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Scrub Typhus Fever: बहुत तेज़ी से फ़ैल रहा है स्क्रब टाइफस फीवर, जानिए कारण, लक्षण और उपचार
Scrub Typhus Fever: डेंगू की तरह इस बीमारी में भी मरीज़ के प्लेटलेट्स की संख्या तेज़ी से घटने लगती है। हालाँकि ये खुद तो संक्रामक नहीं है लेकिन इसके कारण शरीर के कई अंगों में संक्रमण फैलना शुरू हो जाता है। इसलिए बेहद जरुरी है कि वक़्त पे इसके लक्षणों को पहचान कर उसका इलाज़ किया जाये।
Scrub Typhus Fever: आजकल स्क्रब टाइफस फीवर बहुत तेज़ी से लोगों को अपना शिकार बना रहा है ख़ास कर यूपी के इलाकों में। बता दें कि स्क्रब टाइफस फीवर जिसे कीड़े के काटने से होने वाला बुखार भी कहा जाता है। यह बुखार खतरनाक जीवाणु ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी नामक बैक्ट्रीरिया के कारण फैलता है। उल्लेखनीय है कि इससे व्यक्ति के लिवर, दिमाग और फेफड़ों में कई तरह का संक्रमण होने का खतरा बन जाता है।
डेंगू की तरह इस बीमारी में भी मरीज़ के प्लेटलेट्स की संख्या तेज़ी से घटने लगती है। हालाँकि ये खुद तो संक्रामक नहीं है लेकिन इसके कारण शरीर के कई अंगों में संक्रमण फैलना शुरू हो जाता है। इसलिए बेहद जरुरी है कि वक़्त पे इसके लक्षणों को पहचान कर उसका इलाज़ किया जाये।
स्क्रब टाइफस के प्रमुख लक्षण:
इस बीमारी में व्यक्ति को कीड़े के काटने के दो हफ्ते के अंदर तेज बुखार (102-103 डिग्री फारेनहाइट), होता है। उसके साथ सिरदर्द, खांसी, मांसपेशियों में दर्द व शरीर में कमजोरी भी आने लगती है। आमतौर पर इस बीमारी से पीड़ित 40-50 फीसदी लोगों में कीड़े के काटने का निशान भी दिखता है। उल्लेखनीय है कि ये निशान गोल और काले रंग का भी हो सकता है। लेकिन आधे से अधिक पीड़ित लोगों में इसके निशान दिखाई नहीं देते है।
गौरतलब है कि इस बीमारी का इलाज संभव है लेकिन अगर इलाज़ में देरी हो जाए तो इसका बुरा असर बॉडी के कई अंगों पर पड़ सकता है। इस बीमारी का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है, अगर इस बीमारी का समय पर इलाज नहीं किया जाए तो मरीज़ के लंग्स, किडनी और लीवर पर भी इसका बहुत ही बुरा असर हो सकता है।
इतना ही नहीं इसका समय रहते इलाज नहीं हो तो यह रोग गंभीर होकर निमोनिया का रूप भी ले सकता है। इसके अलावा कुछ मरीजों में लिवर व किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती जिससे मरीज़ बेहोशी की हालत में चला जाता है। फलस्वसरूप रोग गंभीर होने पर मरीज़ में प्लेटलेट्स की संख्या भी कम होने लगती है।
ऐसे लोगों को होता है इस बीमारी का ज्यादा खतरा:
आपको बता दें कि पहाड़ी इलाके, जंगल और खेतों के आस-पास यह कीड़े ज्यादा पाए जाते हैं। इसलिए बारिश के मौसम में जंगली पौधे या घनी घास के पास इस कीड़ें के काटने का खतरा सबसे अधिक रहता है।
उपचार
इस बीमारी से ग्रसित लोगों में ब्लड टेस्ट के जरिए सीबीसी काउंट व लिवर फंक्शनिंग टेस्ट कराया जाता हैं। इसके बाद एलाइजा टेस्ट व इम्युनोफ्लोरेसेंस टेस्ट से स्क्रब टाइफस एंटीबॉडीज का पता लगाते हैं। बता दें कि 7-14 दिनों तक दवाईयां चलती है। इस दौरान मरीज को कम तला-भुना और लिक्विड डाइट लेने की सलाह दी जाती है ।
उल्लेखनीय है कि जिन लोगों के घर के आसपास यह बीमारी फैली हुई है उन्हें डॉक्टर से हफ्ते में एक बार प्रिवेंटिव दवा जरूर लेनी चाहिए।