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सरकार को बेनामी सौदों पर नकेल कसने के कानून को लागू करने में लगा 28 बरस का वक्त
बेनामी संपत्तियों से जुड़े सौदों को गैर कानूनी करार देने के बाबत कानून भले ही 1988 में बन चुका था, लेकिन सरकार को इस कानून को लागू करने में 28 बरस का लंबा वक्त बीता।
नई दिल्ली: बेनामी संपत्तियों से जुड़े सौदों को गैर कानूनी करार देने के बाबत कानून भले ही 1988 में बन चुका था, लेकिन सरकार को इस कानून को लागू करने में 28 बरस का लंबा वक्त बीता। पिछले दो दशक से इस कानून को लागू करने की बहुतेरी कोशिशें और मांगें उठती रहीं। अंततः 2016 में इस कानून में सुधारात्मक संशोधन लागू करने के बाद ही सरकार इसे लागू करने में समर्थ हो पाई। इससे पूर्व सरकार का यह तर्क होता था कि कानून में निहित कमियों और कमजोरियों की वजह से इसे मूर्त रूप में लागू करना मुमकिन नहीं है।
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया कि इस कानून में कई तरह की आंतरिक खामियां थीं, जिन्हें संशोधन के जरिए दूर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि 1988 के कानून में यह आवश्यक प्रावधान तक नहीं था कि बेनामी सौदा करने वालों पर कोई चार्ज सीट होगी या नहीं। उनके मुताबिक 2016 में संशोधन के जरिए इस कमी को पूरा किया गया।
मंत्री ने यह जानकारी दी कि पिछले साल बेनामी कानून में संशोधन किए जाने के बाद देशभर में 245 बेनामी संपत्तियों की पहचान की गई तथा करीब 140 मामलों में 'कारण बताओ' नोटिस जारी किया गया। बेनामी मामलों में ऐसी चल व अचल संपत्तियों बैंकों में डिपॉजिट की पहचान की गई है, जिनकी कीमत 200 करोड़ तक आंकी गई है। दूसरी ओर 124 ऐसी संपत्तियों को अस्थाई तौर पर पहले ही अटैच किया जा चुका है।
संशोधित कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि बेनामी सौदों से जुड़ी संपत्तियां जिन लोगों के पास भी पकड़ी जाएंगी। उसे न केवल जब्त किया जाएगा बल्कि उन्हें एक से सात बरस की जेल भी हो सकती है। इतना ही नहीं जितने मूल्य की बेनामी संपत्ति या सौदा पकड़ा जाएगा। उसका 25 प्रतिशत जुर्माना भी अलग से देना होगा। मंत्री ने यह भी बताया कि गलत जानकारी देने या तथ्य छिपाने वालों को छह माह से पांच साल की सजा का प्रावधान संशोधित कानून में रखा गया है।