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'म्यूनिख' कांड के बाद दुनिया ने देखा इजराइल का सख्त चेहरा
लखनऊ: म्यूनिख ओलंपिक में अपने खिलाड़ियों की हत्या के बाद इजरायल इतना सतर्क हो गया, कि उसने अपने देश में भी सुरक्षा व्यवस्था बेहद कड़ी कर दी। चारों ओर से खाड़ी देशों से घिरे इजरायल को पता है कि उसे सुरक्षा की कितनी जरूरत है। वो '32 दांतों के बीच एक जीभ' की तरह है। देश की सुरक्षा के मामले में वो अपने लोगों की जान की भी परवाह नहीं करता।
इस मामले में इजरायल भारत के लिए सबक था। पाकिस्तानी आतंकवादी अहजर मसूद को रिहा कराने के लिए आतंकवादियों ने 1999 में एयर इंडिया का प्लेन हाईजैक किया था जिसमें 178 यात्री सवार थे। आतंकवादी उस प्लेन को अफगानिस्तान के कंधार ले गए थे। अजहर मसूद के रिहा होने के बाद ही उन्होंने प्लेन को छोड़ा था।
जब इजराइली खिलाड़ियों को बनाया बंधक
बात है 1972 के म्यूनिख ओलंपिक की। जब 8 फलस्तीनी आतंकियों ने हमला किया। इस हमले में दो इजरायली खिलाड़ियों की मौत हुई थी और 9 खिलाड़ियों को कैद कर लिया गया था। सभी 9 खिलाड़ियों को बाद में मार दिया गया।
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म्यूनिख में वो हुआ, जो किसी ने नहीं सोचा था
5 सितंबर 1972 को 20वें ओलंपिक खेलों में टेंशन काफी ज्यादा थी। 1936 के बर्लिन ओलंपिक के बाद, पहली बार जर्मनी को ओलंपिक का आयोजन दिया गया। इजरायल के खिलाड़ी अपने देश के हालात के चलते और ज्यादा चिंतित थे। ओलंपिक का पहला दिन शांति से निकल गया। 4 सितंबर की रात को इजरायली खिलाड़ी अपने-अपने कमरों में गए। सुबह के करीब 4 बजे फिलिस्तीन के 8 आतंकियों ने ओलंपिक खेल गांव के 6 फुट की दीवार फांद कर इजरायली खिलाड़ियों पर हमला कर दिया। हमलावर सीधा उस बिल्डिंग में घुसे जहां इजरायली खिलाड़ी मौजूद थे। आतंकवादियों ने खिलाड़ियों पर हमला कर दिया। उन्होंने खुद को बचाने की कोशिश की, मगर दो खिलाड़ी इस दौरान मारे गए। दो खिलाड़ी बच निकलने में कामयाब हुए और 9 खिलाड़ियों को बंदी बना लिया गया।
नहीं मानी हमलावरों की शर्त
सुबह 5 बजे तक पुलिस ने घेराबंदी शुरू कर दी और खबर पूरी दुनिया में फैल गई। करीब 9 बजे हमलावरों ने अपनी मांग की एक सूची खिड़की से फेंकी, जिसमें इजरायली जेल से 234 और जर्मन जेल से 2 कैदियों की रिहाई की बात की गई। बातचीत का दौर चला और आतंकियों ने अपनी शर्त वापिस लेने से मना कर दिया। दूसरी तरफ इजरायली सरकार ने भी कैदियों को रिहाई से इंकार कर दिया, जिसके बाद मुठभेड़ होनी निश्चित हो गई। शाम 5 बजे तक आंतकी समझ गए कि उनकी डिमांड पूरी नहीं होगी, तो उन्होंने कायरो, मिस्र जाने के लिए दो प्लेन की मांग रखी। जर्मन अधिकारी मान भी गए मगर वो आतंकियों को जर्मनी से बाहर नहीं जाने दे सकते थे।
बंधक संकट का दुखद अंत
इसके बाद जर्मन पुलिस ने ऑपरेशन 'सनशाइन' को अंजाम देने का सोचा, जिसमें बिल्डिंग को उड़ाने का प्लान था। मगर टीवी के जरिए आतंकियों को इसकी सूचना मिल गई। इसके बाद पुलिस ने उन्हें हवाई अड्डे पर पकड़ने का प्लान बनाया, मगर टीवी के जरिए आतंकी इस प्लान को भी भांप गए। रात 10.30 बजे खिलाड़ी और आतंकियों को हेलीकॉप्टर के जरिए एयरपोर्ट तक पहुंचाया गया, जहां जर्मन सिपाही स्निपर्स के साथ उनका इंतजार कर रहे थे। इस जाल का जैसे ही आतंकियों को पता चला, उन्होंने जवाबी हमला शुरू कर दिया। दो आतंकी और 1 पुलिसकर्मी मारे गए। इसके बाद जर्मन सेना पहुंच गई तो आतंकी समझ गए कि उनका अंत नजदीक आ गया है। इसके बाद एक आतंकी ने हेलीकॉप्टर में बैठे 4 बंधकों को गोली मार दी और ग्रेनेड फेंका। दूसरे आतंकी ने अपनी मशीन गन से बाकी बंधको भी मार दिया। बाद में आतंकवादी जर्मन पुलिस के साथ मुठभेड में मारे गए।
..जब भारत में मोसाद को उतारने को तैयार था इजराइल
भारत में भी इजरायली दूतावास के एक अधिकारी पर हमले की घटना हुई थी जिसमें उस देश ने कड़ा रुख अपनाया था। 13 फरवरी 2012 को दिल्ली में इजराइली राजनयिक ताल येहोशवा की कार पर स्टिकी बम से हमला हुआ था। हालांकि, इस हमले में राजनयिक की पत्नी घायल हुईं थीं। सुरक्षा मामलों से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अपने राजनयिक के परिवार पर हुए हमले से इजराइल इस कदर चौकन्ना हो गया था कि उसने भारत सरकार से 'मोसाद' (इजराइल की खुफिया एजेंसी) तक भेजने की बात कही थी। लेकिन भारत सरकार ने इसकी जरूरत नहीं बताई। दुनियाभर के राष्ट्र मोसाद की कार्रवाई से वाकिफ हैं। मोसाद अपने दुश्मनों को ख़त्म कर ही दम लेता है। दरअसल, इस हमले में ईरानी कनेक्शन के सबूत मिले थे और भारत ईरान से संबंध ख़राब करना कतई नहीं चाहता होगा। बाद में येहोशवा को सपरिवार इजरायल ने वापस बुला लिया था ।