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आखिरकार 108 को मिली संजीवनी, 6 करोड़ रुपये की सहायता

tiwarishalini
Published on: 22 Sept 2017 4:40 PM IST
आखिरकार 108 को मिली संजीवनी, 6 करोड़ रुपये की सहायता
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देहरादून: एक समय देवभूमि में देवदूत सी मानी जाने वाली 108 एंबुलेंस सेवा को कुछ सांसें और मिल गई हैं। पैसा न होने की वजह से लगभग बंदी के कगार पर पहुंच गई 108 की एंबुलेंसों के पहिए सरकार से 6 करोड़ रुपये की सहायता मिलने के बाद फिलहाल चलते रहेंगे, लेकिन बड़ा सवाल है कि आखिर कब तक? 108 एम्बुलेंस सेवा उत्तराखंड के लिए जरूरी मानी जाती है। पर्वतीय मार्गों के चलते यहां दुर्घटना के आसार ज्यादा होते हैं। 108 एम्बुलेंस किसी देवदूत की तरह दुर्घटनास्थल पर पहुंचती है और पीडि़तों को अस्पताल तक ले जाती है।

इस सेवा के पिछले नौ साल के इतिहास पर नजर डालें तो शुरुआत बहुत अच्छी कही जाएगी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से 108 एम्बुलेंस बदहाली की शिकार है। पहले किसी भी इमरजेंसी के समय 108 तुरंत पहुंच जाती थी और इसने नौ साल में 30,000 से ज्यादा जानें बचाई हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से एंबुलेंस के बार-बार खराब होने और समय पर न पहुंच पाने की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। इस महीने ऐसा पहली बार हुआ कि तनख्वाह न मिलने की वजह से संस्था के कर्मचारियों ने काम पर आना छोड़ दिया।

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वर्ष 2008 में राज्य सरकार ने जीवीके ईएमआरआई के साथ उत्तराखंड में 108 एंबुलेंस सेवा चलाने के लिए करार किया था। इस करार के तहत राज्य सरकार जीवीके ईएमआरआई (जो एक लाभ के लिए काम न करने वाली संस्था है) को सारा ढांचा उपलब्ध करवाती है और जीवीके इस सेवा का संचालन करती है। मतलब उपकरण सरकार के और उन्हें इस्तेमाल करने वाले कर्मचारी जीवीके के होते हैं। इस संचालन के लिए राज्य सरकार जीवीके को हर महीने एक निश्चित राशि (दो करोड़ रुपये प्रतिमाह) का भुगतान करती है।

टीडीएस लगाने पर हुआ विवाद

समस्या टीडीएस को लेकर शुरू हुई। वित्त वर्ष 2010-11 से सरकार संस्था को किए जाने वाले भुगतान पर टीडीएस लगाने लगी। यह सिलसिला वित्त वर्ष 2015-16 तक चला। जीवीके का कहना है कि चूंकि वह लाभ कमाने वाली संस्था नहीं है और पूरी तरह अनुदान पर चलती है इसलिए उस पर टीडीएस नहीं लगता। लेकिन सरकार टीडीएस जमा करती रही और इस वित्तीय वर्ष में उसने संस्था को यह कहकर पैसा देने से इनकार कर दिया कि वह टीडीएस का पैसा वापस ले और उससे खर्च चलाए।

बिना बजट खस्ताहाल हुई एम्बुलेंस सेवा

पैसे के अभाव में 108 एंबुलेंस की हालत खराब होने लगी। कई हजार किलोमीटर का सफर तय कर चुकी एम्बुलेंस को बदलकर बेड़े में नई एम्बुलेंस शामिल करने की जरूरत थी। पुरानी एम्बुलेंस के उपकरण, पाट्र्स सब जर्जर हो गए। उन्हें मेंटेनेंस की सख्त जरूरत थी, लेकिन जब संस्था के पास अपने कर्मचारियों का वेतन तक देने के लिए पैसे नहीं बचे तो रखरखाव के अभाव में एम्बुलेंस क्या बचती।

पहले जो सेवा अच्छे काम के लिए खबरों में जगह पाती थी अब समय पर न पहुंच पाने के लिए खबरों में आने लगी। कर्मचारियों का तीन-तीन महीने का वेतन नहीं मिला तो उनके लिए किराया, राशन और बच्चों की फीस भर पाना भी मुश्किल होने लगा। यह खबरें भी स्थानीय मीडिया में बार-बार आने लगीं कि अब 108 एंबुलेंस का समय पूरा हो गया है।

