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Water Hyacinth: जलकुंभी अब खरपतवार नहीं बल्कि बनी रोजगार का जरिया!

Water Hyacinth: मजबूत जाल की तरह पानी को पूरी तरह से ढक लेने वाली इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए वो हर संभव कोशिश करते हैं। लेकिन उन्हें ये पता नहीं होता है कि ये जलकुंभी खरपतवार नहीं बल्कि किसानों के लिए अब यह किसी वरदान से कम नहीं है।

Jyotsna Singh
Published on: 29 July 2024 4:39 PM IST (Updated on: 29 July 2024 4:40 PM IST)
Water Hyacinth
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Water Hyacinth

Water Hyacinth: आप जलकुंभी को अभी तक इस नजरिए से देखते होंगें की ये नदी, तालाब जैसी जगहों पर बस पानी में तैरने वाली एक खरपतवार भर है। क्योंकि यह जल निकाय की सतह पर तेजी से अपना विस्तार करती है। इसे खत्म करने के लिए खरपतवार नाशक की सहायता से पानी में ही नष्ट किया जाता है, लेकिन इससे कार्बनिक पदार्थ बन जाता है जो कि पानी को काफी हानिकारक बना देता है। लेकिन इस पर लंबे समय से की जा रहीं रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक इसके आश्चर्यजनक फायदे सामने आए हैं। मेडिसिन, स्किन केयर, काल्टिवेशन से लेकर कौशल विकास आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इसकी दखल लगातार बढ़ती जा रही है। तालाब या पोखरों में उगने वाली जलकुंभी अकसर उन लोगों के लिए एक बड़ी समस्या होती है जो मत्स्य पालन या इसी तरह से के माध्यम से उगने वाली खेती किसानी का काम करते हैं।

मजबूत जाल की तरह पानी को पूरी तरह से ढक लेने वाली इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए वो हर संभव कोशिश करते हैं। लेकिन उन्हें ये पता नहीं होता है कि ये जलकुंभी खरपतवार नहीं बल्कि किसानों के लिए अब यह किसी वरदान से कम नहीं है। आज के समय में जलकुंभी के कई फायदे हैं। जिसके बारे में अधिकतर किसानों को जानकारी नहीं है। जिस वजह से ना सिर्फ उन्हें आर्थिक नुकसान होता है बल्कि वो कई फायदों से वंचित भी रह जाते हैं। आज जलकुंभी का उपयोग कई तरह से किया जाता है कुछ लोग इसका उपयोग खाद बनाने में कर रहे हैं तो कुछ लोग इससे तरह-तरह के उत्पाद भी बना रहे हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट के मुताबिक, जलकुंभी में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं।ताइवान में, पौधे को इसकी कैरोटीन सामग्री के लिए काटा जाता है और खपत के लिए सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। आइए जानते हैं कैसे जलकुंभी से होने वाले लाभ के बारे में विस्तार से


मेडिसिन फील्ड में बढ़ रहा जलकुंभी का उपयोग

कई देशों में जलकुंभी का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। जलकुंभी का उपयोग हैजा, गले में खराश और साँप के काटने के जैसे कई इलाज के लिए किया जा सकता है। जलकुंभी की जड़ों, पत्तियों और फूलों का वैज्ञानिक परीक्षण किया जा चुका है। यह जिसमे पाया गया कि जलकुंभी में कई रासायनिक घटक होते हैं जो बीमारियों को ठीक करने में सक्षम होते हैं। जलकुंभी में पाए जाने वाला फाइबर शरीर के मोटापे को कंट्रोल करता है। जलकुंभी में आयोडीन पाया जाता है, जो थायरॉयड फंक्शन और मेटाबोलिज्म नियंत्रित करने में सहायक होता है। थायराइड की समस्या को कम करने और मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करने के लिए आप डाइट में जलकुंभी को शामिल कर सकते हैं। इससे कैलोरी कम होती है और मोटापा दूर होता है।


