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14 जनवरी से आने वाले है अच्छे दिन, यहां जानिए कैसे...
उत्तर भारत में इस त्यौहार को माघ मेले के रुप में मनाया जाता है तथा इसे दान पर्व माना जाता है।14 दिसंबर से 14 जनवरी तक खर मास या मल मास माना जाता है जिसमें विवाह संबंधी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। अतः14 जनवरी से अच्छे दिनों का आरंभ माना जाता है।
सहारनपुर: उत्तर भारत में इस त्यौहार को माघ मेले के रुप में मनाया जाता है तथा इसे दान पर्व माना जाता है।14 दिसंबर से 14 जनवरी तक खर मास या मल मास माना जाता है जिसमें विवाह संबंधी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। अतः14 जनवरी से अच्छे दिनों का आरंभ माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य मदन गुप्ता सपाटू के अनुसार मकर संक्राति के स्नान से लेकर शिवरात्रि तक स्नान किया जाता है।
इस दिन खिचड़ी सेवन तथा इसके दान का विशेष महत्व है। इस दिन को खिचड़ी भी कहा जाता है। महाराष्ट्र् में इस दिन गुड़ तिल बांटने की प्रथा है। यह बांटने के साथ साथ मीठा बोलने के लिए भी आग्रह किया जाता है। गंगा सागर में भी इस मौके पर मेला लगता है। कहावत है- सारे तीरथ बार बार - गंगा सागर एक बार।
तमिलनाडु में इसे पोंगल के रुप में चार दिन मनाते हैं और मिटटी की हांडी में खीर बनाकर सूर्य को अर्पित की जाती है। पुत्री तथा जंवाई का विशेष सत्कार किया जाता है। असम में यही पर्व भोगल बीहू हो जाता है।
संक्राति पर खगोलीय दृष्टि
जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। धरती का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना ‘क्रान्ति चक्र’ कहलाता है।
इस परिधि को 12 भागों में बांटकर 12 राशियां बनी हैं। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी में जाना ‘संक्रान्ति ’ कहलाता है। यह एक खगोलीय घटना है जो साल में 12 बार होती है। सूर्य एक स्थान पर ही खड़ा है, धरती चक्कर लगाती है। अतः जब पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करती है, एस्ट्रोनॉमी और एस्ट्रोलॉजी में इसे मकर संक्रान्ति कहते हैं।
इसी प्रकार सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण कहलाता है। उत्तरायण आरंभ होते ही दिन बड़े होने लगते हैं। रातें अपेक्षाकृत छोटी होने लगती हैं। इस दिन पवित्र नदियों एवं तीर्थेंा में स्नान, दान,देव कार्य एवं मंगलकार्य करने से विशेष लाभ होता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य, कर्क व मकर राशियों को विशेष रुप से प्रभावित करते हैं। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में है। सूर्य मकर संक्रांति से पूर्व ,दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है अतः सर्दी के मौसम में दिन छोटे रहते हैं।
इस दिन सूर्य के उत्तरायण में आने से दिन बड़े होने शुरु होते हैं और शरद ऋतु का समापन आरंभ हो जाता है। प्राण शक्ति बढ़ने से कार्य क्षमता बढ़ती है अतः भारतीय सूर्य की उपासना करते हैं। यह संयोग प्रायः 14 जनवरी को ही आता है।
शास्त्रों मे दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मक समय तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। पौराणिक संदर्भ में मान्यता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके गृह आते हैं।
मकर राशि के स्वामी चूंकि शनिदेव हैं, इस लिए भी इसे मकर संक्राति कहा जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देह त्याग का समय यही चुना था। भारत में यशोदा जी ने इसी संक्रान्ति पर श्री कृष्ण को पुत्र रुप में प्राप्त करने का व्रत लिया था।
इसके अलावा यही वह ऐतिहासिक एवं पौराणिक दिवस है जब गंगा नदी, भगीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगासागर तक पहुंची थी।
मान्यता है कि मकर संक्रान्ति पर यज्ञ या पूजापाठ मे अर्पित किए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देव व पुण्यात्माएं धरती पर आती हैं।
यह संक्रान्ति काल मौसम के परिवर्तन और इसके संक्रमण से भी बचने का हैं। इसी लिए तिल या तिल से बने पदार्थ खाने व बांटने से मानव शरीर में उर्जा का संचार होता है। तिल मिश्रित जल से स्नान,तिल उबटन, तिल भोजन, तिल दान, गुड़ तिल के लडडू मानव षरीर को सर्दी से लड़ने की क्षमता देते हैं।
इस दिन खिचड़ी के दान तथा भोजन को भी विशेष महत्व दिया गया है। उत्तर प्रदेश के लोग इसे ‘खिचड़ी ’ के रुप में मनाएंगे और महाराष्ट्र्यिन ‘ ताल- गूल’ नामक हलवा बाटेंगे। बंगाल से आए लोग भी तिल दान करेंगे।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मौसम में आए परिवर्तन को आज भी रोम में खजूर,अंजीर और शहद बांट कर मनाया जाता है। तिल के महत्व को प्राचीन ग्रीक के लोग भी मानते थे और वर-वधु की संतान वृद्धि हेतु तिल के पकवानों को खिलाते थे।
इस पर्व को देश में हर राज्य में अपने तरीके से मनाया जाता है। गुजरात व राजस्थान में यह उत्तरायण पर्व है तो उत्तर प्रदेश में खिचड़ी है।
तमिलनाडु में पोंगल तो आंध्रा में तीन दिवसीय पर्व है। बंगाल में गंगा सागर का मेला है तो पंजाब में एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है। असम में बिहु के नाम से त्योहार मनाया जाता है।