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18 साल पहले हुआ ‘कैश फॉर क्वेरी‘ का वो कांड, जिसमें 4 पार्टियों के 11 सांसदों की रद्द कर दी गई थी सदस्यता, जानिए क्या था मामला
‘कैश फॉर क्वेरी‘ का महुआ मोइत्रा का मामला कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले 2005 में भी ऐसा एक मामला सामने आया था, जब संसद के 11 सांसदों को पैसे के बदले सवाल पूछने का दोषी पाया गया था और उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी।
Cash for Query Case: पश्चिम बंगाल से टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की लोकसभा की सदस्यता शुक्रवार को रद्द कर दी गई। उन्हें कैश फॉर क्वेरी यानी पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में दोषी पाया गया था। लोकसभा की एथिक्स कमेटी ने महुआ की लोकसभा की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की थी। इसी रिपोर्ट के आधार पर ही महुआ की लोकसभा की सदस्यता रद्द की गई है।
जब आज इस रिपोर्ट को लोकसभा में पेश किया गया तो टीएमसी ने इसकी स्टडी करने के लिए कम से कम 48 घंटे का समय मांगा था। लेकिन लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इसे खारिज कर दिया। महुआ मोइत्रा को लोकसभा में बोलने का मौका नहीं दिया गया। इस रिपोर्ट पर लोकसभा में वोटिंग हुई। सांसदों का बहुमत वोट महुआ मोइत्रा के खिलाफ रहा।
बता दें कि ये पहला मामला नहीं है जब ‘कैश फॉर क्वेरी‘ मामले में किसी लोकसभा सांसद की सदस्यता रद्द हुई हो। इससे पहले साल 2005 में भी ऐसा ही मामला सामने आया था, तब 11 सांसद इसके लपेटे में आए थे। दरअसल, बता दें कि उस समय 11 सांसदों को पैसे लेकर सवाल पूछने का दोषी पाया गया था और उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इनमें एक राज्यसभा सांसद भी शामिल थीं।
क्या था वो कांड?
12 दिसंबर 2005 को एक निजी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन किया था। खुफिया कैमरों में कुछ सांसद संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेते हुए कैद हो गए थे। देश के संसदीय इतिहास में इस तरह की ये पहली घटना थी। हैरान करने वाली बात तो ये थी कि ये 11 सांसद किसी एक पार्टी के नहीं थे। इनमें से छह बीजेपी से, तीन बसपा से और एक-एक राजद और कांग्रेस से थे। बीजेपी से सांसद सुरेश चंदेल, अन्ना साहेब पाटिल, चंद्र प्रताप सिंह, छत्रपाल सिंह लोध, वाई जी महाजन और प्रदीप गांधी थे तो वहीं बीएसपी से नरेंद्र कुमार कुशवाहा और राजा राम पाल और लालचंद्र तो आरजेडी से मनोज कुमार और कांग्रेस से राम सेवक सिंह शामिल थे। स्टिंग ऑपरेशन के दौरान कुछ पत्रकारों ने एक काल्पनिक संस्था के प्रतिनिधि बनकर सांसदों से मुलाकात की। पत्रकारों ने सांसदों को उनकी संस्था की ओर से सवाल पूछने की बात कही और रिश्वत लेते हुए सांसदों का वीडियो बना लिया।
आगे क्या हुआ?
इस पूरे कांड के सामने आते ही संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ था। इस कांड के 12 दिन बाद ही 24 दिसंबर 2005 को इन सांसदों की सदस्यता रद्द करने को लेकर संसद में वोटिंग कराई गई। बाकी सभी पार्टियां आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई के पक्ष में थीं। पर बीजेपी ने वॉक-आउट कर दिया। तब विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि सांसदों ने जो किया, वो बेशक भ्रष्टाचार का मामला है, लेकिन निष्कासन की सजा ज्यादा है।