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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का आगाज: 'उबलती हंडियां इतनी, सभी में जिंदगी उबलती है'
जयपुर: डिग्गी पैलेस में गुरुवार (19 जनवरी) को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (लिटरेचर-फेस्ट) का आगाज शायराना अंदाज में हुआ। फेस्टिवल के पहले दिन लेखक और गीतकार गुलजार छाए रहे। इनके अलावा देश और दुनिया से आए नामचीन साहित्यकारों को सुनने के लिए लोगों में भी गजब का उत्साह देखने को मिला। लिटरेचर फेस्टिवल का उद्घाटन सीएम वसुंधरा राजे ने किया।
लिटरेचर फेस्ट के पहले दिन खास मेहमान रहे गुलजार ने अपने अंदाज में दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। गुलजार ने अपनी बात की शुरुआत गुलाबी नगरी और यहां के लोगों की खूबसूरती से की। उन्होंने कहा, 'ये शहर और यहां के लोग बेहद खूबसूरत हैं। यहां आकर मन खुश हो जाता है। अपनी रचनाओं पर उन्होंने कहा, 'लेखन के लिए जरूरी है कि इंसान जमीन से जुड़ा रहे।'
गुलजार को इस बात की टीस
हालांकि इस दौरान गुलजार की एक टीस भी बाहर आई। उनकी आपत्ति देश की भाषाओं को 'रीजनल लेंग्वेज' कहे जाने को लेकर थी। उन्होंने कहा 'उनकी दिली तमन्ना है कि भारत की किसी एक भाषा को हर साल दुनिया के इस सबसे बड़े उत्सव में तवज्जो मिले।'
फेस्ट ने बनाई जयपुर की अलग पहचान
इससे पहले राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। उन्होंने साहित्य के इस मेले को जयपुर की खूबसूरती बताया। राजे बोलीं, 'लिटरेचर फेस्ट के कारण जयपुर साहित्य की दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है।' उदघाटन सत्र में इनर इंजीनियरिंग के प्रवर्तक सदगुरू जग्गी वासुदेव और साहित्यकार एनी वॉल्डमेन सहित कई नामचीन लेखक और कवि मौजूद थे।
कुछ यूं चला गुलजार का जादू:
तकरीर करना मुझे भारी लगता है
मशहूर गीतकार गुलजार ने मंच पर आते ही कहा, तकरीर करना मुझे सबसे भारी लगता है। अब तक नज्म सुनाकर चला जाता था, लेकिन इस बार आयोजकों ने मुझे की-नोट स्पीकर बना दिया। मुझे उन कुर्सियों पर बैठने से डर लगता है, जिन पर बैठने से पांव जमीन पर नहीं लगते।'
-गुलजार साहब ने आगे कहा, 'फूल चाहे कितनी भी उंची टहनी पर लग जाए, लेकिन मिट्टी से जुड़ा रहता है, तभी खिलता है। जमाने को बहलाना आसान नहीं है। आप किसी छोटे हलके को तो बहला लो, लेकिन पूरे समाज को नहीं बहला सकते।'
-जब किसी बर्तन के भीतर उबाल आ रहा हो, तो बर्तन का ढक्कन खड़खड़ाने लगता है। उसकी यह भाप ही मेरी लिखाई है। मेरे अंदर का उबाल ही मेरी लिखाई है।
-हिंदुस्तान में त्योहारों के अलग ही मजे हैं। पतंग हैं तो त्योहार है। रंग हैं तो रंग का त्योहार है। अब किताबों का भी त्योहार है। हर लैंग्वेज नेशनल है। आप तमिल को, बंगाली को किसी रीजन में कैसे बांट सकते हैं।'
-गुलजार ने आगे कहा, 'उबलती हंडियां इतनी, सभी में जिंदगी उबलती है, लेकिन न पकती है न गलती है ये जिंदगी यूं ही चलती है।"