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Alert! ए भाई जरा देख के चलो क्योंकि सावधानी हटी दुर्घटना घटी

raghvendra
Published on: 17 Nov 2017 5:38 PM IST
Alert! ए भाई जरा देख के चलो क्योंकि सावधानी हटी दुर्घटना घटी
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लखनऊ: सावधानी हटी दुर्घटना घटी। लेकिन सिर्फ एक व्यक्ति - हमारी या आपकी - सावधानी का मतलब ही सडक़ सुरक्षा नहीं है। भारत की सडक़ों पर सबसे फिट नहीं बल्कि सबसे भाग्यवान ही बचा रह पाता है। सडक़ हादसों की सबसे प्रमुख वजह बेतहाशा तेज गाड़ी चलाना है। इसके बाद गलत तरीके और असुरक्षित ढंग से ओवरटेकिंग, शराब या ड्रग्स के नशे में ड्राइविंग और ड्राइविंग के वक्त मोबाइल फोन पर बात करना हादसों के प्रमुख कारण हैं।

संयुक्त राष्ट्र डिकेड ऑफ एक्शन 2011-20 इस समय चल रहा है जिसका लक्ष्य है सडक़ हादसों में मौतों की संख्या कम करना। इसके तहत भारत सरकार ने 2020 तक सडक़ हादसों में मौतों की संख्या 50 फीसदी कम करने के प्रति संकल्प जताया है। सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार हाईवे प्रोजेक्ट्स और सडक़ सुरक्षा में नयी तकनीकों की तलाश कर रही है ताकि एक्सीडेंट्स 50 फीसदी तक कम किये जा सकें।

गडकरी ने बताया है कि सडक़ दुर्घटना में होने वाली मौतों को कम करने के लिए सरकार की नीति के तहत नेशनल हाईवे पर 780 डेंजरस स्पॉट्स की पहचान की है जिन्हें अगले दो साल में 12 हजार करोड़ रुपये खर्च करके सुधारा जाएगा। इसके अलावा सडक़ों और हाईवे को दुरुस्त करने की भी योजनाएं हैं। फिलहाल तो सडक़ हादसों की वजह से जीडीपी को 3 फीसदी का नुकसान हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र डिकेड ऑफ एक्शन 2011-20 के तहत 19 नवंबर को स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है - उनको स्मरण करना जो सडक़ हादसों में जान गंवा बैठे हैं।

भारत में 2016 के सडक़ सुरक्षा आंकड़े

  • 4,80,652 दुर्घटनाएं।
  • 1,50,785 लोगों की मौतें।
  • 413 मौतें रोजाना हुईं।
  • 1317 दुर्घटनाएं हर रोज।
  • 55 दुर्घटनाएं हर घंटे।
  • 31.4 मौतें प्रति 100 हादसे।
  • 29.1 मौतें प्रति 100 हादसे थीं 2015 में।

जानलेवा स्पीड ब्रेकर

  • सडक़ों पर बने स्पीड ब्रेकर की वजह से 2016 में 9583 हादसे हुए और 3396 लोग मारे गए।
  • सडक़ पर गड्ढों की वजह से 6424 हादसे हुए जिनमें 2324 लोग मारे गए।
  • भारत के नेशनल हाईवे सबसे खतरनाक हैं जिनपर कुल हादसों के 29.6 फीसदी हुए और कुल मौतों में 34.5 फीसदी इन पर ही हुईं।

यूपी सबसे खतरनाक

  • 2016 में देश के 13 राज्यों में ही 84 फीसदी हादसे हुए और इनमें सबसे बुरी स्थिति रही उत्तर प्रदेश की।
  • 12.8 फीसदी हादसे यूपी में।
  • 11.4 फीसदी तमिलनाडु में।
  • 8.6 फीसदी महाराष्ट्र में क 7.4 फीसदी कर्नाटक में क 6.9 फीसदी राजस्थान में।

