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Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से 3 दिन पहले सरकार ने दी 10 हजार इलेक्टोरल बॉन्ड छापने की मंजूरी
Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इससे पहले 1 करोड़ रुपये के 10 हजार बॉन्ड को छापने की मंजूरी दी गई थी।
Electoral Bonds: एक ओर जहां इलेक्टोरल बांड को लेकर देश में राजनीति गरमाई है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट की ओर से इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक करार देने से तीन दिन पहले ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 10,000 बॉन्ड छापने की मंजूरी दे दी थी। मंत्रालय की ओर से एसपीएमसीआईएल (सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) को 1 करोड़ रुपये की मूल्य के 10,000 चुनावी बांड की छपाई के लिए अंतिम मंजूरी दे दी गई थी।
10 हजार चुनावी बॉन्ड की छपाई को मंजूरी मिली थी
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्त मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दो सप्ताह बाद 28 फरवरी को भारतीय स्टेट बैंक को इलेक्टोरल बांड की छपाई पर तुरंत रोक लगाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्त मंत्रालय ने 10 हजार बॉन्ड की छपाई की मंजूरी 12 फरवरी 2024 को दी गई थी।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 27 फरवरी को वित्त मंत्रालय की ओर से एसबीआई और दूसरे लोगों को ईमेल भेजा गया था, जिसमें चुनावी बॉन्ड की छपाई पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था।
एसबीआई को लगाई थी फटकार
चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी को यह जानने का पूरा हक है कि राजनीतिक पार्टियों को कहां से चंदा मिल रहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने एसबीआई को चुनावी बॉन्ड का डाटा सार्वजनिक करने और चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया था।
4 मार्च को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया था
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने 14 मार्च 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया था। चुनाव आयोग ने सारा डेटा दो सेट में अपलोड किए थे। पहली लिस्ट में कंपनियों की ओर से खरीदे गए बॉन्ड की जानकारी थी और दूसरी लिस्ट में राजनीतिक पार्टियों की ओर से बॉन्ड भुनाने वाली जमा राशि की जिक्र था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर एसबीआई से पूछा कि उसने चुनावी बांड नंबरों का खुलासा नहीं किया है। कोर्ट ने कहा था कि एसबीआई को यूनीक नंबर का खुलासा करना चाहिए, क्योंकि वह ऐसा करने के लिए बाध्य है।