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Agnipath Scheme Protest: किसान आंदोलन जैसे चक्रव्यूह में फंसी मोदी सरकार, युवाओं का गुस्सा बना मुसीबत
Agnipath Scheme Protest: सरकार की ओर से घोषित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन करीब एक साल से ज्यादा समय तक चला था। ऐसा ही कुछ नज़ारा इस आन्दोलन में भी दिखा रहा है।
Agnipath Scheme Protest: केंद्र सरकार की ओर से सेना में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ स्कीम (Agnipath Scheme Protest) के खिलाफ युवाओं के विरोध का स्वर लगातार तेज होता जा रहा है। युवाओं का यह आंदोलन आठ राज्यों में फैल चुका है और रेलवे (Railway), रोडवेज (Roadways) और सरकारी संपत्तियों (government properties) को निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि सरकार इस मुद्दे पर झुकने के मूड में नहीं है और इसीलिए पहले साल भर्ती की उम्र बढ़ाकर 23 साल कर दी गई है। सेना प्रमुख ने अगले शुक्रवार से भर्ती अभियान शुरू करने की भी घोषणा कर दी है।
जानकारों का मानना है कि अग्निपथ इस स्कीम को लेकर मोदी सरकार (Modi Government) किसान आंदोलन (Farmers Protest) जैसे चक्रव्यूह में फंसती दिख रही है। सरकार की ओर से घोषित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन करीब एक साल से ज्यादा समय तक चला था। विपक्षी दलों ने खुलकर इस आंदोलन का समर्थन किया था और अब उसी तरह विपक्षी दल अग्निपथ योजना के खिलाफ भी मैदान में उतर गए हैं। कई मामले में तो यह आंदोलन किसान आंदोलन से भी ज्यादा असर डालने वाला साबित होता दिख रहा है। इस आंदोलन से निपटना मोदी सरकार और राज्य सरकारों के लिए बड़ी मुसीबत बन गया है।
किसान आंदोलन के आगे झुक गई थी सरकार
केंद्र सरकार की ओर से पार्टी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ छिड़े किसान आंदोलन के दौरान भी जबर्दस्त गुस्सा दिखा था। किसानों ने दिल्ली के कई बॉर्डरों पर डेरा डाल दिया था और कई राज्यों में कृषि कानूनों का हिंसक विरोध किया गया था। इस आंदोलन के दौरान दिल्ली में भी हिंसा हुई थी। इस मुद्दे पर किसान संगठनों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हुई मगर आखिरकार कोई नतीजा नहीं निकल सका।
अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी थी। उनका कहना था कि हम इन कृषि कानूनों की अच्छी बातों को आम किसानों को समझाने में नाकाम साबित हुए।
किसान आंदोलन से ज्यादा तीखा विरोध
अब एक बार फिर वैसी ही स्थिति बनती दिख रही है। वैसे अग्निपथ स्कीम का विरोध किसान आंदोलन से भी ज्यादा तीखा होता दिख रहा है। योजना की घोषणा होते ही बिहार से शुरू हुए इस आंदोलन की आग अब कई राज्यों में फैल चुकी है और युवा सड़कों पर उतर आए हैं। सरकार की ओर से गुरुवार को मीडिया माध्यमों के जरिए युवाओं को समझाने की कोशिश की गई और इस योजना की अच्छाइयां बताई गईं मगर यह आंदोलन थमता नहीं दिख रहा है।
युवाओं को मनाने की कोशिशें नाकाम
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह सेना में भर्ती के मुद्दे पर युवाओं को समझाने की कोशिश में जुट गए हैं। शाह ने युवाओं से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि दो साल से अटकी भर्ती प्रक्रिया को शुरू करने के बाद युवाओं को बड़ा मौका मिला है और उन्हें इस योजना का लाभ उठाना चाहिए। दूसरी ओर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी युवाओं को समझाने की कोशिश करते हुए योजना की खूबियों का जिक्र किया है।
उन्होंने युवाओं से भर्ती प्रक्रिया में सहयोग देने की अपील की है। सरकार के इन दोनों वरिष्ठ मंत्रियों की अपील के बावजूद युवाओं पर इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है। शुक्रवार की सुबह से ही जिस तरह विभिन्न राज्यों में तोड़फोड़, आगजनी और पथराव की घटनाएं हुईं,उससे साफ हो गया है कि युवा इस योजना के पूरी तरह खिलाफ हैं और वे इतनी आसानी से मानने वाले नहीं हैं।
विपक्ष ने भी खोला मोर्चा
ऐसे में यह कहा जाने लगा है कि युवाओं का यह आंदोलन भी किसान आंदोलन की तरह मोदी सरकार के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा साबित होगा। युवाओं के साथ ही विपक्ष ने भी इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस ने गुरुवार को इस मुद्दे पर दिल्ली में बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
इस प्रेस वार्ता में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, सचिन पायलट, अजय माकन और कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे और उन्होंने आरोप लगाया कि सेना में इस तरह की भर्ती किया जाना देश की सुरक्षा के साथ खतरनाक मजाक है।
सहयोगी दलों का भी रुख खिलाफ
बिहार में भाजपा के सहयोगी दल जनता दल यू ने भी इस स्कीम को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं और केंद्र से इस योजना पर पुनर्विचार करने की मांग की है। जदयू का कहना है कि केंद्र सरकार को पहले इस बाबत सहयोगी दलों को विश्वास में लेना चाहिए था।
पंजाब में भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इस योजना को पूरी तरह गलत ठहराया है। उन्होंने भी सरकार से इस योजना को वापस लेने की मांग की है। भाकियू नेता राकेश टिकैत ने भी इस आंदोलन में युवाओं का साथ देने की बड़ी घोषणा की है।
गैर भाजपा शासित राज्य नहीं दे रहे साथ
इस पूरे प्रकरण में एक काबिलेगौर बात यह भी है कि अग्निवीर के तौर पर सेवा करने वाले युवाओं को प्राथमिकता देने की घोषणा सिर्फ भाजपा शासित राज्यों की ओर से की गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी अर्धसैनिक बलों की भर्ती में अग्निवीरों को प्राथमिकता देने की बात कही है।
दूसरी ओर विपक्ष शासित राज्य सरकारों ने इस मुद्दे पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है। यहां तक कि भाजपा के समर्थन से सरकार चलाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा की मांग के बावजूद अभी तक इस तरह की कोई घोषणा नहीं की है। इस तरह अग्निपथ योजना को लेकर मोदी सरकार गंभीर चुनौतियों के बीच फंसी हुई दिख रही है। इस मुद्दे पर युवाओं में इतनी ज्यादा नाराजगी दिख रही है कि उन्हें समझाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा।