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World Homeopathy Day 2024: दुष्प्रभाव रहित चिकित्सा पद्धति, जो है आजकल ज़रूरत

World Homeopathy Day 2024: एक होमियोपैथी चिकित्सक के नाते विश्व होम्योपैथिक दिवस पर मैं अपनी तरफ से सभी लोगों को स्वस्थ समृद्धि एवं सुखी रहने की ईश्वर से प्रार्थना करता हूं

Dr Vikram Prasad
Written By Dr Vikram Prasad
Published on: 8 April 2024 9:47 AM GMT
World Homeopathy Day 2024
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World Homeopathy Day 2024 

World Homeopathy Day 2024: होमियोपैथिक की बढ़ती हुई लोकप्रियता एवं वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रुप में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आम जन मानस को मिल रहे लाभ को देखते हुए 10 अप्रैल, 2005 में विश्व होमियोपैथिक दिवस की घोषणा की गई। तब से दस अप्रैल को डॉक्टर महात्मा सैम्युएल हैनिमन के जन्म दिन पर विश्व होमियोपैथिक दिवस मनाया जा रहा है।महात्मा हैनिमन मज़दूरी पर जीवन यापन करने वाले पिता के पुत्र थे, जिनका जन्म 10 अप्रैल,1755 में जर्मनी के सेक्सोनी शहर में हुआ था।24 वर्ष की आयु से सन् 1779 में इलगिंग विश्वविद्यालय से डॉ MD की उपाधि प्राप्त की । मगर उनका मन ऐलोपैथिक चिकित्सा में नहीं लगता था । क्योंकि उनके अंदर एक खोजी, वैज्ञानिक, आधुनिक रूढ़ि विरोधी एवं व्यवहारिक विचारों की झलक थी ।साथ ही उनके अन्दर परिश्रम, लगन तथा सूक्ष्म एंव तीक्ष्ण दृष्टिकोण तथा जनकल्याण की भावना ओत- प्रोत थी। चिकित्सा अध्ययन के साथ-साथ खनिज, जल तथा गर्म स्नान संबंधी अंग्रेजी पुस्तकों का जर्मन अनुवाद भी किया था।

इन्हें जर्मन भाषा के अलावा ग्रीक, लैटिन, अंग्रेजी, इतालवी, हिब्रू, , स्पेनिश, अरबी तथा फ्रांसीसी भाषाओं का भी समुचित ज्ञान था।हैनिमन एक अच्छे अनुवाद भी थे।व सन् 1781 में जिला चिकित्सा अधिकारी बन कर गोर्मन चले गए थे । मगर एलोपैथिक द्वारा चिकित्सा करने में उनको संतुष्टि नहीं थी। एक वर्ष बाद ही प्रेक्टिस करना बिलकुल छोड़ दिया। क्योंकि उनकी अंतरात्मा ने इस बात को स्वीकार नहीं किया कि वे एक ऐसे विज्ञान और व्यवहार की प्रेक्टिस करें जो सत्य पर आधारित न हो। उन्होंने पाया कि उस समय की चिकित्सा पद्धति अत्यंत दोषपूर्ण है । यह रोगी को लाभ पहुंचाने के बजाये हानि अधिक पहुचाती है। हैनिमन ने ऐसी अंधी चिकित्सा पद्धति को छोड़ दिया। उनको विश्वास हो गया था कि शक्तिशाली औषधि तत्व जो शरीर में घातक प्रभाव डालते है और नए रोगों को उत्पन्न करते हैं । जो वास्तविक रोग के मुकाबले में अधिक जटिल होते हैं। डॉक्टर इसे अपने रोगी को कुछ नहीं बताते हैं।


उनका यह दृढ्ढ विश्वास था कि प्रकृति ने अवश्य अपने द्वारा उत्पन्न व्याधियों का सही, वैज्ञानिक और हानिरहित निदान भी बनाया होगा। इस तरह से हैनिमन जी असैद्धांतिक चिकित्सा पद्धति को छोड़कर रसायन शास्त्र के अध्यापन में लग गये।और जीवन यापन करने के लिए अनु‌वाद करने लगे। सन् 1790 में जब वो "कलेन मटेरिया मेडिका” किताब का अंग्रेजी से जर्मन भाषा में अनुवाद कर रहे थे, तो 'कलेन का कथन था कि कुनैन मलेरिया बुखार में इसलिये काम करती है क्योंकि यह पेट के लिये टॉनिक है।हैनिमन साहब इससे असहमत थे। और इसकी वास्तविकता जानने के लिए कुनैन की दो खुराक कई दिन तक ली। और पाया कि इससे मलेरिया बुख़ार तो उत्पन्न नहीं हुआ। परंतु मलेरिया बुख़ार के लक्षण अवश्य प्रकट हुए।