सडक़ सुरक्षा दशक

मार्च 2010 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 2011 - 2020 को सडक़ सुरक्षा का दशक घोषित किया था जिसका लक्ष्य है विश्व भर में सडक़ हादसों में मौतों को घटाना। 2015 में 70 देशों ने ब्राजील में वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के एक डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर किया जिसका भी उद्देश्य सडक़ सुरक्षा है। 2010 में अनुमान लगाया गया था कि इस दशक में 50 लाख जानें बचाई जा सकेंगी।

सडक़ सुरक्षा पर एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 13 लाख लोग सडक़ हादसों में जान गवां देते हैं जबकि 2 से 5 करोड़ लोग घायल होते हैं। यह भी देखा गया है कि विश्व भर सडक़ हादसों में 90 फीसदी से ज्यादा मौतें अल्प आय वर्ग और मध्यम आय वर्ग में ही होती हैं। यह चेतावनी दी गयी है कि अगर सडक़ सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया तो वर्ष 2020 तक हर साल सडक़ हादसों में 19 लाख लोग जान गँवा देंगे।

चुनौती बड़ी है

सरकार दावा कर रही है कि 2020 तक सडक़ हादसों में 50 फीसदी की कटौती की जाएगी। ये अपने आप में विशाल चुनौती है लेकिन असंभव नहीं। क्योंकि हम हादसों की तादाद आधी करने में लगे हैं। जबकि दुनिया के विकसित देश जीरो विजन पर काम कर रहे हैं यानि सडक़ हादसे में किसी की मौत ना हो। रोड सेफ्टी के मामले में हम इतने पीछे रह गए हैं कि अब बड़े कदम ही हमें बचा सकते हैं।

दरअसल हमारी सडक़ों पर हादसों के लिए दरवाजे उसी वक्त खुलने शुरू हो जाते हैं जब सडक़ों की प्लानिंग हो रही होती है। सडक़ों की डिजाइन में भी समस्या है। देश में जिस रफ्तार से सडक़ें बन रही हैं उससे कहीं ज्यादा तेज रफ्तार से आबादी और सडक़ों की जरूरतें बढ़ रही हैं। इस आपाधापी में सडक़ों के विस्तार में सुरक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जितना जरूरी है।

सडक़ों की गलत डिजाइन हादसों को जन्म देती है। स्पीड ब्रेकर, टूटी सडक़ें, ब्लाइंड टर्न और उलझे इंटरसेक्शन हादसों की वजह बन रहे हैं। इनके सुधार पर अब सरकार को मोटा खर्चा करना पड़ रहा है। भारत गाडिय़ों का बड़ा बाजार बनता जा रहा है। भारत तिपहिया वाहन का सबसे बड़ा मार्केट है, कमर्शियल गाड़ियों का चौथा बड़ा बाजार है, छठा सबसे बड़ा कार निर्माता है। मगर हैरानी की बात है कि वाहन बाजार तो बढ़ रहा है लेकिन वाहनों के इस्तेमाल पर कोई खास बदलाव दिखाई नहीं देता।

सख्त नियम की तैयारी

गलत तरीकों से बन रहे लाइसेंस से सरकार भी अनजान नहीं है। सडक़ों पर 80 फीसदी हादसे ड्राइवर की गलती से हो रहे हैं और इसे बदलने के लिए जरूरी है कि लाइसेंस बनाने के तरीकों में सख्ती आए। सरकार नए मोटर व्हीकल कानून को लागू करने की तैयारी में है जिसमें ट्रैफिक नियम का हर उल्लंघन अब ज्यादा महंगा पड़ेगा।

बिना लाइसेंस के कार चलाते हुए पकड़े जाने पर 500 रुपये की जगह 5000 रुपये जुर्माना लगेगा, बिना सीट बेल्ट के कार चलाने पर 100 रुपये की जगह 1000 रुपये का जुर्माना देना होगा। ओवर स्पीडिंग पर 400 रुपये की जगह 2000 रुपये तक का जुर्माना लगेगा। हिट एंड रन केसे में 2 लाख रुपये तक मुआवजा देना पड़ेगा।

