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13 January 1948 History: महात्मा गांधी का आखिरी आमरण अनशन, जब देश के लिए पाँच दिन भूखे रहे गांधी जी

13 January 1948 History in Hindi: महात्मा गांधी ने अपने जीवन भर सत्य, अहिंसा और धर्म के सिद्धांतों का पालन किया था। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली थी।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 12 Jan 2025 3:38 PM IST
13 January 1948 History Of Mahatma Gandhi Amaran Anshan Wikipedia in Hindi
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13 January 1948 History Of Mahatma Gandhi Amaran Anshan Wikipedia in Hindi 

13 January 1948 History in Hindi: महात्मा गांधी का ऐतिहासिक अनशन 13 जनवरी, 1948 को शुरू हुआ था, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और गांधी जी की आत्म-समर्पण की भावना का प्रतीक बना। यह अनशन, जो उनके जीवन के अंतिम दिनों का हिस्सा था, एक गहरी राजनीतिक और सामाजिक घटना थी, जिसका प्रभाव ना केवल भारतीय राजनीति पर पड़ा, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण था। नीचे इस अनशन से संबंधित सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है...

महात्मा गांधी का अनशन क्यों

महात्मा गांधी ने अपने जीवन भर सत्य, अहिंसा और धर्म के सिद्धांतों का पालन किया था। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली थी। लेकिन देश के विभाजन के कारण साम्प्रदायिक तनाव और हिंसा में वृद्धि हो गई थी। पाकिस्तान और भारत के बीच विभाजन के दौरान लाखों लोग मारे गए। करोड़ों लोग विस्थापित हो गए। इस हिंसा और घृणा को देखते हुए गांधी जी बहुत दुखी थे।


गांधी जी ने देखा कि हिंदू-मुस्लिम के बीच हिंसा और नफरत के कारण समाज का एक बड़ा हिस्सा अपाहिज हो गया था। विभाजन के बाद पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। यह तनाव सीमा पार करने की स्थिति में था। गांधी जी ने अपने जीवन को सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के पालन में समर्पित किया था। उन्होंने सोचा कि यह सही समय है जब वह एक बड़ा कदम उठाकर भारतीय समाज को साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए जागरूक करें।


उनका अनशन इस उद्देश्य से था कि पाकिस्तान को भारत से मिलने वाली वित्तीय सहायता (जो विभाजन के समय तय हुई थी) तत्काल दी जाए और देश में साम्प्रदायिक हिंसा को रोका जाए। गांधी जी ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि पाकिस्तान को भारत से दी जाने वाली 55 करोड़ रुपये की राशि रोक दी गई थी।वह चाहते थे कि भारत में शांति और भाईचारे की स्थिति बने।

13 जनवरी, 1948 को अनशन की शुरुआत

गांधी जी ने 13 जनवरी, 1948 को अनशन शुरू किया। उन्होंने यह अनशन दिल्ली के बिरला हाउस (जो अब गांधी स्मृति के रूप में प्रसिद्ध है) में शुरू किया। उनका उद्देश्य था कि पाकिस्तान को भारत से मिलने वाली 55 करोड़ रुपये की राशि दी जाए, ताकि पाकिस्तान में शांति बनी रहे और भारत में साम्प्रदायिक हिंसा को रोका जा सके।


गांधी जी ने अपना अनशन सार्वजनिक रूप से शुरू किया और यह उनका अंतिम अनशन था। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह अनशन राजनीतिक नहीं था, बल्कि यह एक नैतिक और धार्मिक कृत्य था, जिसे वह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के बीच साम्प्रदायिक एकता और शांति स्थापित करने के लिए कर रहे थे।

सांप्रदायिक हिंसा रोकने की शर्तें

  1. अनशन के दौरान, गांधी जी ने देश में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें रखीं। इनमें प्रमुख थीं:
  2. सांप्रदायिक हिंसा को तत्काल रोका जाए।
  3. सभी धर्मों के लोग आपसी सौहार्द बनाए रखें।
  4. पाकिस्तान को भारत द्वारा दी जाने वाली 55 करोड़ रुपये की राशि तुरंत सौंपी जाए, जो विभाजन के समय तय की गई थी।
  5. शरणार्थियों को सुरक्षित स्थान और सहायता प्रदान की जाए।
  6. गांधी जी के अनशन का उद्देश्य केवल सांप्रदायिक हिंसा को समाप्त करना नहीं था, बल्कि समाज में भाईचारे और एकता को पुनः स्थापित करना भी था।

अनशन के दौरान की स्थिति

गांधी जी का अनशन जब शुरू हुआ, तो पूरे देश में हलचल मच गई। उनका यह कदम उन लोगों के लिए एक गंभीर चेतावनी था जो साम्प्रदायिक हिंसा में लिप्त थे। गांधी जी के अनशन का असर केवल भारतीय नेताओं पर ही नहीं, बल्कि विश्वभर के नेताओं और जनता पर भी पड़ा।