इस तरह इसका प्रयोग अपने परिवार वालों एवं दोस्तों पर भी किये। सभी में वही लक्षण पाये गये। उन्होंने कुनैन के अलावा कुछ अन्य औषधियों का भी प्रयोग किया। जैसे Arsenic आदि और पाया कि अधिकतर प्रमुख औषधियां किसी न किसी रोग की तस्वीर प्रस्तुत करती हैं।और अपने अनुभव एवं प्रयोग से यह भी पाया कि वह औषधि उस रोग के उपचार हेतु बनी है। अन्ततः 6 वर्षों के गहन प्रयोग/अनुभव के बाद सन 1796 में हैनिमन साहब ने उपचार का अपना नया सिद्धान्त दुनियाँ के सम्मुख रखा।”कोई औषधि स्वस्थ इंसान में जो लक्षण उत्पन्न करती है। उन्ही लक्षणों वाली बिमारी का उपचार भी करती है। “ अपने इस सिद्धांत/ पद्धति का नाम "होम्योपैथिक " रखा। होम्यो अर्थात् समान और पैथी अर्थात् रोग "समान का समान द्वारा उपचार"( Simillia-Similbus Curenter - एिमिलिया सिमिलक्स करेंटर) इस तरह होम्योपैथी दुनिया के सामने आई।


सन 1810 में जर्मन यात्रियों एवं मिशनरीज द्वारा अपने साथ लेकर भारत आये। सन 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह की गंभीर बीमारी Odema of vocal cord के इलाज के लिए फ्रांस के होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर जॉन मार्टिन होगेनबर्ग भारत आए थे और उपचार से महाराज को बहुत लाभ मिला था । सन 1851 में एक अन्य विदेशी चिकित्सक ने कोलकाता में मुफ्त होम्यो चिकित्सालय की स्थापना की । सन 1881 में डॉक्टर पीसी मजूमदार एवं डॉक्टर डीसी राय ने भारत में प्रथम होम्योपैथिक कॉलेज की कोलकाता में स्थापना की । इसी तरह बंगाल व दक्षिण भारत की यात्रा करते हुए आज होम्योपैथिक भारत में विश्व के प्रथम स्थान पर है और बरगद के वृक्ष की भांति जनमानस को ठंडी ठंडी इलाज दे रही है।

विश्व होम्योपैथिक दिवस होम्यो परिवार एक स्वास्थ्य एक परिवार की थीम लेकर के मना रही , जिसका एकमात्र उपदेश है इस वैकल्पिक पद्धति का प्रचार प्रसार करना तथा इसका लाभ जन- जन मानस तक पहुँचाना है। क्योंकि यह उपचार प्रतिक्रिया को उत्तेजित करके और शरीर को खुद ठीक करने की क्षमता को मजबूत करती है।इसे सुदृढ़ बनाने के लिए भारत सरकार ने आयुर्वेद, योगा, नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा एवं होम्योपैथिक को मिलाकर आयुष विभाग की स्थापना नवंबर 2003 में की।पुनः लोकप्रिय एवं आयुष प्रेमी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा आयुष को भारत सरकार का एक सरकारी अंग बनाया गया।


आयुष मंत्रालय का गठन 9 नवंबर ,2014 को हुआ। जिसका उद्देश्य होम्योपैथिक की शिक्षा, चिकित्सा एवं अनुसंधान को सुनिश्चित करना है। आज आयुष विभाग पूरे देश में तरह-तरह की स्वास्थ्य स्कीम लाकर के जनमानस को कम खर्चे में बिना किसी दुष्परिणाम दिए हुए इलाज दे रहा है। इसी के साथ अपना सर्वोच्च स्थान भी बनाये हुए है। एक होमियोपैथी चिकित्सक के नाते विश्व होम्योपैथिक दिवस पर मैं अपनी तरफ से सभी लोगों को स्वस्थ समृद्धि एवं सुखी रहने की ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। अब समय है कि होम्योपैथिक की गुणवत्ता को जनमानस के पास पूरी तरह से विश्वास व निष्ठा के साथ पहुंचाएं ताकि सभी लोग इस बिना किसी दुष्प्रभाव वाली पैथी का लाभ उठा सकें।

( लेखक लब्ध प्रतिष्ठित होमियोपैथी चिकित्सक हैं। प्रदेश सरकार में होमियोपैथी निदेशक भी रहे हैं। )

Shalini singh

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