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Health News: इंटरमिटेंट फास्टिंग से हृदय रोग से मौत का खतरा!
Health News: लम्बे-लम्बे उपवास यानी इंटरमिटेंट फास्टिंग को वजन घटाने का एक कारगर तरीका बताया जाता है लेकिन यही तरीका बेहद खतरनाक भी साबित हो सकता है। एक अध्ययन में उसके कारण हृदय रोग से मौत का खतरा बढ़ने का दावा किया गया है।
Health News: लम्बे-लम्बे उपवास यानी इंटरमिटेंट फास्टिंग को वजन घटाने का एक कारगर तरीका बताया जाता है लेकिन यही तरीका बेहद खतरनाक भी साबित हो सकता है। एक अध्ययन में उसके कारण हृदय रोग से मौत का खतरा बढ़ने का दावा किया गया है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक अध्ययन में सामने आया है कि भोजन के समय को प्रतिदिन केवल आठ घंटे की अवधि तक सीमित करना यानी इंटरमिटेंट फास्टिंग से हृदय रोग से मौत का खतरा 91 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
क्या है इंटरमिटेंट फास्टिंग?
इंटरमिटेंट फास्टिंग एक ऐसी डाइट है जिसमें उपवास के जरिए वजन कम किया जाता है। इसमें बीच में कुछ समय छोड़-छोड़ कर उपवास करना होता है। मिसाल के तौर पर 16/8 इंटरमिटेंट फास्टिंग, जिसमें 16 घंटे उपवास रखना होता है और 8 घंटे की अवधि खाने के लिए होती है। यानी आठ घंटे में जो खाना है वह खा लीजिये फिर 18 घंटे कुछ नहीं खाना होता है। एक अन्य तरीके में हर दूसरे दिन यानी एक दिन छोड़कर उपवास रखा जाता है।
यूं तो इस तरह का उपवास पश्चिमी देशों की देन है लेकिन अब भारत में बी इसका काफी फैशन हो चला है खासकर महिलाओं में वजन घटाने या वजन मेन्टेन करने के लिए इस तरह की फास्टिंग की जाने लगी है। भारत में इस फास्टिंग के क्या प्रभाव हैं, इसका कोई रिसर्च डेटा फिलहाल नहीं है।
अमेरिका में हुआ अध्ययन शंघाई जिओ टोंग यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के विक्टर झोंग के नेतृत्व में हुआ। इसमें अमेरिकी रोग नियंत्रण केंद्र के राष्ट्रीय स्वास्थ्य और पोषण परीक्षण सर्वेक्षण में शामिल 20,000 वयस्कों के डाटा का विश्लेषण किया गया। विश्लेषण में शामिल लोगों की औसत उम्र 48 साल थी और इनमें से लगभग आधे पुरुष थे। इन लोगों में मधुमेह, हाइपरटेंशन और कार्डियोवस्कुलर रोगों का प्रसार कम था।
सवाल भी उठे
कुछ विशेषज्ञों ने अध्ययन के निष्कर्ष पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि हृदय रोग जैसे छिपे हुए कारकों के कारण निष्कर्ष प्रभावित हो सकता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मानव मेटाबॉलिज्म के प्रोफेसर कीथ फ्रेयन ने कहा - यह अध्ययन यह दिखाने के लिए महत्वपूर्ण है कि हमें इस अभ्यास के प्रभावों को समझने के लिए दीर्घकालिक अध्ययनों की जरूरत है, लेकिन इसने कई सवालों के जवाब नहीं दिए हैं। अध्ययन के शोधकर्ताओं ने भी स्वीकारा है कि इस मसले पर अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए तथा आगे और रिसर्च की जानी चाहिए।