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26 मार्च का भारत बंदः नौ दशक बाद भी जारी है भगत सिंह के संकल्पों की लड़ाई
लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन अपनी इस यात्रा में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। वास्तविक रूप से देखें तो वर्तमान किसान आंदोलन की शुरुआत जून 2020 में हुई थी।काफी उतार चढ़ाव के बाद यह आंदोलन 26 नवंबर को दिल्ली में जाकर टिका।
रामकृष्ण वाजपेयी
लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन अपनी इस यात्रा में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। वास्तविक रूप से देखें तो वर्तमान किसान आंदोलन की शुरुआत जून 2020 में हुई थी।काफी उतार चढ़ाव के बाद यह आंदोलन 26 नवंबर को दिल्ली में जाकर टिका। तबसे लगातार दिल्ली की सीमाएं आंदोलन का मुख्य ठिकाना बनी हुई हैं। इस दौरान कई बार ये लगा। ऐसे मैसेज भी दिये गए कि अब लगता है ये आंदोलन बिना किसी फैसले के खत्म हो जाएगा लेकिन हर बार नये सिरे से आंदोलन उठ खड़ा हुआ है।
अब भगत सिंह के शहीद दिवस पर एक बार फिर संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मार्च को देशव्यापी बंद का आह्वान किया है। जिसे देखते हुए केंद्र सरकार सतर्क हो गई है और दिल्ली में किसानों के आंदोलन वाले स्थलों पर एक बार फिर सुरक्षा बढ़ाते हुए ट्रैफिक डायवर्ट किया जा रहा है। आन्ध्र प्रदेश समेत कई राज्यों का इस आंदोलन को समर्थन है किसानों ने भी आम जनता से कृषि कानूनों का होलिका में दहन करने का आह्वान किया है। इससे पहले भी किसान तमाम कार्यक्रमों का आयोजन कर चुके हैं लेकिन इस बार किसानों के तेवर तोड़ा अलग हटकर दिख रहे हैं।
पगड़ी संभाल जटा आंदोलन
किसान आंदोलन में एक बात देखने में आ रही है कि आंदोलन घूमफिरकर भगत सिंह पर आकर टिक जाता है। इससे पहले भी पगड़ी संभाल जटा आंदोलन को याद किया जा चुका है। यह बात 19वीं सदी की है। अंग्रेजों ने दो कानून बनाए थे एक कॉलोनाइजेशन एक्ट और दूसरा दोआब बारी एक्ट। इन दोनों कानूनों का इस्तेमाल कर किसानों से उनकी जमीन हथियाई जा रही थी। किसानों पर उल्टे सीधे टैक्स भी लगाए जा रहे थे। किसान बुरी तरह पीड़ित थे।
23 फरवरी 1881 को पंजाब के खटकड़ कलां में जन्मे अजीत सिंह ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। वह भगत सिंह के चाचा थे। 3 मार्च 1907 को लायलपुर (अब पाकिस्तान) में एक व्यक्ति ने पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए...गीत गाया था। इसके बाद ये गीत आंदोलनकारियों में जबर्दस्त हिट हुआ। इस तरह वहां से जो किसान आंदोलन शुरू हुआ उसका नाम ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ पड़ गया।
अजीत सिंह को देश निकाला
इस आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश का किसान निकल आया था जमकर प्रदर्शन हुए। आंदोलन और बड़ा न हो जाए इसके लिए अंग्रेजों ने अजीत सिंह को 40 साल के लिए देश निकाला दे दिया। लेकिन अंग्रेज उनकी जुबान बंद नहीं कर सके उन्होंने जर्मनी, इटली, अफगानिस्तान आदि देशों में जाकर किसानों को जगाया।
लेकिन जब वो 38 साल बाद देश लौटे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। देश के विभाजन का फैसला हो चुका था। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और इसी दिन अजीत सिंह ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
किसानों से भगत सिंह के परिवार का पुराना नाता
कहने का मतलब ये है कि किसानों से भगत सिंह के परिवार का पुराना नाता है। उनके परिवार के सदस्य इस समय भी आंदोलन से जुड़े हुए हैं। इसी वजह से किसान नेता भी अपने आंदोलन को भगत सिंह से जोड़कर रखना चाहते हैं। उनके भाषणों में भी भगत सिंह की विरासत झलकती है।
19 दिसंबर, 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता के संकल्प को अपनाने के बाद (26 जनवरी, 1930 को घोषणा की गई) इसके लिए भगत सिंह की लोकप्रियता भी एक कारण थी।
शहीद होने से डेढ़ महीने पहले, 2 फरवरी, 1931 को, युवा भगत सिंह ने पूर्ण स्वतंत्रता के लिए एक एजेंडा लिखा था। उन्होंने लिखा था कि हम कैसे पूरी आज़ादी पा सकते हैं।
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26 मार्च को किसानों का भारत बंद
भगत सिंह ने किसानों के संबंध में भी लिखा था कि 'जागीरदारी' (सामंतवाद) को समाप्त किया जाना चाहिए और किसानों को उनके नियंत्रण से मुक्त किया जाना चाहिए, किसानों का कर्ज माफ किया जाना चाहिए क्योंकि इस प्रणाली के कारण उन पर कर्ज है किसान को उनकी फसल का पूरा दाम नहीं मिलता।
लेकिन भगत सिंह की शहादत के नौ दशक बाद भी ऐसी तमाम चीजें हो रही हैं, जिसका उन्होंने विरोध किया था। जागीरदार की जगह, कॉरपोरेट्स द्वारा ली जा रही है और किसान खेती में उनके प्रवेश के खिलाफ लड़ रहे हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पाने के लिए लड़ रहे हैं। देखने की बात यह है कि 26 मार्च का किसानों का भारत बंद क्या असर दिखाता है और सरकार पर इसका क्या असर होता है।
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