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2000 Rupees Note Ban: दो हज़ार रुपये की नोट बदलने के पीछे रिज़र्व बैंक का तर्क !

2000 Rupees Note Ban Update: हम आप को दो हज़ार की नोटों को चलन से बाहर करने की शुरुआत के पीछे के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के तर्क बताते हैं।

Yogesh Mishra
Published on: 24 May 2023 12:44 PM IST

2000 Rupees Note Ban Video: रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने दो हज़ार रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने की क़वायद शुरू कर दी है। इसके पीछे जितने मुँह उतनी बातें हो रही हैं। हर आदमी रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के इस फ़ैसले को अपने अपने चश्मे से देख रहा है। जो बातें कही जा रही हैं, वे भी गले उतरने वाली नहीं हैं। ऐसे में हम आप को दो हज़ार की नोटों को चलन से बाहर करने की शुरुआत के पीछे के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के तर्क बताते हैं। रिज़र्व बैंक का कहना है कि दो हज़ार की नोटों को ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ के तहत वापस लिया जा रहा है।

रिज़र्व बैंक की वेबसाइट में क्लीन नोट पॉलिसी के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार- "भारतीय रिज़र्व बैंक जनता को अच्छी क्वालिटी के बैंक नोट उपलब्ध कराने का लगातार प्रयास करता है। इसके तहत जनता और बैंकों से आग्रह किया जाता है कि वे नोटों की गड्डी में स्टेपल न करें, नोटों पर कुछ न लिखें, नोटों पर मुहर न लगाएं, नोटों की माला न बनाएं आदि।' क्लीन नोट का मतलब एक नंबर वाली कमाई के नोटों से नहीं बल्कि गंदे संदे, कटे फटे नोटों से है। तो फिर क्या यह मान लिया जाए कि 2000 वाले नोट बहुत खराब हो चले थे? उनकी क्वालिटी बहुत खराब थी?तभी उन्हें बन्द करना जरूरी हो गया था? तो क्या 2000 के नोट डर्टी नोट हो गए हैं?

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, मार्च, 2017 के अंत में 2000 के 3,285.87 मिलियन नोट प्रचलन में थे। एक साल बाद यानी 31 मार्च, 2018 को इनकी संख्या 3,363.28 मिलियन हो गई थी। मार्च, 2018 के अंत में सर्कुलेशन में कुल 18,037 बिलियन रुपये की कुल मुद्रा में, 2000 के नोटों की हिस्सेदारी 37.3 प्रतिशत थी। मार्च, 2017 के अंत में यह संख्या 50.2 प्रतिशत थी। मार्च, 2020 के अंत में यह हिस्सा घटकर 22.6 प्रतिशत पर आ गया। अब 31 मार्च, 2023 को यह 10.8 फीसदी बताया गया है। यानी 89.2 फीसदी हिस्सा सर्कुलेशन से बाहर है।

सर्कुलेशन का मतलब उतनी राशि से है जो बैंक द्वारा जारी की गई है। मुद्रा जो अर्थव्यवस्था से हटा दी गई है, उसे सर्कुलेशन में नहीं गिना जाता है। यानी जो पैसा आपकी जेब में है या बैंक में जमा है वह सब सर्कुलेशन में शामिल राशि है।

मार्च 2022 तक सभी तरह के कुल 13,053 नोट सर्कुलेशन में थे। इसमें 2000 के नोटों की संख्या 214 करोड़ थी। रिज़र्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 2022 तक प्रचलन में बैंक नोटों के कुल मूल्य का 87.1 प्रतिशत हिस्सा 500 रुपये और 2000 रुपये के नोटों का था। अब यदि कुल नोटों का 10.8 फीसदी सर्कुलेशन में है तो इसका मतलब ये हुआ कि बाकी के नोट खत्म हो चुके हैं।

भले ही आम जनता यह कहे कि उसके पास तो 2000 वाले नोट हैं नहीं। सो उसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन सच्चाई यह है कि फर्क सबको पड़ेगा। कारण- देश में फिलवक्त प्रचलन में शामिल 2000 रुपये के नोटों का मूल्य 3.62 ट्रिलियन रुपये है। यह प्रचलन में कुल मुद्रा का लगभग 10.8 फीसदी है। यानी 2000 रुपये वाले कोई 200 करोड़ नोट सर्कुलेशन में हैं। और ये सब बैंकों में किसी न किसी चैनल से वापस आने वाले हैं।

एक धारणा है कि दो नम्बर की कमाई वाले लोग बड़े नोट कैश के रूप में रखे रहते हैं। यह भी सही है क्योंकि आये दिन छापों में बोरे भर-भर कर नोटों की गड्डियाँ पकड़ी जाती हैं। चुनावों में भी बड़ी मात्रा में कैश पकड़ा जाता है। दूसरा पहलू यह है कि कृषि सेक्टर, निर्माण सेक्टर और एमएसएमई सेक्टर में नकदी का बहुत इस्तेमाल है। क्योंकि यहां बड़ी तादाद में छोटा लेनदेन होता है जो नकद में किया जाता है।

देश में कैलेंडर को ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों से आज़ादी मिलने के बाद साल 1978 में नोटबंदी की थी। यह आज़ाद भारत की पहली नोटबंदी थी।

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी की रिपोर्ट में नोटबंदी के कारण भारत में कारोबार को 61 हज़ार करोड़ रुपये के कारोबार के नुक़सान की बात कही गयी। बैंकों को 35 हज़ार करोड़ का, अर्थव्यवस्था को 1.28 लाख करोड़ का नुक़सान हुआ।

भारत में अब तक तीन बार नोटबंदी हुई। 10 हज़ार का नोट आर.बी.आई ने 1938 में छापा था। जनवरी, 1946 में इसे बंद कर दिया गया। 1954 में एक बार फिर 10 हज़ार का नोट सामने आया। चार नवंबर, 2016 को भी नोटबंदी हुई, तब 17.97 लाख करोड़ की करेंसी लोगों के पास थी। जनवरी,2017 में घटकर यह 7.8 लाख करोड़ रह गयी। आयकर विभाग ने आठ लाख खातों को शक के दायरे में लिया। इनमें 2.5 लाख रुपये से ज़्यादा की रक़म जमा की गयी। जिनका मूल्य 4.2 लाख करोड़ रुपये था। इस बंदी में पाँच सौ और एक हज़ार के नोट बंद करके एक हज़ार की जगह दो हज़ार रुपये के नोट छापे गये। 2016-2017 के दौरान 2,000 रुपये के 3,542.991 लाख नोट छापे गए थे। 2017-18 में 111.507 लाख नोट, 2018-19 में 46.690 लाख नोट और अप्रैल 2019 के बाद से 2,000 रुपये के नए नोट नहीं छापे गए। 2000 के नोट छापने का खर्च प्रति नोट 3 रुपये 54 पैसे था। हर साल 4.5 हज़ार करोड़ रुपये नोटों की छपाई में खर्च होते हैं।

अमेरिका की बात करें तो सन 1914 से लेकर आज तक जो भी अमेरिकी करेंसी जारी हुई है वह सब वैध है। कोई भी नोट या सिक्के बन्द या वापस नहीं किये गए हैं। ब्रिटेन में भी कभी नोट वापसी नहीं हुई है। हां, ये जरूर हुआ कि कुछ साल पहले कागज की बजाय पॉलीमर के करेंसी नोट लागू किये गए। इसके लिए जनता को कागजी नोट बदलने के लिए साल भर का समय दिया गया। ब्रिटेन में सिक्के भी बदले जाते रहे हैं। लेकिन कोई सिक्का या नोट बाजार से वापस नहीं लिया गया।

भारतीय राजनैतिक इतिहास को आप देखेंगे तो यह ज्ञात होगा कि नरेन्द्र मोदी कड़े निर्णय देशहित में त्वरित लेने और प्रभावशाली रूप से लागू करने के लिए जाने जा रहे हैं। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और आत्मनिर्भर भारत के अभियान के लिए कई कड़े निर्णय लिए हैं। 2016 की नोटबंदी और 2023 में दो हजार के नोटों के वापस लेने के सरकार के इस निर्णय से निसंदेह कालेधन पर जोरदार चोट पहुंची है। क्योंकि नोटबंदी के बाद अधिकांश कालेधन का संचय दो हजार के बड़े नोट के रूप हो रहा था। तभी तो अधिकांश दो हजार के नोट तिजोरी में पहुँच गए थे। आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक लगाने के लिए इस तरह के कड़े निर्णय बहुत प्रभावी सिद्ध होते रहे हैं। वर्ष 2016 में नोटबंदी के पश्चात आतंकवादियों की फंडिंग पर बड़ा प्रहार हुआ था। बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग भी रुक गयी थी। ऐसे में नोटों का बाजार से आकस्मिक रूप से वापस ले लिया जाना नकली नोटों पर अंकुश लगाता है।

जिनके पास भी 2000 के नोट वाली नकदी हैं। वे या तो बैंक में जमा करेंगे या जल्दी-जल्दी खर्च करेंगे।इन नोटों का एक तिहाई भी यदि बैंकों में आता है तो बैंकों में जमा राशि व बाज़ार की नक़दी बढ़कर 40 हज़ार करोड़ से 1.1 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच जायेगी।देश में फ़िलहाल 3.62 लाख करोड़ रुपये के मूल्य को दो हज़ार के नोट हैं। यह छोटी रकम नहीं है।ये नोट जीडीपी का 1.3 फ़ीसदी बैठते हैं।

2000 के नोट जब खर्च किये जायेंगे तो कोई न कोई सर्विस या उत्पाद खरीदे जाएंगे। मिसाल के तौर पर कंस्ट्रक्शन गतिविधि और सोने की ख़रीद में बहुत तेजी आ सकती है। क्योंकि वहां मिस्त्री, मजदूर, मौरंग सीमेंट में नकद भुगतान किया जाने का अवसर है। इसी तरह मोबाइल, फ्रिज, एसी आदि व्हाइट गुड्स की खरीदारी बूम कर सकती है। जब अचानक लाखों करोड़ रुपये बाजार में आ जाएंगे, बिक्री बढ़ जाएगी, रोजगार बढ़ जाएगा तो उसका इम्पैक्ट स्टॉक मार्केट में दिखेगा। बॉटमलाइन यह है कि 3.62 लाख करोड़ रुपये की वापसी का सभी लोगों पर असर पड़ेगा। असर अच्छा होगा कि बुरा, ये आंकलन फिलहाल नहीं किया जा सकता है।

2000 के नोट की वापसी देश में आम चुनावों से पहले की गई है। ये सब लोग जानते हैं कि चुनाव में किस प्रकार नकदी का उपयोग किया जाता है। सो इस कदम को चुनावों से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। पर यह सवाल बाक़ी ही रह जाता है कि छह सात साल पहले छापे गये दो हज़ार रुपये के नोट यदि डर्टी नोट पॉलिसी में आ गये हैं, तो इसी के साथ छापे गये नोटों का क्या होगा?

( लेखक पत्रकार हैं ।)

Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

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