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आधार कार्ड विवाद: प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं, 18 जुलाई को SC में होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ आगामी मंगलवार (18 जुलाई) को इस बाबत अंतिम सुनवाई करेगी कि क्या वाकई देश के नागरिकों की निजता का अधिकार मौलिक हक की परिधि में आता है या नहीं।
नई दिल्ली: आधार कार्ड के जरिए देश के करोड़ों लोगों की प्राइवेसी लीक होने के खतरों को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर निर्णायक फैसले की घड़ी पास आ चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ आगामी मंगलवार (18 जुलाई) को इस बाबत अंतिम सुनवाई करेगी कि क्या वाकई देश के नागरिकों की निजता का अधिकार मौलिक हक की परिधि में आता है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच के सामने मुश्किल यह है कि इसके पहले छह दशक पूर्व 1954 में और 6 सदस्यों वाली दूसरी संविधान पीठ ने 1964 में दो बार यह फैसला दिया था कि लोगों की प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है।
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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जेएस खेहर द्वारा अब इस गुत्थी का हल निकालने के लिए पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ गठित करने को लेकर न्यायिक हल्कों में नई बहस छिड़ी है।
गौरतलब है कि आधार कार्ड को हर सार्वजनिक व्यवस्था से लिंक करने के सरकार के कदम को लेकर कानूनविदों की एक मजबूत लॉबी का तर्क है कि अतीत में संविधान पीठों के फैसलों के इतर ऐसा पहले कई बार हुआ है जब कई जजों ने अपने फैसलों में इस बात को पुख्ता तौर पर माना है कि लोगों की निजता का मसला मौलिक अधिकार की श्रेणी में आता है।
केंद्र सरकार के नए अटॉर्नी जनरल खुद इस बात के हिमायती हैं कि जब 9 सदस्यों की पीठ प्राइवेसी को मौलिक अधिकार नहीं मानती तो ऐसी दशा में इसे बार-बार सवाल उठाने के तर्कों को निरस्त कर देना चाहिए।
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बता दें कि वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान इस मामले में याचिकाकर्ताओं की पैरवी कर रहे हैं जबकि सरकार का पक्ष अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल कर रहे हैं। दोनों की साझा राय थी कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान पीठ बनाकर दो बरस से लंबित पड़ी चुनौती याचिका का निपटारा कर देना चाहिए।
सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं और वित्तीय लेन देन की धुरी बन रही आधार व्यवस्था को पारदर्शी व अवरोधों से मुक्त करने के लिए ही सरकार ने आधार व्यवस्था को अनिवार्य करने का फैसला किया था।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जज जे चलमेश्वर, ए एम खानविलकर और नवीन शर्मा की पीठ ने भी निजता के मामले का निर्णायक निपटारा करने के लिए एक और बड़ी संविधान पीठ की स्थापना का सुझाव दिया था।
सरकार की आधार व्यवस्था की अनिवार्यता को सबसे पहले कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस केएस पुट्टस्वामी ने 2013 में चुनौती दी थी। वरिष्ठ एडवोकेट श्याम दीवान तभी से इस मामले की पैरवी से जुड़े हुए हैं।
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