साथ ही, पाचन क्रिया को बेहतर करता है। इससे लोगों को कब्ज की समस्या में आराम मिलता है। इससे आंतों की हेल्थ में सुधार होता है, साथ ही जलकुंभी बाउल मूवमेंट को बढ़ाती है। इससे सुबह आपका पेट आसानी से साफ हो जाता है। जलकुंभी के अर्क में बुढ़ापे को रोकने के लिए एक विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जलकुंभी में कैंसर से लड़ने वाले कई यौगिक होते हैं, जिसकी वजह से इसे एंटी-कैंसर भी माना जाता है। जलकुंभी में तमाम पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर में नई ऊर्जा और ताकत प्रदान करते हैं। शरीर को फौलादी और निरोगी बनाने के लिए जलकुंभी का इस्तेमाल किया जा सकता है। महिलाओं के लिए जलकुंभी अमृत समान है। जलकुंभी को स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए यह असरदार मानी जाती है। उबली हुई जलकुंभी की फलियों का सेवन महिलाओं के लिए बेहद लाभकारी है। इस जड़ी-बूटी के फूल अनियमित पीरियड्स की परेशानी से छुटकारा दिला सकते हैं।


जैविक खाद बनाने में हो रहा जलकुंभी का इस्तेमाल

किसान खुद ही जलकुंभी को तालाब से निकालते हैं। इसे निकालने में बड़ी मुश्किल आती है, ऊपर से इस बात की कोई गारंटी नहीं रहती कि अगले साल ये खरपतवार नहीं उगेगें। इसे खरपतवार नाशक की सहायता से भी नष्ट किया जाता है, लेकिन यह कार्बनिक पदार्थ में परिवर्तित हो जाती है। जलकुंभी जो कि एक तरह का खरपतवार है। अधिकांश लोग इसे अब तक अभिशाप ही मानते आए हैं। लेकिन, किसान तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देविनेनी मधुसूदन जो कि एक प्रगतिशील किसान हैं, उन्होंने जलकुंभी का उपयोग करके जैविक खाद बनाई है। इस खाद की कीमत केवल 5 रुपये प्रति किलोग्राम है।कई अध्ययनों में यह पता चला है कि अब जलकुंभी का इस्तेमाल जैविक खाद बनाने में किया जा सकता है। इस खाद का उपयोग सब्जियों की वृद्धि या मछली को खिलाने के लिए किया जाता है।खाद बनाने के लिए डीजल इंजन द्वारा संचालित मशीन से पहले तो बड़ी आसानी से जलकुंभी को बाहर निकाला जाता है। इसके बाद इसे कई टुकड़ों में काट लिया जाता है, फिर इन सभी टुकड़ों के उपयोग से उच्च श्रेणी की खाद बनाई जाती है।


पशुवों के लिए वरदान है जलकुंभी

जलकुंभी में प्रोटीन और फाइबर की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है, जो इसे पशुओं के लिए पूरक आहार के रूप में उपयुक्त बनाती है। हालांकि, यह संपूर्ण आहार नहीं है और जानवरों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसे अन्य संतुलित आहार के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। किसानों, पशु पालकों और कृषि विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि जलकुंभी जानवरों के लिए हरे चारे का विकल्प बन रही है। इसे प्रिजर्व करके भी साइलेज के रूप में या सुखाकर हरे चारे में मिलाकर जानवरों को खिला सकते हैं। इसमें पोषकता घास के समान होती है, जिससे दूध उत्पादन में भी यह अच्छी रहती है।


मिट्टी की गुणवत्ता में लाती है सुधार

जलकुंभी को न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में कारगर पाया गया है, बल्कि यह मिट्टी के गुणों और स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, जिससे हरी खाद या कम्पोस्ट के रूप में इस्तेमाल किए जाने पर फसल की पैदावार बढ़ती है। जलकुंभी बायोचार खाद बनाने का एक विकल्प है जो मिट्टी की उत्पादकता में सुधार के लिए भी फायदेमंद हो सकता है बायोचार फर्टिलाइजर एक पोषक तत्व है जो मिट्टी को ठीक कर मिट्टी की उर्वरता और पौधों की उपज में सुधार करता है।


’कौशल विकास कार्यक्रम का हिस्सा बन चुकी है जलकुंभी’

जलकुंभी से पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किया जाता है और इस प्रक्रिया में आजीविका के अवसरों को बढ़ाने का लक्ष्य हासिल होता है। सात से दस दिनों का प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को फाइबर की पहचान करने और पर्यावरण के अनुकूल बैग, फ़ोल्डर, टोपी और चटाई बनाने के लिए जलकुंभी को सुखाने, साफ करने, प्रसंस्करण और शोधन के बारे में सीखने में मदद मिलती है। स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के लिए मिट्टी कंडीशनर के रूप में जलकुंभी के उपयोग की क्षमता पर सीखने के सत्र होते हैं। इस कार्यक्रम में झीलों, जल निकायों और आर्द्रभूमि के संरक्षण के महत्व के बारे में जानकारी दी जाती है।

Shalini singh

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