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Vaccine against cancer: कैंसर के खिलाफ डेवलप हो रही वैक्सीन ने दिए जबर्दस्त परिणाम, बड़ी जीत की उम्मीद

Vaccine against cancer: एपस्टीन-बार को रोकना मुश्किल है क्योंकि यह दो प्रकार की कोशिकाओं में निवास करता है।

Neel Mani Lal
Report Neel Mani LalPublished By Ragini Sinha
Published on: 14 May 2022 12:46 PM IST
Cancer virus
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कैंसर के खिलाफ डेवलप हो रही वैक्सीन (Social media)

Vaccine against cancer: कैंसर और मल्टीपल स्केलेरोसिस के संभावित कारक 'मोनो' वायरस के खिलाफ दो प्रायोगिक वैक्सीनों ने एक बहुत बड़ी जीत की उम्मीद जगाई है। अमेरिका में मैसाच्युसेट्स के नैटिक में स्थित एक छोटे बायोटेक स्टार्टअप, मोडएक्स थेरेप्यूटिक्स के अध्यक्ष और सीईओ, वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ गैरी नाबेल ने कहा है कि इन वैक्सीनों का अब तक केवल जानवरों में परीक्षण किया गया है। इन परीक्षण से पता चला है कि टीके उन दो मार्गों को अवरुद्ध करते हैं जिसके द्वारा एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) शरीर के अंदर जड़ें जमा लेता है।

दरअसल, एपस्टीन-बार को रोकना मुश्किल है क्योंकि यह दो प्रकार की कोशिकाओं में निवास करता है - बी प्रतिरक्षा कोशिकाएं जो एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं, और एपिथेरल कोशिकाएं जो शरीर की आंतरिक और बाहरी सतहों में होती हैं। डॉ नबेल ने कहा कि ये नए टीके आनुवंशिक रूप से एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित करने के लिए सक्षम हैं जो दोनों प्रकार के सेल के संक्रमण को रोकेंगे।नबेल ने कहा - जो वायरस शरीर में खुद को स्थापित करने में सक्षम हो सकता है , उसे ऐसा करने से हम रोक सकते हैं। इसलिए हमें लगता है कि यह एक सार्थक दृष्टिकोण है, क्योंकि हमने अनिवार्य रूप से वायरस के लिए दो महत्वपूर्ण प्रवेश प्रोटीन को अलग कर दिया है, जो कोशिकाओं में प्रवेश करने और संक्रमण का कारण बनने की इसकी क्षमता को अवरुद्ध कर सकते हैं।

अभी ऐसा कोई टीका उपलब्ध नहीं है जो एपस्टीन-बार वायरस से बचा सके। इस वायरस ने दुनिया भर में 95 फीसदी से अधिक वयस्कों को संक्रमित किया है। एपस्टीन-बार को मुख्य रूप से मोनोन्यूक्लिओसिस के कारण के रूप में जाना जाता है। यह शरीर में एंटीबॉडी उत्पादक कोशिकाओं यानी बी कोशिकाओं को संक्रमित करता है और यह उन कोशिकाओं को असामान्य रूप से बढ़ने का कारण बनता है। इससे बहुत अधिक सूजन हो जाती है और बहुत अधिक इम्यूनिटी विकार हो जाता है। यही कारण है कि लोगों को गले में खराश और ऊपरी श्वसन लक्षणों के साथ सुपर संक्रमण हो जाता है, और ये प्रणालीगत लक्षण संक्रामक मोनो को जन्म देते हैं।

ईबीवी और कैंसर

डॉ नाबेल के अनुसार, एपस्टीन-बार वायरस यानी ईबीवी भी कैंसर से जुड़ा पहला मानव वायरस था। ये मुख्य रूप से लिम्फोमा और गैस्ट्रिक कैंसर का कारक है। ये वायरस हर साल कैंसर के 200,000 से अधिक मामलों का कारण बनता है। साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने यह भी पता किया है कि एपस्टीन-बार से संक्रमित होने पर किसी व्यक्ति में मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस (एमएस) का जोखिम 32 गुना बढ़ जाता है।

नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, ईबीवी कुछ लोगों में शरीर की अपनी तंत्रिका कोशिकाओं पर हमला करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को धोखा देकर एमएस को ट्रिगर करता है।

डॉ नाबेल ने कहा कि प्रायोगिक टीके आनुवंशिक रूप से दो अलग-अलग प्रोटीनों को फ्यूज करके काम करते हैं। ये ऐसी कुंजियाँ हैं जो ईबीवी को बी कोशिकाओं और एपिथेलियल कोशिकाओं में फेरिटिन नामक मौजूद एक सामान्य कण पर प्रवेश करने की अनुमति देती हैं। फेरिटिन का नियमित काम रक्तप्रवाह में आयरन ले जाना है, लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग इसे एक अतिरिक्त उद्देश्य देती है।

साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में 4 मई को प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार, डेवलप किये जा रहे टीकों ने चूहों और बंदरों में मजबूत एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं का प्रदर्शन किया है। इन टीकों ने चूहों में लिम्फोमा कैंसर के विकास को अवरुद्ध करने का भी काम किया। इन चूहों में मानव स्टेम कोशिकाओं को डाला गया था ताकि एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट इंसानों जैसे मिल सकें। डॉ नाबेल ने कहा कि शोधकर्ताओं को एक साल के भीतर टीकों के लिए इंसानी ​​परीक्षण शुरू होने की उम्मीद है।

Ragini Sinha

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