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पीएम मोदी साढ़े तीन लाख करोड़ से दूर करेंगे पानी की समस्या, जानिए कैसे?

पीएम मोदी ने पीने वाले पानी की समस्या को उजागर करते हुए कहा कि आज देश में आधे से ज्यादा घर ऐसे हैं जिनमें पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। उनके जीवन का बड़ा हिस्सा पानी लाने में बीत जाता है। हमारी सरकार ने ‘हर घर में जल’ पीने का पानी लाने का संकल्प किया है।

SK Gautam
Published on: 15 Aug 2019 8:32 AM GMT
पीएम मोदी साढ़े तीन लाख करोड़ से दूर करेंगे पानी की समस्या, जानिए कैसे?
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नई दिल्ली: आज हमारे भारत देश को स्वतंत्र हुए 73 साल हो चुके हैं। इस 73वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित किया और देश की हित की बातें भी की। अपने भाषण में पीएम मोदी ने पेयजल की समस्या और उसके निदान बातें मुख्य रूप से किया जिसमें जल जीवन मिशन की नई योजनावों के बारे में बताया ।

जानें क्या है ये मिशन जिसमें साढ़े तीन लाख करोड़ की लागत लगेगी।

पेय जल की समस्या

पीएम मोदी ने पीने वाले पानी की समस्या को उजागर करते हुए कहा कि आज देश में आधे से ज्यादा घर ऐसे हैं जिनमें पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। उनके जीवन का बड़ा हिस्सा पानी लाने में बीत जाता है। हमारी सरकार ने ‘हर घर में जल’ पीने का पानी लाने का संकल्प किया है।

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जन सामान्य का अभियान बने

पेयजल की समस्या के बारे में पीएम मोदी ने कहा कि जैन मुनि महुड़ी ने लिखा है कि भविष्य में एक दिन ऐसा आएगा जब पानी किराने की दुकान में बिकेगा।

100 साल पहले उनकी कही बात सही हो गई है। आज हम किराने की दुकान से पानी खरीदते हैं। उन्होंने कहा कि जल संचय का यह अभियान सरकारी नहीं बनना चाहिए, जन सामान्य का अभियान बनना चाहिए।

आने वाले दिनों में जल जीवन मिशन को लेकर आगे बढ़ेंगे। इसके लिए केंद्र और राज्य मिल कर साथ काम करेंगे। साढ़े तीन लाख करोड़ से भी ज़्यादा इस पर खर्च करने का संकल्प किया है।

मिशन के बारे में

पीएम मोदी ने आगे कहा कि वर्षा के पानी को रोकने, समुद्री पानी, माइक्रो इरिगेशन, पानी बचाने का अभियान, सामान्य नागिरक सजग हो, बच्चों को पानी के महत्ता की शिक्षा दी जाए। पीएम ने लोगों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि 70 साल में जो काम हुआ है अगले पांच वर्षों में उससे पांच गुना अधिक काम हो, हमें इसका प्रयास करना है।

किसानों को माइक्रो इरीगेशन के लिए प्रोत्साहित करना

माइक्रो इरीगेशन एक ऐसी तकनीकी है जिसमें कम पानी में ही पूरे खेतों की सिंचाई हो जाती है जिससे काफी मात्रा में पानी की बचत की जा सकती है। सरकार इसके लिए डायरेक्‍ट सब्सिडी देने की योजना बना रही है। ताकि, किसान माइक्रो इरीगेशन को अपनाकर कम पानी में ही फसलों की फसलों की सिंचाई कर सकें।

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77 लाख हेक्‍टेयर में होती है माइक्रो इरीगेशन

देश में मौजूदा समय में करीब 77 लाख हेक्‍टेयर कृषि भूमि पर माइक्रो इरीगेशन सिस्‍टम से सिंचाई की जाती है, जो बेहद कम है। इसे 6.95 करोड़ हेक्‍टेयर करने की जरूरत है। माइक्रो इरीगेशन के लिए यह रणनीति कंसल्टिंग फर्म थार्नटन इंडिया ने तैयार की है। इसे इंडस्‍ट्री बॉडी फिक्‍की और इरीगेशन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कमीशंड किया है।

तीन राज्‍यों से होगी शुरुआत

देश का बहुत बड़ा हिस्सा दो साल से सूखे की चपेट में है। पानी की सबसे अधिक जरूरत फसलों की सिंचाई में होती है। पानी की बचत के लिए यह जरूरी हो है कि किसानों को माइक्रो इरीगेशन की ओर ले जाया जा सके।

किसानों को यदि माइक्रो इरीगेशन के लिए उपकरणों पर डायरेक्‍ट सब्सिडी मिलेगी तो वे इसे आसानी से अपनाएंगे। इसके लिए उन्‍होंने शुरुआती सुझावों में तीन राज्‍यों आंध्र प्रदेश, गुजरात और महाराष्‍ट्र से इसकी शुरुआत करने पर जोर दिया।

