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मंदबुद्धि या कम दिमाग के लोग होते हैं, 'आटिज्म' के शिकार
डॉ. कमलेन्द्र किशोर ने बताया कि इससे पीड़ित लोगों को लोग मंदबुद्धि और पागल कह देते हैं, जिनसे उनका इलाज नही हो पाता इसलिए जो आते हैं उन्हीं का इलाज हो पाता है और हां इन बच्चों में दांत काट लेने की प्रवृत्ति होती है और इनका मूड हर पल बदलता रहता है।
शाश्वत मिश्रा
लखनऊ: वर्ल्ड आटिज्म अवेयरनेस डे-2019 के मौके पर पूरे विश्व में कई तरह के जागरूकता के कार्यक्रम चलाये जाते हैं लेकिन शायद बहुत कम लोगों को इस बीमारी के बारे में पता है, ज्यादातर लोग इससे पीड़ित बच्चों को मंदबुद्धि या कम दिमाग का बुलाते हैं, जिससे इन बच्चों का सही समय पर इलाज नही होता।
समाज में ऐसे कई सारे बच्चे जन्म लेते हैं जिनकी मानसिक स्थिति उनके साथ वाले दूसरे बच्चों से भिन्न होती है। दरअसल ये बच्चे 'आटिज्म' का शिकार होते हैं, आटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जो बच्चों को जन्म के समय से ही हो जाता है, इस बीमारी की वजह से बच्चों को बोलने में और लोगों के सामने आने में दिक्कत होती है।
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ऐसे बच्चे बाहर से देखने में तो आम बच्चों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनकी दिमागी बनावट में फर्क होता है, इनका दिमाग आम बच्चों की तरह काम नही करता, इनका दिमाग या तो बहुत तेज काम करता या तो बहुत धीमे। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की मैथ्स बहुत अच्छी होती या फिर बहुत बेकार, इससे इनकी मानसिक स्थिति का पता चलता है कि वह किस स्टेज पर है।
बीमारी की वजह
इस बीमारी के होने की वजह मां का कमजोर होना, डिलीवरी के वक़्त अगर मां को कोई बीमारी(मलेरिया, पीलिया) या फिर अगर जन्म लेने के बाद बच्चे को सांस लेने में कोई तकलीफ हो तो बच्चा इस बीमारी का शिकार हो जाता है।
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लक्षण
-समाज से दूरी बनाकर रखना।
-आंखें न मिलाना।
-लोगों के बीच में न जाना, खुद से बातें करना, अपनी दुनिया में रहना।
-कम बातचीत करना।
-सही से बात न करना।
-एक बात को बार-बार बोलना।
-विवेकहीन बातें करना।
-दूसरों के दुःख, दर्द को नही समझ पाना।
-आवाज में बदलाव।
-मूड चेंज होना।
-दांत काट लेना।
इलाज
इस बीमारी का इलाज कराने के लिए हमें डॉक्टरों की सलाह लेनी पड़ती है, अगर कोई बच्चा इस बीमारी से पीड़ित है तो उसे जल्द से जल्द किसी मनोचिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास लेकर जाना चाहिए। जिससे उसका सही समय पर इलाज हो सके।
इसका इलाज थेरेपी और ट्रेनिंग के माध्यम से संभव है।
एक्सपर्ट्स एडवाइस
इस बीमारी में ब्रेन से डेवेलपमेंट रुक जाता है, बच्चे के व्यवहार में बदलाव आता है, वर्बल और नॉन वर्बल कम्युनिकेशन में दिक्कत होती है, ये बच्चों में जेनेटिक फैक्टर, प्रेग्नेंसी के दैरान इंफेक्शन की वजह से होता है, इसमें ब्रेन असीमित होता है, मतलब ब्रेन का कुछ पार्ट बहुत कमजोर होता है तो कुछ हिस्सा जरूरत से ज्यादा तेज।
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इन्होंने आगे कहा- कि ये बीमारी थेरेपी के द्वारा या ट्रेनिंग के द्वारा ठीक किया जाता है, इसमें कम्युनिकेशन लैंग्वेज में दिक्कत होती है, ये बच्चे फिजिकली नार्मल होते हैं लेकिन मेंटली एब्नॉर्मल होते हैं, जैसा कि आपने माई नेम इज खान में शाहरुख खान को देखा होगा वो भी इसी बीमारी का शिकार होता है।
इस बीमारी से पीड़ित लोग इमोशन्स से कनेक्ट नही हो पाते है, और अभी इंडिया में इन बच्चों का डाटा मौजूद नही है, लेकिन इंडिया में इन बच्चों की तादाद बहुत ज्यादा है, इस बीमारी से अपने बच्चों को बचाने के लिए मैटरनल हेल्थ नार्मल हो एवं डिलीवरी टाइम से होनी चाहिए।
डॉ. कमलेन्द्र किशोर ने बताया कि इससे पीड़ित लोगों को लोग मंदबुद्धि और पागल कह देते हैं, जिनसे उनका इलाज नही हो पाता इसलिए जो आते हैं उन्हीं का इलाज हो पाता है और हां इन बच्चों में दांत काट लेने की प्रवृत्ति होती है और इनका मूड हर पल बदलता रहता है।