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Postpartum depression: पोस्टपर्टम डिप्रेशन की शिकार महिलायें ही क्यों होती हैं? जानें कारण, लक्षण, और बचाव
Postpartum depression: बच्चे के जन्म के साथ आयी नई जिम्मेदारियों के कारण कई तरह की मानसिक और शारीरिक उतार-चढ़ाव भी आते हैं जो डिप्रेशन या गंभीर उदासी की सम्भावना को भी पैदा करते है।
Postpartum depression: नई ज़िम्मेदारियों के साथ जब किसी व्यक्ति के जीवन में तनाव ,चिंता और अवसाद भी आ जाता है इस स्थिति को पोस्टपर्टम डिप्रेशन (Postpartum depression) कहा जाता है। यह अवस्था खासकर महिलाओं के जीवन में शिशु जन्म के उपरांत आता है। बता दें कि कई बार देखा गया है कि जिस बच्चे को अपने कोख में नौ महीने रखने के बाद औरत जब माँ बनती है यानि उसका बच्चा इस दुनिया में आ जाता है तो माँ खुश होने के बजाय गंभीर उदासी से भर उठती है।
बता दें कि बच्चे के जन्म के बाद औरत अपने जीवन में एक आधारभूत परिवर्तन और कई प्रकार के नए अनुभव भी महसूस करती हैं। कई महिलाओं के लिए यह स्थिति चिंता और अवसाद के कारणों को भी जन्म देता है। इसी कंडीशन को पोस्टपर्टम डिप्रेशन का नाम दिया गया है। बच्चे के जन्म के साथ आयी नई जिम्मेदारियों के कारण कई तरह की मानसिक और शारीरिक उतार-चढ़ाव भी आते हैं जो डिप्रेशन या गंभीर उदासी की सम्भावना को भी पैदा करते है। आधुनिक दौर में जब हर परिवार एकांकी जीवन जी रहा है ऐसे में यह समस्या काफ़ी तेजी से भी बढ़ रही है।
क्या है पोस्टपर्टम डिप्रेशन?
बता दें कि महिलाओं में पोस्टपर्टम डिप्रेशन (Postpartum depression) गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान या बच्चे के जन्म के एक वर्ष बाद तक भी शुरू हो सकती है। उल्लेखनीय है कि यह एक मानसिक बीमारी है जो आपके सोचने, महसूस करने, या कार्य करने के तरीके को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर देती है। गौरतलब है कि शुरुआती दौर में पोस्टपर्टम डिप्रेशन और सामान्य तनाव व थकावट के बीच में स्पष्ट अंतर समझ पाना बेहद मुश्किल होता है। हालाँकि गर्भावस्था के दौरान या उसके बाद थकावट, उदासी या निराशा की भावनाओं का अनुभव करना सामान्य है, लेकिन अगर व्यक्ति की भावनाएं उसको अपने दैनिक कार्यों को करने से रोकने के साथ दुखी ,चिंतित और उदास करती है तो यह पोस्टपर्टम डिप्रेशन के लक्षण हो सकते है।
पोस्टपर्टम डिप्रेशन के प्रमुख लक्षण :
पोस्टपर्टम डिप्रेशन (Postpartum depression) के प्रमुख लक्षणों में बिना किसी कारण के चिड़चिड़ा हो जाना या गुस्से में रहना , आवश्यकता से अधिक मूडी हो जाना, किसी भी काम पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, किसी भी काम को करने में आनंद नहीं आना, अस्पष्ट दर्द, पीड़ा या बीमारी का अहसास, अनियंत्रित भूख या खाने की अनिच्छा, गर्भावस्था के बाद भी लगातार वज़न बढ़ना, आत्म-नियंत्रण की कमी महसूस करना, बिना कारण अत्यधिक रोना, थकान महसूस होना और आराम करने के बाद भी नींद न आना, अपने आस-पास के लोगों, यहां तक कि दोस्तों और परिवार से भी बचना और अपने बच्चे के बारे में अत्यधिक चिंता करना या बच्चे की देखभाल करने में कोई दिलचस्पी नहीं लेना भी शामिल है।
पोस्टपर्टम डिप्रेशन होने के कारक :
- बता दें कि गर्भावस्था के दौरान व् उसके बाद की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बीमारी, सामाजिक अलगाव, या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से तनाव होना बिलकुल संभव है। ऐसे में कई बार व्यक्ति के अंदर भावनात्मक अस्थिरता भी आ सकती है। जो पोस्टपर्टम डिप्रेशन होने का कारण बन सकता है।
- महिलाओं के अंदर गर्भावस्था के दौरान या शिशु के प्रसव के बाद काफी तेज़ी से हार्मोनल परिवर्तन होते है। बता दें कि गर्भावस्था के समय, प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजेन हार्मोन के स्तर सामान्य से अधिक होने के बावजूद डिलीवरी के बाद यह स्तर अचानक से सामान्य अवस्था में पहुंच जाता है। गौरतलब है कि शरीर में अचानक से हुए इस परिवर्तन के कारण पोस्टपर्टम डिप्रेशन की समस्या उतपन्न हो सकती है।
- इतना ही नहीं अपर्याप्त आहार, नींद में कमी, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और थायरॉइड हार्मोन के कम स्तर जैसे शारीरिक कारक भी पोस्टपर्टम डिप्रेशन होने का प्रमुख कारण बन सकते हैं।
- अगर किसी के पारिवारिक इतिहास में मानसिक स्वास्थ्य बीमारी का इतिहास है तो उन्हें पोस्टपर्टम डिप्रेशन होने की सम्भावना औरों के मुकाबले ज्यादा है।
बता दें कि अप्रत्याशित पोस्टपर्टम डिप्रेशन तो कुछ महीनों या उससे भी अधिक समय तक ही चल सकता है। लेकिन अगर यही कंडीशन लम्बे समय तक चलता है तो शरीर में कई अन्य तरह की गंभीर समस्यायें भी उत्पन्न हो सकती है।
गौरतलब है कि पोस्टपर्टम डिप्रेशन मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित करने के साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य को भी नुक्सान पहुंचाता है। बता दें कि डिप्रेशन से ग्रसित लोगों में मोटापा, दिल का दौरा और लम्बी बीमारी का खतरा भी कई गुना ज्यादा बढ़ सकता है। लेकिन अगर आप सचेत रहकर डिप्रेशन के लक्षणों को पहचान कर उसका समय पर इलाज करवायें तो आप निश्चित रूप से इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि यह ध्यान रखें कि आपकी सकारात्मक मानसिकता ऐसी समस्याओं को दूर करने में हमेशा सहायक होती है।