केंद्र सरकार ने बरसों पहले नया कानून बनाने की दिशा में पहल की थी लेकिन राजनीतिक दाव-पेंच की वजह से वह प्रस्ताव अभी फाइलों में धूल फांक रहा है। बहरहाल, सरकार को भरोसा है कि सीसीटीवी की निगरानी में अब चालान से बचना मुश्किल होगा। एक समस्या और है। सडक़ हादसे के बाद कोई मदद को आगे नहीं आता। सडक़ हादसों में 50 फीसदी लोगों की जान बचाई जा सकती है अगर समय पर उन्हें अस्पलात ले जाया जाए।

सरकार ने एक राष्ट्रीय सडक़ सुरक्षा नीति भी मंजूर की है, जिसके तहत विभिन्न उपायों में जागरूकता बढ़ाना, सडक़ सुरक्षा सूचना पर आंकड़ें एकत्रित करना, सडक़ सुरक्षा की बुनियादी संरचना के अंतर्गत कुशल परिवहन अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करना तथा सुरक्षा कानूनों को लागू करना शामिल हैं। सडक़ सुरक्षा के मामलों में नीतिगत निर्णय लेने के लिए भारत सरकार ने शीर्ष संस्था के रूप में राष्ट्रीय सडक़ सुरक्षा परिषद का गठन किया है। मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से राज्य तथा ज़िला स्तर पर सडक़ सुरक्षा परिषद और समितियों की स्थापना करने का अनुरोध भी

किया है।

जमीनी हकीकत

एनडीए सरकार के कार्यकाल में देश में सडक़ों का जाल बिछाने के लिए एक महात्वाकांक्षी परियोजना तैयार की गई थी। परियोजना के तहत कई अच्छी सडक़ें बनीं लेकिन सडक़ों का जाल बिछाने के फेर में सबसे अहम मुद्दे यानी सडक़ सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। नतीजतन उस दौरान बने हाइवे और एक्सप्रेसवे पर रफ्तार से होड़ लेते वाहनों के हादसों का शिकार होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

भारत में अब तक वाहनों की कोई गति सीमा नहीं तय की गई है। एक अध्ययन से पता चला है कि वाहनों की रफ्तार में 10 फीसदी वृद्धि से सडक़ हादसों में होने वाली मौतों की तादाद 30 फीसदी तक बढ़ सकती है।

समस्या की वजह

सडक़ हादसों की वजहों के विश्लेषण से पता चलता है कि 78.7 फीसदी हादसे चालकों की लापरवाही के चलते होती हैं। इसकी वजहों में शराब व दूसरे नशीले पदार्थों के सेवन से लेकर अधिक माल लादना या ज्यादा सवारियां बैठाना शामिल है। साथ ही, ज्यादा रफ्तार से गाड़ी चलाना और ड्राइवर का थका होना भी कारण हो सकते हैं।

ड्राइवरों की लापरवाही ही ऐसे हादसों की प्रमुख वजह है। ऐसे में उनमें जागरूकता और भय पैदा करना काफी अहम है। भारत में यातायात सप्ताह, सडक़ सुरक्षा सप्ताह, यातायात जागरूकता अभियान दशकों से चलते चले आ रहे हैं लेकिन हालात सुधरने की बजाए बिगड़ते ही चले जा रहे हैं।

क्या हैं उपाय

  • ट्रैफिक नियम तोडऩे पर कई गुना ज्यादा जुर्माना व सजा।
  • ड्राइविंग लाइसेंस के निलंबन या रद्द होने का भय।
  • पैदल यात्री, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और बच्चों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान।
  • वाहनों के निर्माण, रजिस्ट्रेशन और चालन के सख्त नियम।
  • सडक़ों की गुणवत्ता और बेहतर आधारभूत ढांचे पर जोर।
  • हर पांच साल में कार व दुपहिया वाहनों का सुरक्षा परीक्षण।
  • बच्चों के लिए हेलमेट और स्कूल बसों में जीपीएस व कैमरे अनिवार्यक सभी चार पहिया वाहनों में डैश कैम।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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