों का विश्लेषण किया, जिनमें से 32,934 नमूने मानकों का उल्लंघन करते पाए गए। एसोचेम की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत में 25 फीसदी दवाएं नकली, मिलावटी या अधोमानक हैं।

मिलावट अनैतिक ही नहीं बल्कि अवैध है । फिर भी मिलावट आज बड़े पैमाने पर जारी है। खाने पीने की कोई भी चीज शुद्ध है या मिलावटी, आप कुछ नहीं कह सकते। अगर जानबूझ कर मिलावट नहीं की गयी है तो भी पेस्टीसाइड, केमिकल उर्वरक आदि के अंश आपके खाने में मौजूद ही होंगे।

घर में खेती (फोटो: सोशल मीडिया )

ऐसे कर सकते हैं बचाव

ऐसे में आप कर भी क्या सकते हैं? कुछ तो बचाव आपके हाथ में है। मिसाल के तौर पर अगर आपके पास थोड़ी भी जगह है तो कुछ साग-सब्जी तो उगा ही सकते हैं, पिसे आटे की बजाये गेहूं खरीद कर उसे धोने सुखाने की बाद पिसवा सकते हैं, मैदे का इस्तेमाल बंद कर सकते हैं, सीरप वाली मिठाइयां खाना छोड़ सकते हैं। डिब्बा बंद चीजों से छुट्टी ले सकते हैं। मुमकिन हो तो अपने सामने दूध दुहवा कर ले सकते हैं। दवा जहाँ तक हो सके किसी अच्छे और स्थापित स्टोर से ही खरीदें।

ऑनलाइन ठगी (photo: social media )

ऑनलाइन ठगी

खैर, सुरक्षा का एक पहलू वित्तीय भी है। आपका रुपया पैसा, संपदा सुरक्षित रहे ये भी आपकी ही जिम्मेदारी है। इस ऑनलाइन और डिजिटल युग में हर प्रकार के ठग और जालसाज आपको लूटने की जुगत में लगे हुए हैं। सड़क पर चलते आप शायद न लुटे जाएँ । लेकिन घर में बैठे-बिठाए आप लुट सकते हैं और आपको कोई पुलिस या सरकार बचा नहीं सकती। ऑनलाइन सुरक्षा के उपाए हर तरह के मीडिया से बताये जाते रहते हैं सो उनका पालन करिए। किसी को अपना कार्ड नंबर, ओटीपी नंबर, सीवीवी नंबर, अकाउंट नंबर आदि नहीं बताना है। नहीं मतलब नहीं। जो कोई आपसे फोन पर, व्हाट्सअप पर, या ईमेल पर ऐसे डिटेल मांग रहा है उसके बारे में संदेह करिए। एक रूसी कहावत है – 'ट्रस्ट बट वेरीफाई' यानी भरोसा करिए लेकिन जाँचिये भी। इसे गाँठ बाँध कर रख लीजिये। आजकल तो सिर्फ मिस कॉल पर लूट हो रही है । सो अपनी ऑनलाइन मौजूदगी और निजी जानकारी को छिपा कर रखें।

ऑन लाइन दोस्त बनाने की इच्छा है तो इसे मार दीजिये। मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों का डिपार्टमेंट कई मेडिकल कालेजों में खुल गया है। इसलिए आप मोबाइल पर बहुत ज़रूरी समय ही दें। आज एक भारतीय औसतन चार घंटे सात मिनट समय मोबाइल पर रोज देता है। मोबाइल में नंबर सेव करने की जगह याद करने की आदत डालें। यह आप की याददाश्त के लिए भी ज़रूरी है। सोशल मीडिया के नशे से बाहर आये। भाषा पर नियंत्रण रखें। क्योंकि सोशल मीडिया की भाषा केवल आपके बारे में ही नहीं, आपके संस्कार के बारे में भी बताती है। आन लाइन काम से भी जहां तक संभव हो खुद को दूर रखें। सुबह जल्दी उठें। पर जल्दी में कोई काम न करें। मल्टी टास्कर न बनें। एक समय एक ही काम करें। बिना मौसम के फल और सब्ज़ियों से परहेज़ करें। दुकान से बिना छिला हुआ ड्राई फ़्रूट लायें। केवल मनचाहे काम ही न करते रहें। बाज़ार से ख़रीददारी करते समय पैकेजिंग की तारीख़ ज़रूर देख लें। पढ़ने की आदत की ओर लौटें। परिवार व समाज को समय दें। सामने वालों को सुने। आप जहां भी हैं या जहां पहुँचना चाहते हैं, उसके लिए केवल आप से सब नहीं हो सकता है। इसमें आपके बड़ों का आशीष, भगवान की कृपा, मित्रों शुभचिंतकों की सु संशाएं , आपका भाग्य व आपका कर्म सब काम आते हैं। सारे फ़ैक्टर में आप केवल इकाई हैं। ऐसे में 2023 का एक संकल्प अपने आप को सुरक्षित रखने का होना चाहिए।

( लेखक पत्रकार हैं/ दैनिक पूर्वोदय से साभार।)

Monika

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Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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