पैसा न मिलने पर कर्मचारी नाराज

इसके बाद जीवीके ईएमआरआई ने उत्तराखंड शाखा को चार करोड़ रुपये का उधार दिया कि कर्मचारियों का वेतन दिया जाए और जरूरी मेंटेनेंस की जा सके, लेकिन इस पैसे से भी दो महीने का ही वेतन बांटा जा सका और सितंबर आते-आते फिर दो महीने का बकाया हो गया। संस्था से जुड़े करीब साढ़े नौ सौ कर्मचारियों में से कॉल सेंटर में काम करने वाले 25 का सब्र टूट गया और उन्होंने वेतन के लिए पहले देहरादून प्रशासन का दरवाजा खटखटाया और फिर कार्य बहिष्कार कर दिया।

जीवीके ईएमआरआई उत्तराखंड स्टेट हेड मनीष भटकू कहते हैं कि उन्होंने लोगों को बार-बार समझाया कि यह मुश्किल अकेले उनकी नहीं बल्कि सबकी है। कर्मचारियों को आश्वासन दिया गया कि संस्था पैसा जुटाने के लिए कई स्तर पर कोशिश कर रही है। यह भी बताया गया कि 108 एंबुलेंस आपातकालीन सेवा है।

इसलिए यहां लोग हड़ताल नहीं कर सकते। लेकिन एक सितंबर से देहरादून स्थित कॉल सेंटर के 40 में से 25 लोगों ने काम पर आना बंद कर दिया। मनीष भटकू के अनुसार तुरंत बैक अप स्टाफ को काम पर लगाया गया और इन 25 लोगों को नोटिस जारी किया गया। उन्हें एक और नोटिस जारी किया जा चुका है और जल्द ही उनका हिसाब कर उनकी छुट्टी कर दी जाएगी।

काफी देर बाद जागी सरकार

राज्य सरकार से बार-बार बात करने के बाद यह तो हुआ कि जीवीके कंपनी को 6 करोड़ के भुगतान की घोषणा की गयी। हालांकि यह रकम ऊंट के मुंह में जीरे समान ही कही जाएगी। मनीष भटकू के मुताबिक इससे कर्मचारियों का बकाया भुगतान हो जाएगा। पेट्रोल पंपों, मेंटेनेंस करने वालों का उधार चुकता हो जाएगा और बेहद जरूरी कार्य जैसे एंबुलेंस के टायर बदले जा सकेंगे।

भटकू कहते हैं कि इस रकम से उनका काम महज दो महीने ही सुचारू रूप से चल सकेगा। उसके बाद क्या होगा? उनकी उम्मीद टीडीएस के पैसों से भी है जिससे काम शायद कुछ और खिंच जाए। भटकू के मुताबिक टीडीएस का पैसा अब तक मिल जाना चाहिए था। पहले तो अपील पर फैसले में देर हुई, फिर यह फाइल देखने वाले अधिकारी छुट्टी पर चले गए और अब न जाने क्यों देर की जा रही है।

उत्तराखंड के लिए जरूरी है 108 एम्बुलेंस सेवा

राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी में 108 एंबुलेंस सेवा जरूरी थी, लेकिन लापरवाही और उदासीनता की वजह से इस शानदार सेवा की हालत खस्ता हो गई। 2010 के बाद कोई नई एंबुलेंस नहीं खरीदी गई और अब हालत यह है कि 138 (दो खराब हैं) के बेड़े में से आधी एंबुलेंस को बदलने की जरुरत है। सभी गाडिय़ां तीन लाख किलोमीटर से ऊपर चल चुकी हैं और कुछ तो पांच लाख तक भी। आखिर आप अपनी निजी कार को भी इतना नहीं चलाते, तो फिर आपातकालीन सेवा वाली एंबुलेंस को क्यों?

कैसे सुधरेगी 108 एम्बुलेंस सेवा

अच्छा तो यह है कि हर साल 20-20 एंबुलेंस खरीदी जाएं और पुरानी को रिटायर कर दिया जाए। भटकू के मुताबिक ऐसे में आपका बेड़ा हमेशा नया सा बना रहता है। जिन अन्य 16 राज्यों में जीवीके 108 एंबुलेंस सेवा संचालित कर रही है उनमें ज्यादातर ऐसा ही करते हैं। जीवीके के साथ सरकार का करार मार्च 2018 में खत्म होना है। उसके बाद या तो जीवीके (अगर इसे फिर मौका मिलता है तो) या कोई और संस्था 108 एंबुलेंस सेवा को संचालित करेगी, लेकिन संचालन चाहे जो करे एंबुलेंस समेत आधारभूत ढांचा तो सरकार को ही देना है। अगर वह नहीं देगी तो फिर लोग 108 पर फोन कर इंतजार करते रह जाएंगे और एंबुलेंस मदद को नहीं पहुंचेगी।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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