जब गांधी जी ने अनशन शुरू किया, तो यह समझा गया कि यदि उन्होंने यह अनशन जारी रखा, तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। गांधी जी के इस कदम ने भारतीय समाज और राजनीति में एक नई हलचल मचा दी।

गांधी जी के अनशन की प्रतिक्रिया

गांधी जी के अनशन के बाद भारतीय राजनीति में तुरंत बदलाव आया। भारतीय नेताओं ने इसे गंभीरता से लिया।यह महसूस किया कि अगर गांधी जी ने अपनी जान खो दी, तो इसका गंभीर असर होगा। इस अनशन के कारण भारत सरकार पर दबाव बढ़ा। विशेषकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मुद्दे पर गांधी जी से मुलाकात की।


नेहरू जी और अन्य नेताओं ने गांधी जी से अपील की कि वह अपना अनशन तोड़ें, क्योंकि उनका स्वास्थ्य बिगड़ सकता था और इससे देश में अनिश्चितता बढ़ सकती थी। इसके बावजूद, गांधी जी ने अपना अनशन जारी रखा। वे पाकिस्तान से 55 करोड़ रुपये की राशि को रोकने के फैसले को वापस लेने पर अड़े रहे।

अनशन का परिणाम

गांधी जी के अनशन का तत्काल असर यह हुआ कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये की राशि देने का फैसला किया। गांधी जी के अनशन का प्रभाव पूरे देश में व्यापक रूप से पड़ा। अनशन के पांचवें दिन, 18 जनवरी, 1948 को, विभिन्न संगठनों के 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने गांधी जी से मुलाकात की। उनकी सभी शर्तों को मानने का आश्वासन दिया। इसके बाद गांधी जी ने अपना अनशन समाप्त किया।


हालांकि, गांधी जी के अनशन का परिणाम केवल राजनीतिक था। लेकिन इसके पीछे उनका उद्देश्य समाज में सत्य और अहिंसा के मूल्यों को स्थापित करना था। गांधी जी ने अपने अनशन के द्वारा यह संदेश दिया कि समाज को धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता के साथ व्यवहार करना चाहिए।

गांधी जी की मृत्यु के बाद की स्थिति

गांधी जी के अनशन के बाद उनका स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ने लगा था। इसके बावजूद, उन्होंने अपना अनशन समाप्त करने का कोई संकेत नहीं दिया। हालांकि, उनका यह अनशन भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाल चुका था।


अनशन समाप्त होने के ठीक 11 दिन बाद, 30 जनवरी, 1948 को, गांधी जी की नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी। गांधी जी की हत्या से देश शोक में डूब गया। उनकी मृत्यु से तीन दिन पहले, उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए महरौली स्थित कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह का दौरा किया। उस समय दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रही थी।गांधी जी ने दरगाह छोड़ने से पहले एक बड़ी सभा को संबोधित करते हुए शांति, भाईचारे और एकता का संदेश दिया। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे हिंसा और नफरत को त्यागकर शांति के रास्ते पर चलें।

दरगाह की स्थिति और गांधी जी की भावना

दरगाह के कुछ हिस्से को क्षतिग्रस्त देख गांधी जी पूरी तरह टूट गए। यह नुकसान पाकिस्तान से आए शरणार्थियों द्वारा किया गया था, जिन्हें सरकार ने दरगाह के पास ही बसाया था। गांधी जी इस घटना से गहराई से आहत हुए और उन्होंने इसे सांप्रदायिक तनाव का प्रतीक माना।

अनशन की शुरुआत और गांधी जी का आखिरी भाषण

गांधी जी ने 13 जनवरी, 1948 को अपना अनशन आरंभ किया। इससे एक दिन पहले, 12 जनवरी, 1948 की शाम को, उन्होंने अपना अंतिम सार्वजनिक भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने अपने अनशन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा, "देश में सांप्रदायिक दंगों में होती बर्बादी देखने से बेहतर है कि मैं मृत्यु को गले लगा लूं।" यह भाषण उनके दृढ़ निश्चय और त्याग की भावना का प्रतीक था।

यह अनशन और उनकी मृत्यु भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक गहरी सीख थी और उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। गांधी जी का अनशन और उनके जीवन का उद्देश्य यह था कि दुनिया में कभी भी धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर हिंसा न हो। यह आज भी उनके विचारों और आदर्शों का सबसे बड़ा संदेश है।


महात्मा गांधी का यह अनशन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह न केवल उनकी अडिग इच्छाशक्ति और सत्यनिष्ठा का प्रमाण था, बल्कि समाज में शांति और साम्प्रदायिक सौहार्द लाने का एक प्रेरणादायक उदाहरण भी था। गांधी जी का यह बलिदान हमें यह सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति में सत्य और अहिंसा का मार्ग छोड़ना नहीं चाहिए। उनकी शिक्षाएं आज भी भारतीय समाज और दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।



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