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Agneepath Scheme Protest: क्या ट्रेनें जलाने वाले करेंगे देश की रक्षा?

मातृभूमि की रक्षा के लिए सेना में जाने को बेताब युवा देश की संपत्ति जला रहे हैं, अपने हमवतनों पर पत्थर फेंक रहे हैं। ये देशभक्ति का किस तरह का ज़ुनून है?

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 17 Jun 2022 10:57 PM IST
Agneepath Scheme Protest
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Agneepath Scheme Protest। (Social Media)

Agneepath Scheme Protest: सेना में सैनिकों की भर्ती की अग्निपथ योजना के खिलाफ कई राज्यों में बवाल (Agneepath Scheme Protest) हुआ है। बिहार, यूपी और तेलंगाना में ट्रेनें जलाई गईं हैं। वाहन जलाए और तोड़े गए हैं, पत्थरबाजी की गई है। अफसोस की बात है कि ये कारनामे उन लोगों द्वारा किये गए हैं जो सेना में भर्ती के लिए लालायित हैं। लेकिन इनको पता नहीं कि सेना में जाना और सैनिक बनना मात्र एक सरकारी नौकरी नहीं है। सैनिक देश के रक्षक होते हैं, मातृभूमि की रक्षा के लिए जान दे देते हैं। लेकिन यहां तो उल्टा है।

सेना में जाने को बेताब युवा देश की संपत्ति जला रहे

मातृभूमि की रक्षा के लिए सेना में जाने को बेताब युवा देश की संपत्ति जला रहे हैं, अपने हमवतनों पर पत्थर फेंक रहे हैं। ये देशभक्ति का किस तरह का ज़ुनून है? इन पत्थरबाजों और आगजनी करने वालों और उन तत्वों में, जो अन्य मसलों पर बवाल करते हैं, भला क्या फर्क है? ये सोचना चाहिए। क्या ऐसे लोग सेना में भर्ती होने लायक भी हैं? क्या इनकी विध्वंसक प्रवृत्ति आगे जा कर खत्म हो जाएगी? क्या ये कभी एक स्वस्थ और अनुशासित समाज का निर्माण कर पाएंगे? क्या इनकी नजर में सेना की कोई शुचिता है? ये बड़े सवाल हैं।

दरअसल ऐसे लोगों के लिए सेना भी एक अदद सरकारी नौकरी है जहां पेंशन, अच्छी तनख्वाह और कैंटीन, मेडिकल आदि ढेरों सुविधाएं अलग से हैं। अगर ये कहा जाए कि ये फसाद और जुनून देश की सेवा के लिए नहीं बल्कि निजी सुविधा के लिए है यो तर्क गलत नहीं कहा जाना चाहिए।

उत्तरी राज्यों में ही अग्निपथ योजना का ज्यादा विरोध

बात बेरोजगारी की भी हो सकती है, लेकिन वह एक अलग मसला है। बेरोजगार तो दुनिया के तमाम देशों में है लेकिन सेना, पुलिस या टीचर भर्ती के लिए आंदोलन, हिंसा, शायद ही कहीं देखी सुनी जाती है। भारत में और खासतौर पर उत्तरी राज्यों में ही ऐसा ज्यादा क्यों है, ये भी सोचने वाली बात है। ये बवाल किसी सामाजिक मसले को लेकर नहीं है। ये बात तो साफ है कि कमी अनुशासन की है। जब अनुशासन नहीं होगा तभी इस तरह की चीजें पैदा होंगी। अब गंभीरता से सोचना होगा कि युवाओं को क्यों नहीं अनिवार्य सैन्य सेवा से गुजारा जाए। हमने तरह तरह से बहुत नैतिकता के पाठ, किस्से, कहानी बच्चों को सुनाए हैं, लेकिन अनुशासन का पाठ समाज में सिरे से नदारद है।

एक और बात। कोई भी सरकार अपनी जनता, अपने देश के खिलाफ नहीं जा सकती। कोई नई चीज लाई जाती है तो उसे देखते ही सिरे से खारिज नहीं किया जाना चाहिए। योजना देश हित में ही होगी, ऐसा मान कर आगे बढ़ना चाहिए। उसे स्वीकार करना चाहिए। तोड़फोड़ करने से देश की सेवा नहीं होती।



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Deepak Kumar

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