90 फीसदी तक है सब्सिडी

यह सब्सिडी 90 प्रतिशत तक भी है। लेकिन, डायरेक्‍ट सब्सिडी न होने के कारण किसान इन्‍हें खरीद नहीं पाते हैं। पिछले साल केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना लागू की थी। इसमें भी ज्‍यादा सिंचाई वाली फसलों पर ड्रिप इरीगेशन सिस्‍टम से ही सिंचाई पर जोर दिया जा रहा है।

वर्षा जल संरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनायें

ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के संकट को देखते हुए जल संरक्षण के विषय को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'ग्राम प्रधानों' को पहले ही निजी तौर पर पत्र लिख चुके हैं जिसमें उन्होंने उनसे आगामी मानसून के दौरान वर्षा के जल का संरक्षण करने का अनुरोध किया है।

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उदाहरण के लिए, मोदी के निवार्चन क्षेत्र वाराणसी के पास स्थित उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में उनका पत्र 637 ग्राम प्रधानों को दिया गया है जिसमें उन्होंने प्रधानों (सरपंच) से अनुरोध किया है कि वे इस मानसून ग्रामीणों को वर्षा जल के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रयास करें।

प्रधानमंत्री के पत्र के कुछ अंश

व्यक्तिगत व अपनेपन की भावना के साथ हिंदी में लिखे गए पत्र में प्रधानमंत्री ने कहा है, “प्रिय सरपंचजी, नमस्कार। मुझे उम्मीद है कि आप और पंचायत के मेरे सभी भाई और बहनें पूरी तरह स्वस्थ होंगे। बारिश का मौसम शुरू होने वाला है। हम ईश्वर के आभारी हैं कि हमें पयार्प्त वषार्जल का आशीर्वाद मिला है। हमें इस आशीर्वाद (जल) के संरक्षण के लिए सभी प्रयास और व्यवस्था करनी चाहिए।”

पत्र में कहा गया है, “यह अनुरोध किया जाता है कि गांव में इस बात पर चर्चा होनी चाहिए कि जल संरक्षण कैसे किया जा सकता है। मुझे आप सभी पर भरोसा है कि बारिश के पानी की हर बूंद को बचाने के लिए पयार्प्त व्यवस्था की जाएगी।”

प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण के लिए यह सुझाव भी दिया

प्रधानमंत्री ने चेक डैम और तालाबों के निमार्ण का भी सुझाव दिया है, जहां वर्षा जल का उचित तरीके से संरक्षण किया जा सके।

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फसलों के लिए उपयोग होने वाले कीटनाशक के प्रयोग को कम करना या उसके विकल्प के रूप में पारंपरिक खाद का ही उपयोग करना अच्छा

कीटनाशक रासायनिक या जैविक पदार्थों का ऐसा मिश्रण होता है जो कीड़े मकोड़ों से होनेवाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने या उनसे बचाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग कृषि के क्षेत्र में पेड़ पौधों को बचाने के लिए बहुतायत से किया जाता है।

उर्वरक पौध की वृद्धि में मदद करते हैं जबकि कीटनाशक कीटों से रक्षा के उपाय के रूप में कार्य करते हैं

उर्वरक पौध की वृद्धि में मदद करते हैं जबकि कीटनाशक कीटों से रक्षा के उपाय के रूप में कार्य करते हैं। कीटनाशक कीट की क्षति को रोकने, नष्‍ट करने, दूर भगाने अथवा कम करने वाला पदार्थ अथवा पदार्थों का मिश्रण होता है। कीटनाशक रसायनिक पदार्थ (फासफैमीडोन, लिंडेन, फ्लोरोपाइरीफोस, हेप्‍टाक्‍लोर तथा मैलेथियान आदि) अथवा वाइरस, बैक्‍टीरिया, कीट भगाने वाले खर-पतवार तथा कीट खाने वाले कीटों, मछली, पछी तथा स्‍तनधारी जैसे जीव होते हैं।

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बहुत से कीटनाशक मानव के लिए जहरीले होते हैं। सरकार ने कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया है जबकि अन्‍य के इस्‍तेमाल को विनियमित (रेगुलेट) किया गया है।

आवश्यकता से ज्यादा उर्वरकों का उपयोग खेती को बंजर

आवश्यकता से ज्यादा उर्वरकों का उपयोग खेती को बंजर कर देता है। कई प्रकार के कीटनाशक जो कीड़ों को मारने में सहायक है, उनका प्रयोग करने से कैंसर जैसी घातक बीमारियां भी होती हैं। इसलिए बिना जरूरत और उचित सलाह के कीटनाशकों का प्रयोग न किया जाए। और समय-समय पर मृदा परीक्षण कराए जाने से उसमें आवश्यक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है।

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