Cancer Medicine: कैंसर की दवा से ट्यूमर का इलाज, पहली बार ऐसा ट्रीटमेंट

Cancer Medicine: जन्मजात इस ट़्यूमर से पीड़ित मरीजों की आयु डेढ़ से 25 साल के बीच रही। चार माह तक चले इलाज का रिजल्ट चौंकाने वाला रहा।

Snigdha Singh
Published on: 3 July 2024 4:33 PM GMT
Cancer Medicine ( Social- Media- Photo)
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Cancer Medicine ( Social- Media- Photo)

Cancer Medicine: जन्म से होने वाले हीमेन्जीओमा टयूमर पीड़ित मरीजों का उपचार किया गया। इंजेक्शन के जरिए दी दवा से ट्यूमर गला, नेत्र की त्वचा संग नसें सक्रिय हुईं।जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग एक बार फिर चर्चा में है। कैंसर की दवा से आंख के जन्मजात ट्यूमर हीमेन्जीओमा का खात्मा करने में सफलता मिली है।पहली बार जटिल र्सजरी के बदले दवा से जन्म से मिली समस्या के सफल इलाज को मेडिकल कॉलेज बड़ी उपलब्धि मान रहा है।

नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ शालिनी मोहन के नेतृत्व में हीमेन्जीओमा ट्यूमर से पीड़ित आठ महिला समेत 12 मरीजों का इलाज किया गया। जन्मजात इस ट़्यूमर से पीड़ित मरीजों की आयु डेढ़ से 25 साल के बीच रही। चार माह तक चले इलाज का रिजल्ट चौंकाने वाला रहा। नेत्र की त्वचा संग सुस्त पड़ चुकी नसें भी सक्रिय हो गईं।


कैंसर की दवा से ही इलाज क्यों :

12 मरीजों के हीमेन्जीओमा ट्यूमर का इलाज कैंसर की स्क्लेरोज़िंग एजेंट नाम की दवा से किया गया। मुख्य वजह यह रही कि ट्यूमर की सर्जरी बेहद जटिल व घातक है। सर्जरी के दौरान अत्याधिक खून बहने व आंखों को बड़ा नुकसान होने का खतरा अधिक रहता है। इसलिए मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों ने दवा से इलाज को चुना।


दवा की चार डोज, महीने में एक बार :

हीमेन्जीओमा पीड़ित मरीजों को स्क्लेरोज़िंग एजेंट की डोज चार माह तक दी गई। हर माह एक बार दवा दी जाती थी। कुल चार बार दवा की डोज इंजेक्शन के जरिए देने का फायदा यह हुआ कि ट्यूमर पूरी तरह गल गया। साथ ही आंख की त्वचा का रंग लाल या नीला पड़ गया था। इलाज के बाद रंग पहले की तरह सफेद हो गया।




खून से भरे ट्यूमर का एक से पांच सेमी होता है आकार :

नेत्र विशेषज्ञों के अनुसार, हीमेन्जीओमा ट़्यूमर जन्मजात होने के कारण काफी खतरनाक है। आंख के ऊपरी व भीतरी हिस्से में कहीं भी होने वाला यह ट्यूमर पूरी तरह से खून से भरा होता है। यह एक से पांच सेमी तक आकार में होता है। आंख के बाहरी हिस्से में होने वाला यह ट्यूमर आमतौर पर पलकों में छिपा रहता है, जबकि पीछे हिस्से में होने पर नसों में दबाव पड़ता रहता है। जिस वजह से अंधापन या ग्लूकोमा होने का डर अधिक रहता है।


इलाज की मुख्य चार बातें :

- ट्यूमर से खून निकाला गया

- चार माह तक दी गई दवा की डोज

- महीनेभर में एक बार दी गई दवा

- एक बार में एक एमएल दवा डाली गई

डॉ शालिनी मोहन, विभागाध्यक्ष नेत्र रोग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अनुसार आंख के जन्मजात ट्यूमर हीमेन्जीओमा का पहली बार इलाज दवा के जरिए हुआ है। जटिल व खतरनाक सर्जरी होने के कारण कैंसर की स्क्लेरोज़िंग एजेंट दवा चार माह तक 12 मरीजों को दी गई। सभी की आंखों में जन्म से यह ट्यूमर ठीक हो गया। डेढ़ से 25 साल तक की आयु वाले मरीजों में आठ महिलाएं थीं।

Shalini Rai

Shalini Rai

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